लघुकथा- स्वीकृति
“खुशखबरी कब देने वाली हो?” सह अध्यापिका ने कौशल से पूछा.
“खुशखबरी! कैसे हो सकती है खुशखबरी!”
“वो क्यों भला!”
“अब देख न, मैं भी मां दुर्गे की पुजारिन और मेरी सासू मां भी. मैं मां दुर्गा से रोज प्रार्थना करती हूं, कि दो बेटों के बाद अब बेटी हो जाए तो परिवार भी पूरा हो जाएगा और मैं रोज कन्या-पूजन भी कर पाऊंगी.”
“तो दिक्कत क्या है?”
“मेरी सासू मां बहुत ही अच्छी हैं, बेटी की तरह मेरा पूरा ख्याल भी रखती हैं, पर वे मां दुर्गा से रोज प्रार्थना करती हैं कि इस बार भी उनके आंगन में पोता ही खेले!”
उनका वार्तालाप सुनकर मां दुर्गा असमंजस में आ गईं, कि किसकी बात मानें?
“बहू की बात मानती हूं तो मेरी भक्तिन सासू मां निराश हो जाएंगी. सासू मां की बात मानने से सासू मां का बहू-बेटा तो फिर भी खुशी से बेटे को स्वीकार कर लेंगे.” मां दुर्गा ने सोचा.
सासू मां की प्रार्थना को मां दुर्गा ने स्वीकृति दे दी.
— लीला तिवानी