धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

 दैवीय जीवंत प्रतिमा का रूप – माँ 

          नवरात्री लगते ही भक्तगण माँ अम्बे, भवानी , दुर्गा जैसे विभिन्न रूपों की प्रतिमा का अलग–अलग दिन विधि–विधानपूर्वक पूजा-अर्चना करते हैं। सामर्थ्य अनुसार माँ को श्रृंगार सामग्री, मिठाई व फल-फूल चढ़ाते हैं। पर उस प्रतिमा का क्या ? जो आज अपने ही घर में बेबस और लाचार पड़ी है। मेरा मतलब, अपनी ही जननी से; जिसने हमें जाया है। यह सच है, आज भी कई माएँ वृद्धाश्रम में हैं, जो अपने बहू-बेटे व पोते-पोती की राह ताक रही हैं; और इस आस में बैठी हुई हैं कि उनके बेटे उन्हें लेने जरूर आयेंगे। नवरात्री में लोग जितनी सेवा व पूजा माँ की प्रतिमा का करते हैं, अगर उनकी आधी सेवा भी अपनी माँ के लिये करते , तो आज हर घर एक मंदिर बन जाता।

          माँ अम्बे की प्रतिमा में माँ अम्बे विराजती है, लेकिन एक साक्षात प्रतिमा, जिसे दुनिया माँ के नाम से जानती है; में पूरा ब्रम्हाण्ड विराजमान होता है। सिर्फ मंदिर जाकर दान-दक्षिणा देने से ही माँ अम्बे खुश नहीं होती। अगर कोई मातारानी को खुश रखना चाहते हैं तो सबसे पहले अपनी माँ को खुश रखना सीखें। अगर आप घर की माँ को खुश रखेंगे, तभी मंदिर की माँ खुश होगी।

          माँ अम्बे यह नहीं चाहती कि भक्त नौ दिन तक उनके द्वार ही आये, उनकी पूजा-अर्चना करे। नारियल, फल-फूल और मेवा चढ़ाये। माँ फल और मेवा की भूखी नहीं होती है। माँ तो केवल सच्ची सेवा, निश्छल भक्ति चाहती है। अगर सब मिलकर अपनी माँ को खुश करते, माँ की सेवा करते तो आज शायद पृथ्वी पर यह संकट नहीं आता।

          विचार करें कि आज इस दुनिया में कितनी सारी माँ वृद्धाश्रम में रहती हैं। रोते-बिलखते अपने बच्चों को याद करती हैं।

उस माँ को कभी न तड़पाएँ, जिसने आपका पालन पोषण किया है। अमृत रूपी दुग्ध पान कराया है। आपको अपने हाथों से भोजन कराया है । माँ को भी अपने बच्चों से यही आशा रहती है कि जब वे बूढ़े हो जाएँगे तो ऐसे ही उनके बच्चे उनकी भी सेवा करेंगे। माँ तो माँ होती है न। अपने बच्चों के बारे में कभी गलत नहीं सोच सकतीं। लेकिन माँ को क्या पता कि वे बुढ़े होते ही बोझ बन जाएँगे।

उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ आएँगे।

         हर इंसान को यह समझना बहुत जरूरी है, जिस माँ ने हमें ऊँगली पकड़ के चलना सिखाया, उसे कतई बेसहारा न छोड़ें। वे बहुत खुशनसीब होते हैं, जिनके माँ-बाप उनके साथ हमेशा रहते हैं। अनाथ आश्रम के बच्चे अपने माता-पिता को देखने के लिए तरसते हैं। माता-पिता की कीमत उस गरीब अनाथ बच्चों से पूछें कि माता-पिता क्या होते हैं। बड़ा घर ,बड़ी गाड़ी , बंगला और पैसे रखने वाले ही अमीर नहीं होते। जिस घर में बूढ़े माँ-बाप की सेवा होती है, वह घर एक मंदिर होता है। आज अगर संसार मे माता-पिता को बोझ नहीं समझते , माँ अम्बे की तरह उनकी पूजा-सेवा करते, तो कहीं भी वृद्धाश्रमों की जरूरत नहीं पड़ती।

          आज आप ऐसा करेंगे तो कल आपके बच्चे भी आपके साथ ऐसा ही व्यवहार करेंगे। यूँ कहें , जैसे करनी वैसा फल, आज नहीं तो निश्चय कल। एज़ यू सो, सो यू रीप। बोये पेड़ बबूल का, आम कहाँ से होय। है ना…? जय माता दी।

— प्रिया देवांगन “प्रियू”

प्रिया देवांगन "प्रियू"

पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़ [email protected]