गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

सजा दरबार मैया का, बहुत अच्छे नज़ारे हैं
भरे पंडाल अब देखो, खड़े आ भक्त सारे हैं

झुका है शीश चरणों में कृपा कर दो हमीं पर तुम
रहो तुम तो सदा सुख से, किये माँ ने इशारे हैं

सजा आसन सजी मैया, सुहाती देख लो कितनी
लगाया है अभी टीका, चरण भी अब पखारे हैं

लगा कर धूल ही माथे, कहें चंदन लगाया है
बना लो दास ही अपना, सभी हम तो तुम्हारे हैं

मिटा दो कष्ट ही सारे, भरो झोली सभी की अब
हमें दिल में बसा लो अब, सभी माँ यह पुकारे हैं

रहे रोशन जहाँ अपना, सदा तेरे इसी दम पर
तुम्हारे ही इशारों पर चमकते चाँद तारे हैं

रहे मझधार में नैया, लगाना पार तब आकर
कभी छोड़ो न हमको तुम, सभी तेरे सहारे हैं

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’