शून्य
प्रेम हमेशा से खामोश है
जो शोर मचाये
वो प्रेम नहीं
वो कुछ और है……!
प्रेम हृदयतल से निकला
मधुर लय है
रह-रहकर मन को जो विचलित करने
वो कुछ और है…….!
प्रेम खोने का नाम है
बार-बार कुछ पाने को
जी मचल जाए
वो कुछ और है……….!
प्रेम का मर्म हम है
जब हर बात में
मैं ही मैं है
वो कुछ और है…….!
प्रेम मिट जाने का नाम है
मिटा देने का भाव…
वो कुछ और है…..!
रागी को वैरागी
असंख्य को शून्य
उस शून्य में जो विलीन हो जाए
— विभा कुमारी “नीरजा”
वही है प्रेम….!