कहानी

कहानी – मुखौटा

बहुत नाज था मनु को अपने बहु बेटे के उपर,बड़े गर्व से दोनों के बारे में बात किया करती थी। जब से शादी करके बहु को घर में लाए थे घर स्वर्ग सा बन गया था। सुबह सारा काम करके बहु दफ्तर जाया करती थी। बहुत प्यार से कहती थी, ”मांजी आप छोड़ो मैं सब निपटा लूंगी,मेरे जाने के बाद तो आप ही देखती हैं सब काम, प्लीज़ आप आराम से बैठो।” मनु मन ही मन खुश हो उसके बोले शब्दों की मानसिक जुगाली करती रहती सारा दिन।

 बेटे की शादी को तीन साल हो गए थे तो उस की नज़र बहु के चलने फिरने पर रहने लगी, मनु तो बहुत बारीकी से उसके चलने फिरने के साथ साथ खाने पीने पर भी ध्यान रखती थी। कब कितना खाती हैं,खट्टा ज्यादा खाती हैं मीठा,बस सब को एक सुंदर बच्चे की उम्मीद बंध गई थी।वैसे भी बहु बेटा दोनों ही सुंदर थे तो बच्चा भी तो सुंदर ही होगा यही सोच इतराती थी वह।

और वाकई कुछ दिनों बाद बेटा मिठाई ले कर घर आया और बहु ने पांव छू कर मिठाई खिला कर खुश खबरी दी थी।घर में सब बहुत खुश थे ।अब मनु भी बहु का बहुत खयाल रखती थी ,उसका खाने पीने से लेकर दवाइयों तक,सब याद कर के दे दिया करती थी।दफ्तर जाने के समय उसका नाश्ते का डिब्बा भर देती थी उसकी पसंद की बानगी से।

  कुछ महीने बाद उसकी तबीयत थोड़ी खराब रहने लगी तो मनु ने उसे दफ्तर से छुट्टी ले घर पर आराम करने की सलाह दी और वह मान भी गई। एक दिन मनु को बोली,” मांजी आप अकेले ही घर का सारा काम करती रहती हैं, बाई का भी आने का कोई ठिकाना नहीं हैं। मैं सोचती हूं मेरी मम्मी को बुला लूं।” मनु भी उससे सहमत हो गई और दो दिन बाद उसकी ’मम्मी’ परमीत यानी पम्मी आ गईं।आते ही बेटी को देख गले मिल रोने लगी और बोली,” बेटा कितनी पतली हो गई हो तुम? अब मैं आ गईं हूं न, खूब खयाल रखूंगी तुम्हारा।” मनु को थोड़ा बुरा भी लगा क्योंकि वह भी बड़े मन से खयाल रखती थी बहु का।

 सुबह हुई तो पम्मीजी के कमरे से खर्राटों की आवाज बैठक के कमरे तक आ रही। थी।वह रसोई घर में गई और चाय दूध आदि बनाने में व्यस्त थी कि पम्मी आ गई और बोली,” गद्दा बड़ा सख्त था सारी रात सो नहीं पाई हूं मैं।” कहकर जोर से उबासी ली, मनु मन ही मन हंस रही थी।

कुछ दिनों में ही बहु को अस्पताल ले जाना पड़ा और बहुत सुंदर बेटी ले कर वह तीन दिन बाद घर आ गईं।बहु के कमरे में वह सब चीजें जो जच्चा के लिए फायदेमंद होती वह बना बना के पहुंचाती थी किंतु पम्मिजी बेटी के कमरे से हिलने का नाम न लेती थी।जिस मां को बेटी कमजोर लगी थी वही बेटी के लिए बनी हर बानगी खाए जा रही थी।एक दिन मनु बहु के लिए बदन का हलवा के जा रही थी कि उसके कानों में आवाज पड़ी तो वह दरवाजे पर रुक गईं,”क्यों नहीं कह देती अपनी सास से कि अब तुम उनके साथ नहीं रहोगी,कब से बोल रही हूं कि तुम्हारे पापा के जाने के बाद अपना घर खाली हैं दामाद जी के साथ आ वहीं रह लो, लेकिन तुम हो कि सुनती ही नहीं।”पममीजी ने बात खत्म की तो बहुरानी बोली,” तुम नहीं समझोगी मां ,इनको तो मैंने मना लिया हैं लेकिन समय आने और निकल लेंगे।यहां भी बाबूजी बहुत कुछ छोड़ गए हैं उसका भी तो खयाल रखना होगा।बस कभी भी मांजी के दस्तखत करवा के आपके पास आ जायेंगे।”मन्नू सुनते ही सन्न रह गईं बहु के मुखौटे को उतरता देख।

— जयश्री बिरमी

जयश्री बिर्मी

अहमदाबाद से, निवृत्त उच्च माध्यमिक शिक्षिका। कुछ महीनों से लेखन कार्य शुरू किया हैं।फूड एंड न्यूट्रीशन के बारे में लिखने में ज्यादा महारत है।