लघुकथा

ट्रिग्नोमेट्री

कॉलेज में एडमिशन हुआ, कुछ सहेलियों के साथ रोज ही जाने लगी। मैथ्स मेरा सब्जेक्ट था। घर मे पापा बहुत नियम कायदे वाले थे, लड़को से बात नही करने की हिदायत देते रहते थे। पर मजबूरन उस शहर में सिर्फ एक ही कॉलेज था, को एजुकेशन….क्या करते। मैंने ही मन मे ठाना था, सिर्फ पढ़ाई ही करूँगी, और कुछ नही।

दो चार दिन मुझे अकेले कॉलेज जाना पड़ा। मेरी गणित की प्रोफेसर एक महिला ही थी अधिक उम्र भी नहीं थी। एक दिन एक लड़के ने रास्ते से ही मुझे बात करनी चाही, “आप वहीं हैं न, जो मास्टरजी की बेटी हैं।”

“मैं भी आपकी क्लास में हूँ, कोई पुस्तक की जरूरत हो तो बताइएगा।”

रोज कुछ न कुछ बाते सुनकर मैं पहचानने लगी कि ये लाइन मार रहा। एक दिन मुझे एक पन्ने में कुछ लिखकर कुछ पकड़ाया, इसमे एक ट्रिग्नोमेट्री का प्रश्न है, मुझसे नही हो रहा, प्लीज हल कर देना। 

मैंने क्लास में आकर एक नजर उस कागज़ को देखा और गणित की प्रोफेसर महोदया को पकड़ाया, “मैम ये मनोज का ट्रिग्नोमेट्री का प्रश्न हल कर दीजिए।”

फिर तो मज़ा आ गया, मैम ने जोर से पूरी क्लास को सुनाया,  जानू, तुम बहुत खूबसूरत हो, क्या अपना समय एक्स,वाई, जेड, साइन थीटा, कॉश थीटा में बर्बाद कर रही हो। आओ तुमको मूवी दिखाऊँ, मसाला डोसा खिलाता हूँ। मैं सिर्फ तुम्हे देखने कॉलेज आता हूँ।

उसके बाद ये मनोज जी उस कॉलेज में कभी नही दिखे।

— भगवती सक्सेना गौड़

*भगवती सक्सेना गौड़

बैंगलोर