कविता

धान के महिमा

पींयर –पींयर धनहा बाली।

बिहना पड़थे सूरज लाली।।

घाम अगासा के वो सहिथे।

धान सोन कस चमकत रहिथे।।

चिरई–चिरगुन गाना गाथे।

घेरी–बेरी खेत म जाथे।।

पक्का–पक्का बीजा पाथे।

फोर–फोर के जम्मों खाथे।।

किसम–किसम के धान ल बोथे।

अब्बड़ पैदावार ह होथे।।

चारों मुड़ा सुघर ममहाथे।

देख किसनहा खुश हो जाथे।।

धरती के कोरा हरियाथे।

सुख के ॲंचरा कस लहराथे।।

— प्रिया देवांगन “प्रियू”

प्रिया देवांगन "प्रियू"

पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़ [email protected]