धान के महिमा
पींयर –पींयर धनहा बाली।
बिहना पड़थे सूरज लाली।।
घाम अगासा के वो सहिथे।
धान सोन कस चमकत रहिथे।।
चिरई–चिरगुन गाना गाथे।
घेरी–बेरी खेत म जाथे।।
पक्का–पक्का बीजा पाथे।
फोर–फोर के जम्मों खाथे।।
किसम–किसम के धान ल बोथे।
अब्बड़ पैदावार ह होथे।।
चारों मुड़ा सुघर ममहाथे।
देख किसनहा खुश हो जाथे।।
धरती के कोरा हरियाथे।
सुख के ॲंचरा कस लहराथे।।
— प्रिया देवांगन “प्रियू”