गीत/नवगीत

परदेसी मुसाफिर

परदेसी मुसाफिर तेरा कहां ठिकाना

परदेस हुआ अपना देस हुआ बेगाना

बिन तेरे सूना है आंगन सूना है गलियारा

रंग लगे होली के फीके दीवाली अंधियारा

राखी ले सूनी आंखों से राह निहारे बहना

परदेसी ,,,,,,,,,,,,,,,,.,

कांपते हांथों से मां टटोलती तेरे खिलोने

देखकर तेरे पिता के भीगते आंखों के कोने

तू बैठा है सब बिसराए भूला आना जाना

परदेसी ,,,,,,,,,,,,,,,,

इंतज़ार करते पत्नी के होश हुये बेहोश

पापा कह कह के बच्चों के लब हुये ख़ामोश

सन्नाटे में डूबा घर लगता है वीराना 

परदेसी ,,,,,,,,,,,,,,,,,,

तेरे ख़ातिर मात पिता ने सब कुछ छोड़ दिया

तेरा ग़म सीने में लेकर शमशान का रुख़ किया

अंतिम पल भी तू न आया हो गये रवाना

परदेसी ,,,,,,,,,,,,,,,,.

— पुष्पा “स्वाती”

*पुष्पा अवस्थी "स्वाती"

एम,ए ,( हिंदी) साहित्य रत्न मो० नं० 83560 72460 [email protected] प्रकाशित पुस्तकें - भूली बिसरी यादें ( गजल गीत कविता संग्रह) तपती दोपहर के साए (गज़ल संग्रह) काव्य क्षेत्र में आपको वर्तमान अंकुर अखबार की, वर्तमान काव्य अंकुर ग्रुप द्वारा, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री के कर कमलों से काव्य रश्मि सम्मान से दिल्ली में नवाजा जा चुका है