समर्थ भारत से विश्व कल्याण
राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ अपने शताब्दी वर्ष की तरफ अग्रसर है. विजय दशमी के दिन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉ हेडगेवार ने इसकी स्थापना की थी. विजय दशमी के दिन प्रभु श्री राम ने लंका विजय की थी.असत्य अहंकार अधर्म पर यह सत्य और धर्म की विजय थी. डॉ हेडगेवार संघ के माध्यम से भारत के इसी स्वाभिमान को जागृत करना चाहते थे. संघ लगातर इस दिशा में बढ़ रहा है. यह दुनिया का सबसे बड़ा संगठन है. विजय दशमी पर मुख्य समारोह नागपुर में होता है. इस समारोह में सर संघचालक जी का मार्गदर्शन मिलता है. इस बार प्रसिद्ध गायक पद्मश्री शंकर महादेवन मुख्य अतिथि थी. यह नया अनुभव था. उन्होंने भगवती श्लोक से अपना संबोधन शुरू किया. मैं रहूं ना रहूं यह देश रहना चाहिए,,इस गीत से संबोधन पूरा किया. कहा कि भारत का पूरी दुनिया में प्रभाव बढ़ा है. दुनिया में भारतीयों को बहुत सम्मान मिलने लगा है. डॉ मोहन भागवत ने जी 20 शिखर सम्मेलन का उल्लेख किया.भारत के सनातन चिंतन के प्रति दुनिया का आकर्षण बढ़ा है. वसुधैव कुटुम्बकम का विचार भारतीय विरासत है. इस पर अमल से ही विश्व में शांति सौहार्द सम्भव है. अन्य कोई मार्ग नहीं है. इसी प्रकार पर्यावरण समस्या का समाधान भी भारतीय चिंतन से हो सकता है. लेकिन इसके पहले भारत को अपनी विरासत पर गर्व करना सीखना होगा. उसके अनुरूप आचरण करना होगा. सरकार इस दिशा में कार्य कर रही है. प्रशासन और समाज को भी जागरूक होना पड़ेगा. आज भी कल्चरल कम्युनिस्ट सनातन विरोधी सक्रिय हैं. इनसे सावधान रहने की आवश्यकता है. ऐसे तत्व भारत को कमजोर करना चाहते हैं. भारतीय संस्कृति का विरोध करते हैं. भारत विरोधी विमर्श चलाते हैं. देश हित में इनका प्रतिकार करना होगा भारत के विशिष्ट विचार व दृष्टि के कारण संपूर्ण विश्व के चिंतन में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की दिशा जुड़ गई. भारत को विश्व के मंच पर एक प्रमुख राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठा मिल रही है. एशियाई खेलों में पहली बार भारत ने सौ अधिक
पदक जीते हैं. चंद्रयान की सफ़लता उभरते भारत की शक्ति,बुद्धि तथा युक्ति का प्रमाण है. वैज्ञानिक तथा उनको बल देनेवाला नेतृत्व संपूर्ण देश में अभिनंद हो रहा है। हमारे संविधान की मूल प्रति के एक पृष्ठ पर जिनका चित्र अंकित है ऐसे धर्म के मूर्तिमान प्रतीक श्रीराम के बालक रूप का मंदिर अयोध्याजी में बन रहा है. बाइस जनवरी को मंदिर के गर्भगृह में श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा होगी. श्रीराम अपने देश के आचरण की मर्यादा के प्रतीक है, कर्तव्य पालन के प्रतीक है. स्नेह व करुणा के प्रतीक है. राम मंदिर में श्रीरामलला के प्रवेश से प्रत्येक ह्रदय में अपने मन के राम को जागृत करते हुए मन की अयोध्या सजे व सर्वत्र स्नेह, पुरुषार्थ तथा सद्भावना का वातावरण उत्पन्न हो ऐसे, अनेक स्थानों पर परन्तु छोटे छोटे आयोजन करने चाहिए.भारत भौतिक व आध्यात्मिक उन्नति के पथ आगे बढ़ रहा है. भारत की पहचान को, हिंदू समाज की अस्मिता को बनाए रखने का विचार स्वाभाविक है. विरासत के अनुरूप भारत का सामर्थ्य बढ़ाने की आवश्यकता है. इस दिशा में देश अग्रसर हो रहा है. यह प्रगति बाधित नहीं होनी चाहिए. विश्व में आतंक,युद्ध की समस्या है. यूक्रेन के अथवा गाझा पट्टी के युद्ध जैसे कलहों का कोई निदान दिख नहीं रहा है.प्रकृतिविरुद्ध जीवनशैली, अमर्यादित उपभोगों के कारण नई-नई शारीरिक व मानसिक बीमारियाँ उत्पन्न हो रही हैं. विकृतियाँ व अपराध बढ़ रहे हैं । आत्यंतिक व्यक्तिवाद के कारण परिवार टूट रहे है । प्रकृति के अमर्याद शोषण से प्रदूषण, वैश्विक तापमानवृद्धि, ऋतुक्रम में असंतुलन व तज्जन्य प्राकृतिक हादसे प्रतिवर्ष बढ रहे हैं । आतंकवाद, शोषण और अधिसत्तावाद को खुला मैदान मिल रहा है । अपनी अधूरी दृष्टि को लेकर विश्व इन समस्याओं का सामना नहीं कर सकता यह स्पष्ट हुआ है. इसलिए अपने सनातन मूल्यों व संस्कारों के आधार पर, भारत अपने उदाहरण से वास्तविक सुख शांति का नवपथ विश्व को दिखाए यह अपेक्षा जगी है. सुरक्षा, पर्यावरण, जन सांख्यिकी व विकास की दृष्टि से इस पूरे क्षेत्र को एक इकाई मानकर हिमालय क्षेत्र का विचार करना होगा. भारतीय मूल्यों पर तथा भारत की समग्र एकात्म दृष्टि पर आधारित विकास पथ भारत को बनाना पड़ेगा । यह भारत के लिए सर्वथा उपयुक्त तथा विश्व के लिए भी अनुकरणीय प्रतिमानक बन सकेगा
समाज में भी कृषि, उद्योग और व्यापार के, तत्संबंधित सेवाओं के क्षेत्र में, सहकारिता व स्वरोजगार के क्षेत्रों में, नए सफल प्रयोगों की संख्या वृद्धि भी निरंतर हो रही है । परंतु प्रशासन के क्षेत्र में, सभी क्षेत्रों में चिंतन करनेवाले व दिशा देने वाले बुद्धिधर्मियों में, इस प्रकार की जागृति की और अधिक आवश्यकता है । शासन की ‘स्व’ आधारित युगानुकूल नीति, प्रशासन की तत्पर, सुसंगत व लोकाभिमुख कृति तथा समाज का मन, वचन, कर्म से सहयोग व समर्थन ही देश को परिवर्तन की दिशा में आगे बढ़ाएगा। भारत के उत्थान का प्रयोजन विश्व-कल्याण ही रहा है. जबकि कम्युनिस्ट विश्व की सभी सुव्यवस्था,मांगल्य, संस्कार, संयम के विरोधी हैं. ऐसे तत्व प्रचार व प्रसार के माध्यमों तथा अकादमियों को हाथ में लेकर देशों की शिक्षा, संस्कार,राजनीति व सामाजिक वातावरण को भ्रमित करते हैं. इन आसुरी शक्तियों को समाज और राष्ट्र विरोधी शक्तियों का सहयोग मिलता है. मणिपुर हिंसा में यही दिखाई दिया था. लगभग एक दशक से शांत मणिपुर में अचानक यह आपसी फूट की आग कैसे लग गई. मणिपुरी मैतेयी समाज और कुकी समाज के इस आपसी संघर्ष को सांप्रदायिक रूप देने का प्रयास क्यों और किसके द्वारा हुआ. वर्षों से वहाँ पर सबकी समदृष्टि से सेवा करने में लगे संघ जैसे संगठन को बिना कारण इसमें घसीटने का प्रयास करने में किसका निहित स्वार्थ है. इस सीमा क्षेत्र में नागाभूमि व मिजोरम के बीच स्थित मणिपुर में ऐसी अशांति व अस्थिरता का लाभ प्राप्त करने में किन विदेशी सत्ताओं को रुचि हो सकती ह. समस्या के समाधान के लिए बहुआयामी प्रयासों की आवश्यकता रहेगी. डॉ मोहन भागवत ने कहा कि संघ के स्वयंसेवक तो समाज के स्तर पर निरंतर सबकी सेवा व राहतकार्य करते हुए समाज की सज्जनशक्ति का शांति के लिए आह्वान रहे हैं.सबको अपना मानकर, सब प्रकार की कीमत देते हुए समझाकर, सुरक्षित, व्यवस्थित, सद्भाव से परिपूर्ण और शान्त रखने के लिए ही संघ का प्रयास रहता है. एकता की परंपरा हमारी विरासत में हमको मिली है. हमारी सर्व समावेशक संस्कृति है.पूजा, परंपरा, भाषा, प्रान्त, जातिपाती इत्यादि भेदों से ऊपर उठकर, अपने कुटुंब से संपूर्ण विश्वकुटुंब तक आत्मीयता को विस्तार देनेवाली हमारी आचरण की व जीवन जीने की रीति है. हमारे पूर्वजों ने अस्तित्व की एकता के सत्य का साक्षात्कार किया । उसके फलस्वरूप शरीर, मन, बुद्धि की एक साथ उन्नति करते हुए तीनों को सुख देनेवाला, अर्थ, काम को साथ चलाकर मोक्ष की तरफ अग्रेसर करनेवाला धर्मतत्व उनको अवगत हुआ । उस प्रतीति के आधार पर उन्होंने धर्मतत्व के चार शाश्वत मूल्यों सत्य, करुणा,शुचिता व तपस को आचरण में उतारनेवाली संस्कृति का विकास किया. भारतभूमि को हमारे संस्कारों की अधिष्ठात्री माता मानकर उसकी हम भक्ति करते हैं.समाज की स्थाई एकता अपनत्व से निकलती है. हिंसा भड़काने वाली टूल किट्स से सावधान रहने की आवश्यकता है. क्योंकि ये परस्पर अविश्वास और द्वेष को बढ़ाने का काम करते है.
डॉ मोहन भागवत ने कहा कि आगामी लोकसभा चुनाव में समाज को विभाजित करनेवाली इन बातों से बचना चाहिए.मतदान करना हर नागरिक का कर्तव्य है. देश की एकात्मता, अखंडता, अस्मिता तथा विकास के मुद्दों पर विचार करते हुए अपना मत दें. संघ के शताब्दी वर्ष में समाज के आचरण,उच्चारण में देश के प्रति अपनत्व की भावना प्रकट हो. कहीं भेदभाव ना रहे. स्वदेशी के आचरण से स्व-निर्भरता व स्वावलंबन बढ़े. फिजूलखर्ची बंद हो. देश का रोजगार बढ़े व देश का पैसा देश में ही काम आए.इसीलिए स्वदेशी का भी आचरण घर से ही प्रारंभ होना चाहिए. संघ के स्वयंसेवक आनेवाले दिनों में समाज के अभावग्रस्त बंधुओं की सेवा करें. नागपुर के अखाड़ों से तैयार हुआ संघ वर्तमान समय में विराट रूप ले चुका है। संघ का नामकरण ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ भी स्थापना के अगले वर्ष स्त्रह अप्रैल को हुआ था. इसी दिन हेडगेवार को सर्वसम्मति से संघ प्रमुख चुना गया. इसके तीन वर्ष बाद वह सरसंघचालक बनाए गए थे. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जरीपटका मंडल और भारतोद्वारक मंडल इन तीन नामों पर विचार हुआ. मतदान द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम रखने पर निर्णय हुआ. संघ परिवार में अस्सी से अधिक आनुषांगिक संगठन हैं. दुनिया के लगभग चालीस देशों में संघ सक्रिय है. वर्तमान समय में संघ की करीब साठ
हजार दैनिक शाखाएं लगती हैं. लगभग तेरह हजार साप्ताहिक मंडली और आठ हजार मासिक शाखाएं भी हैं. चीन के हमले के समय संघ के स्वयसेवको ने सीमा क्षेत्रो तक रसद पहुंचाने में सहायता की थी. इससे प्रभावित होकर प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने अगले वर्ष गणतन्त्र दिवस की परेड में संघ को बुलाया था. इसी प्रकार पाकिस्तान से युद्ध के दौरान दिल्ली में ट्रैफिक व्यवस्था सुधारने में संघ ने सहायता की थी.विजयादशमी के दिन संघ स्थापना के साथ ही शस्त्र पूजन की परम्परा निभाई जाती है.
— डॉ दिलीप अग्निहोत्री