धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

विजयदशमी और रावणवध

शोध करने पर ज्ञात होता है कि विजयदशमी का रावण वध और राम की विजय के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है । जनसामान्य में यह भ्रम फैला हुआ है कि विजयदशमी के दिन श्रीराम ने रावण का वध किया था ।
आइये देखते हैं,
श्रीराम ने सुग्रीव के साथ यह प्रतिज्ञा की थी कि मैं बाली को मार दूँगा और तुम मेरी पत्नि सीता का पता लगाने में मेरी सहायता करना । बाली के मरने के बाद सुग्रीव का राज्याभिषेक हुआ ।
उस समय श्रीराम ने कहा, “अब यह वर्षा ऋतु का पहला मास श्रावण (सावन) आ गया है ।यह समय शत्रु पर उद्योग-आक्रमण अथवा सीता की खोज करने का नहीं है । अब तुम अपनी सुन्दर नगरी में चले जाओ और मैं इस परम सुन्दर पर्वत की गुफा में लक्ष्मण के साथ रहूँगा । हे सुग्रीव ! तुम कार्तिक मास के आने पर सीता के अपहरण करने वाले रावण के वध करने में प्रयत्न करना ।”
वर्षा के चार मासों (श्रावण, भाद्रपद, आश्विन तथा कार्तिक) को चातुर्मास कहते हैं। इनके बीतने पर सीता की खोज करने का आदेश श्रीराम ने सुग्रीव को दिया । अतः आश्विन (असोज) मास की दशमी को रावण का वध किसी भी प्रकार से नहीं माना जा सकता है ।
वर्ष के चार मास बीतने पर शरद् ऋतु में स्वच्छ आकाश देखकर श्रीराम लक्ष्मण से कहते हैं, “हे! राजपुत्र ! आपस में वैर करने वाले तथा विजय चाहने वाले राजाओं के उद्योग (आक्रमण) करने का यही समय है ।
(बाल्मीकि रामायण किष्किन्धा० सर्ग २६)
लंका में हनुमान जी का प्रवेश
इसके पश्चात् श्रीराम का सन्देश पाकर सुग्रीव ने अपनी सेना को आदेश दिया कि सीता के अपहरण करने वाले का पता लगाओ और इस कार्य में एक मास से अधिक समय नहीं लगाना है । जो इस आदेश का उल्लंघन करेगा, उसे मृत्युदंड दिया जायेगा । हनुमान के लंका में प्रवेश का दिन कौन सा था ? बाल्मीकि रामायण के सुन्दरकाण्ड में पांचवें सर्ग के अनुसार वह दिन पौर्णमासी या पौर्णमासी के निकट का दिन था । कार्तिक मास में सुग्रीव द्वारा दी गई एक मास की अवधि की पूर्ति को देखते हुए वह दिन मार्ग शीर्ष की पौर्णमासी या उसके निकटवर्ती चतुर्दशी आदि का ही सम्भव है । इससे स्पष्ट है कि रावण का वध आश्विन मास की दशमी को कदापि नहीं हो सकता है ।
रावण वध और श्रीराम का अयोध्या प्रवेश
रावण वध के पश्चात् विभीषण ने श्रीराम से कुछ दिन लंका म़े रहकर विश्राम करने की प्रार्थना की, उस समय श्रीराम ने कहा, “अब मैं ठहर नहीं सकता, मैं अयोध्या शीघ्र जाऊंगा, क्योंकि भ्राता भरत मेरी प्रतीक्षा कर रहे होगें ।”
विभीषण ने प्रार्थना की, “मैं आप सभी को पुष्पक विमान से एक दिन में अयोध्या पहुँचा दूंगा ।”
(बा० रामा० युद्ध० काण्ड सर्ग १२४)
इसके पश्चात् श्रीराम लंका से चलकर जब भारद्वाज के आश्रम में पहुंचे हैं, उस समय का वर्णन करते हुए रामायण में लिखा है –
श्रीराम चौदहवें वर्ष के पूरा होने पर पंचमी तिथि को भारद्वाज मुनि के आश्रम में पहुँचे ।
पूर्णे चतुर्दशे वर्षे पञ्चम्यां लक्ष्मणाग्रजः।
भारद्वाजाश्रमं प्राप्य ववन्दे नियतो मुनिम् ।।
(वा० रामा० युद्ध० १२७ सर्ग)
श्रीराम को १४ वर्ष उसी मास में पूर्ण हो सकते हैं, जिस मास में राम को वनवास हुआ या राजतिलक होना था । रामायण के अनुसार वह मास चैत्र मास था ।
अर्थात् श्रीराम के राजतिलक का मास चैत्र था, और उसी मास राम को वनवास दिया गया । अतः १४ वर्ष की वनवास की समाप्ति भी चैत्र मास में ही सम्भव है । इस प्रकार रावणवध एवं अयोध्या वापिसी का मास भी चैत्र ही था । भारद्वाज के आश्रम में भी राम के पहुंचने की तिथि पंचमी चैत्र मास की ही थी । इस प्रकार प्रामाणिक विवेचन से स्पष्ट है कि रावण वध का दिन आश्विन मास की दशमी न होकर चैत्र मास था और इसी मास की चतुर्दशी को रावण का वध तथा अमावस्या को रावण की अन्त्येष्टि हुई थी ।
श्रीराम का राज्याभिषेक चैत्र में होना था,
चैत्रः श्रीमानयं मासः पुण्यः पुष्पितकाननः ।
यौवराज्याय रामस्य सर्वमेवोपकल्प्यतान् ।।
(बा० रामा० अयो० ३०/४)
भावार्थ – महाराज दशरथ महर्षि वशिष्ठ को कहते हैं, “इस पवित्र चैत्रमास में जिसमें वन पुष्पों से सुशोभित हो रहे हैं, आप राम के राज्याभिषेक की तैयारी कीजिये ।”
अतः चौदह वर्ष चैत्र मास में ही पूर्ण होगें । यदि यह कहा जाये कि युद्ध में विलम्ब हो गया तो भी ठीक नहीं, क्योंकि भरत जी ने चित्रकुट में श्रीराम से कह दिया था कि यदि आपने एक दिन की भी देर की तो मैं जीवित जल जाऊंगा । देखिये,
चतुर्दशे हि सम्पूर्ण वर्षेऽहनि रघूत्तम ।
न द्रक्ष्यामि यदि त्वां तु प्रवेक्ष्यामि हुताशनम् ।।
(बा० रामा० अयो० ११२/२५)
भावार्थ-“यदि चौदह वर्ष समाप्त होते ही आप अयोध्या नहीं पहुँचे तो मैं अग्नि में प्रविष्ट होकर भस्म हो जाऊँगा ।”
इससे सिद्ध होता है कि न तो विजयादशमी के अवसर पर रावण मारा गया और न दीपावली के अवसर पर राम-राज्याभिषेक ही हुआ था । हाँ, यह बात ठीक है कि विजयादशमी के दिन श्रीराम ने प्रस्थान किया था,
श्रावणर्क्षे तु पूर्णायां काकुत्स्थः प्रस्थितो यतः।
उल्लंघयेयुः सीमानं तद्दिनर्क्षे ततो नराः ।।
अब आप स्वयं निर्णय करें कि दशहरा से रावण का क्या सम्बन्ध है।