ये कैसी विजयादशमी
आप सभी मुझको रावण कहते हैंकुछ ग़लत भी नहीं कहते हैंऔर मुझे यह कहते हुए फक्र भी हैकि हाँ! मैं रावण हूँ।पर जब यही बात मैं आपको कहता हूँतो आप चिढ़ते क्यों हैं?अपने दिल पर हाथ रख कर कहिएकि हम हमसे दो चार कदम आगे नहीं हैं।मैंने जो किया डंके की चोट पर कियाआमने सामने आकर युद्ध भी कियाअपने स्वार्थ में अपनों को मरवा दियाऔर खुद भी मारा गया।फिर भी श्री राम ने मुझसे घृणा नहीं कीहमारा राज नहीं हड़पाहमारे साथ नैतिक धर्म निभायाहमें मारकर भी हमारा उद्धार कर दिया।अब तुम अपने आप को देखोतुम सब क्या कर रहे होसच सामने आने पर मुंह चुराते होघृणा के पात्र बनते होनीति नियम सिद्धांतों को ताक पर रखते होपकड़े जाने पर मुंह चुराते हो,शराफत का ढोंग करने में महारत हासिल है तुम्हेंतभी इतने दिनों से मेरी मौत परभरोसा नहीं कर पा रहे होहर साल मेरा पुतला जला रहेजिनकी भक्ति का दंभ है तुम्हें उन्हीं श्री राम जी को मोहरा बना रहे हो।तुम्हारी बेशर्मी की बात मैं क्या करुँमुझसे बड़ा रावण बनने की जुगत भिड़ाते रहते होअपने रावण को राम जी को ओट में छुपाते होऔर रावण को रावण कहकर बहुत मुस्कराते होआज भी मेरे खौफ से घबराते होतभी तो रावण को नहीं रावण का पुतला जलाते होपर अपने रावण को बड़ा सहेजें रहते होमनमानी करने का कीड़ा जब कभी काटने लगता हैतब अपने रावण का मुखौटा दिखाते होयह कैसी विडम्बना है किअपने रावण को जलाने की बात तो दूरउस पर अंकुश नहीं लगाते हो।जब हम तुम एक नाव पर सवार हैं जनाबतब मुझे रावण और खुद को सुधीर क्यों बताते हो?तुम ही बताओ किस मामले में खुद कोमुझसे ज्यादा खुद को श्रेष्ठ पाते होफिर रावण पर ही सारे आरोप लगाते होये कैसी विजयादशमी मनाते होऔर मुझे नहीं सिर्फ मेरा पुतला जलाते होआखिर किसको भरमाते हो।
आप सभी मुझको रावण कहते हैं
कुछ ग़लत भी नहीं कहते हैं
और मुझे यह कहते हुए फक्र भी है
कि हाँ! मैं रावण हूँ।
पर जब यही बात मैं आपको कहता हूँ
तो आप चिढ़ते क्यों हैं?
अपने दिल पर हाथ रख कर कहिए
कि हम हमसे दो चार कदम आगे नहीं हैं।
मैंने जो किया डंके की चोट पर किया
आमने सामने आकर युद्ध भी किया
अपने स्वार्थ में अपनों को मरवा दिया
और खुद भी मारा गया।
फिर भी श्री राम ने मुझसे घृणा नहीं की
हमारा राज नहीं हड़पा
हमारे साथ नैतिक धर्म निभाया
हमें मारकर भी हमारा उद्धार कर दिया।
अब तुम अपने आप को देखो
तुम सब क्या कर रहे हो
सच सामने आने पर मुंह चुराते हो
घृणा के पात्र बनते हो
नीति नियम सिद्धांतों को ताक पर रखते हो
पकड़े जाने पर मुंह चुराते हो,
शराफत का ढोंग करने में महारत हासिल है तुम्हें
तभी इतने दिनों से मेरी मौत पर
भरोसा नहीं कर पा रहे हो
हर साल मेरा पुतला जला रहे
जिनकी भक्ति का दंभ है तुम्हें
उन्हीं श्री राम जी को मोहरा बना रहे हो।
तुम्हारी बेशर्मी की बात मैं क्या करुँ
मुझसे बड़ा रावण बनने की जुगत भिड़ाते रहते हो
अपने रावण को राम जी को ओट में छुपाते हो
और रावण को रावण कहकर बहुत मुस्कराते हो
आज भी मेरे खौफ से घबराते हो
तभी तो रावण को नहीं रावण का पुतला जलाते हो
पर अपने रावण को बड़ा सहेजें रहते हो
मनमानी करने का कीड़ा जब कभी काटने लगता है
तब अपने रावण का मुखौटा दिखाते हो
यह कैसी विडम्बना है कि
अपने रावण को जलाने की बात तो दूर
उस पर अंकुश नहीं लगाते हो।
जब हम तुम एक नाव पर सवार हैं जनाब
तब मुझे रावण और खुद को सुधीर क्यों बताते हो?
तुम ही बताओ किस मामले में खुद को
मुझसे ज्यादा खुद को श्रेष्ठ पाते हो
फिर रावण पर ही सारे आरोप लगाते हो
ये कैसी विजयादशमी मनाते हो
और मुझे नहीं सिर्फ मेरा पुतला जलाते हो
आखिर किसको भरमाते हो।