रावण जी को नमन
हे रावण जी! आप मेरा नमन स्वीकार कीजिए। एक बार आप भी मेरे साथ जय श्री राम बोलिए और मेरी बात ध्यान से सुनिए। ईमानदारी से कहता हूं मैं आपके नीति नियम सिद्धांतों का कायल हूं, मैं भी आपकी ही तरह बेहद शरीफ ईमानदार, अपने नीति, नियम, सिद्धांतों के साथ थोड़ा जिद्दी हूं, हमारे आपके विचारों में बड़ी समानता है, इसीलिए मुझे तो आपमें कोई बुराई नजर नहीं आती। जिन्हें आपमें बुराई भर दिखती है, सच कहूं तो उनका अपनी बुराइयों की तरफ से लोगों का ध्यान भटकाने की कोशिश भर है। उन्हें शायद पता ही नहीं है कि आप वेद, शास्त्रों के प्रकांड पंडित थे, भोले नाथ के बड़े भक्त थे, लोग कहते हैं कि आपके घमंड ने आपसे बुरे कर्म कराये और भगवान श्री राम ने आपका वध आज आश्विन मास की तिथि दशमी के दिन कर दिया था। तब से आज के दिन को विजयादशमी/दशहरा के रूप में मनाते हैं और आपके पुतले को जलाते हैं।
पर मेरा मानना औरों से थोड़ा अलग है लोगों को आपका बस यही रुप दिखता है, पर मेरा नजरिया अलग है, इसमें कुछ खास बात तो नहीं, बस सबके देखने का नजरिया है।
अब मेरा नजरिया भी जान लीजिए। मैं समझता हूँ कि आपने सीताजी का अपहरण नहीं किया था, अपहरण तो सिर्फ बहाना था, असली मकसद तो आपको इसी बहाने से मोक्ष पाना था, मारीच का स्वर्ण मृग बनकर सीता को मोहित कराना, उनका लक्ष्मण रेखा पार कराने के लिए आपका ढोंगी साधु बनकर भरमाना, जटायु को अधमरा छोड़ देना और फिर सीताजी का अपहरण करना, लंका ले जाना, सीताजी को अपने राज महल से दूर सुरक्षित अशोक वाटिका में ठहराना, उनकी मर्यादा को भंग करने का प्रयास तक न कर शराफत का लंबरदार बनने का शौक तो नहीं था, अब आप इतने बेवकूफ भी तो नहीं थे कि मुफ्त में किसी को इतना इज्जत सम्मान देते , उसके पति को बिना सोचे समझे युद्ध के लिए ललकारते। घर हो या बाहर जिसने भी आपको समझाने की कोशिश की, आपने उसके सुझावों का ठुकराया, भ्राता विभीषण जब नीति अनीति पर आपको राजधर्म समझाने लगा, तब आपने उन्हें ऐसा ठुकराया कि उन्हें राम की शरण में जाना पड़ा, ये भी आपकी रणनीति का हिस्सा था, अपनी मौत का सूत्र भी तो राम जी को उपलब्ध कराना था, हनुमान की पूंछ में आग लगवाना, लंका को इतनी आसानी से जल जाने देना, अपनी ही भरी सभा में रामदूत अंगद कापैर उठाने के लिए खुद तत्पर होने को मैं आपका दंभ नहीं मानता। आप में लाख बुराइयां हों पर आप का चाल चरित्र चेहरा पाक साफ है,जो सिर्फ हमको ही क्यों दिखता है? यह अलग बात है कि लोग उसे नजरंदाज करते हैं और सिर्फ माता सीता के अपहरण के परिप्रेक्ष्य में आपका आंकलन करते हैं, मुझे लगता है वे शायद खुद को भरमा रहे हैं।
अब देखिए न राम जी ने आपको मारा ही नहीं तार भी दिया, फिर भी उन्होंने आपकी उपेक्षा नहीं की। पर लोग आपके पुतले को हर साल जलाते हैं, निश्चित ही खुद को गुमराह करते हैं, हर गलत काम के साथ आपका नाम जोड़कर उदाहरण देते हैं। यह विडंबना नहीं तो क्या है कि लोग अपना चाल चरित्र और चेहरा नहीं देखते हैं, झूठ का आवरण ओढ़कर जाने कितने गलत काम करते हैं, और दशहरा/विजयदशमी के नाम पर आपका पुतला जलाने वालों की भीड़ में बड़ी शान से आगे रहकर नेतागीरी का पाठ सीखते हैं।
पर इन सबको कौन समझाए, जो श्रीराम के हाथों मरकर एक बार पहले ही तर गया हो, फिर किसकी इतनी औकात है जो मरे ही नहीं तरे भी हुए को मार सके। फिर भी लोग आपके पुतले को मारते जलाते और मन की भंडास जरुर निकाल कर आज भी खुश हो रहे हैं और यकीन है आगे ऐसा ही करेंगे और खुश भी होंगे। अब फिर बात वहीं आकर अटक गई कि इन लोगों के भीतर बैठा इनका जीवित रावण इनके ही द्वारा अनदेखा किया जा रहा है।उसे कोई जलाने की उत्सुकता आखिर कोई क्यों नहीं दिखाता ?
चलिए वो भी मैं ही बताता हूँ कि वो इसलिए कि वे आज आपकी बराबरी करने को बेचैन हो रहे हैं, पर ये भूल जाते हैं कि वे उतने ज्ञानी नहीं हैं, जितना कि आप।
आप ने तो अपने वंश कुल कुटुंब का उद्धार श्रीराम के हाथों करा दिया। और ये सिर्फ स्वार्थ वश अपनी नाक ऊंची करने की फिराक में रहते हैं, इन्हें राम जी और उनकी भक्ति या उनके आदर्श की कोई फिक्र नहीं है। उन्हें भी पता है कि आपका पुतला फूंकने से आप कभी मर ही नहीं सकते, आप तो अमर हो चुके हैं, ये ऐसे ही पुतले फूंकते रहेंगे, अपने भीतर के रावण को सहेजते रहेंगे और खुद को गुमराह करते रहेंगे।
आप धन्य हैं आपको मेरा नमन वंदन है, जिस पर रामकृपा हो उसे हम मिटाने वाले भला कौन हैं?हम तो भले आदमी हैं और जय श्री राम बोलने के साथ ही एक बार फिर से आपको, आपकी सोच, सहनशीलता और सफलता के साथ आपके नाम को भी नमन करते हैं।
विजय दशमी की आपको भी शुभकामनाएओं के साथ पुनः नमन करते हुए आपसे विदा लेते हैं। आपने मुझे इतनी देर तक बड़े धैर्य से झेला इसके लिए आपका धन्यवाद करते हुए अब चलते हैं।