सामाजिक

कलयुगी रावण

रावण का नाम आते ही हमारे मन में माता सीता को जंगल से हरण कर ले जाने वाले मायावी राजा रावण की संकल्पना आंखों के सामने तैरने लगती है। बावजूद इसके कि रावण भगवान भोलेनाथ का परम भक्त, प्रकांड विद्वान, बलशाली किंतु राक्षस कुलधारी होने के साथ लंका का राजा था। सामान्यतया यदि हम विचार करें तो उसकी प्रवृत्ति ही राक्षसी थी, लंकाधिपति होने का दंभ था, मायावी थी। हठी, जिद्दी भी था। लेकिन उसे अपने कर्मों का दंड तो भोगना ही पड़ता। इतना सब होने के बाद भी उसे भगवान राम के हाथों मरकर मोक्ष भी मिला जिसका सौभाग्य अच्छे ऋषि मुनियों को भी नहीं मिलता। निश्चित ही मेरा मानना है कि आखिर उसके कुछ तो ऐसे कर्म जरुर रहे होंगे, जिसके कारण उसे यह गौरव मिला।

     रावण का अति आत्मविश्वास और अपनों की सलाह के साथ उनकी उपेक्षा उसकी मौत का कारण बना ।

      अब आइए आज के कलयुगी रावणों की बात करें तो इस कलयुग में रावणों की फौज का विस्तार होता जा रहा है, जिधर नजर डालिए रावण दिख ही जाता है लेकिन आज के कलयुगी रावण आधुनिकता की ओट में राम का आवरण ओढ़कर मर्यादा का दंभ भरते हुए अपने कृत्यों से रावण को भी शर्मिंदा कर रहे हैं। शिक्षा, संस्कृति, विकास के बाद भी ऐसे रास्तों की  मानसिकता जानवरों जैसी है।

   रावण के समय में क्या अकेला रावण ही राक्षस था नहीं, फिर भी उदाहरण देने के लिए कभी रावण का नाम शायद ही किसी ने लिया होगा, लेकिन आज जब रावण नहीं है तब भी रावण की फौज उसके कटे हुए सिर की तरह अवतरित होने का रिकॉर्ड कायम कर रही है।

      आज जब नारी हर क्षेत्र में अपने झंडे गाड़ कर हमें ही नहीं दुनिया भर में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपनी जिजीविषा का उदाहरण पेश कर रही है , तब भी मानविक, शारीरिक रूप से विभिन्न तरह की राक्षसी प्रवृत्ति का शिकार हो रही हैं, गली मोहल्ले शहर गांव, बाजार, मार,  कार्यालय, बस, रेल यहां तक कि अब तो घर में भी राक्षसी वृत्ति का शिकार हो रही हैं । साथ ही यह कहने में खुद से शर्म आती है कि छोटी छोटी बच्चियां और बुजुर्ग महिलाएं भी आज के रावण की कुदृष्टि,  शारीरिक शोषण, हिंसा से महफूज नहीं हैं। 

     आज के कलयुगी रावण भलमनसाहत का आवरण ओढ़कर सरेआम घूम रहे हैं और अपनी रावणी प्रवृत्ति की कारगुरियों को अंजाम देने के अभियान को गति देते रहते हैं।

         ऐसे रावणों  का चाल चरित्र और चेहरा पहचान पाना भी आसान नहीं है, इसके अलावा धार्मिक आर्थिक, सामाजिक और जनहित के क्षेत्र में भी रावणों की फौज मौज कर रही है, लूट खसोट कर रही, जनता की हिस्सेदारी से अपना घर भर रही है, धार्मिक शोषण, उन्माद फैलाना, हिंसा भड़काना, जातिगत विद्वेष फैलाना, औरों के धन संपत्ति और अधिकारों पर धनबल बाहुबल या धमकाकर कब्जा कर लेना भी तो कलयुगी रावणों का एकाधिकार बन चुका है।

      विजयादशमी के नाम पर रावण के पुतले फूंकने की आड़ में कलयुगी रावण अपने एक मात्र सर्वश्रेष्ठ गुरु/भगवान रावण को सम्मान देने का सुनहरा मौका मानकर अपनी पीठ थपथपा रहे हैं।

       आप भी ऐसे कलयुगी रावणों से सावधान रहें, सुरक्षित रहें, क्योंकि यह नहीं पता कि कब कौन किस रुप में अपने असली रावणी रुप में आप पर अपने स्वार्थवश रावण का रुप धारण कर आप पर प्रहार कर दे, अपना विकृति चेहरा लेकर सामने आकर खौफजदा कर दे।

  आइए! मेरे साथ रावण के साथ कलियुगी रावणों को नमन करते हैं और अपनी सुरक्षा के लिए उनसे ही प्रार्थना करते हैं। 

*सुधीर श्रीवास्तव

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