गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

नहीं रास्ते खोज सके जो, मुझको आये राह दिखाने।

सागर, नदियां, झीलें – झरनें, काम न आये प्यास बुझाने।

इतनी प्यास कि जितना पानी, इस पानी के क्या हैं मायने।

नहीं हुआ कल आज करेंगे, करते रहते रोज बहाने।

चेहरा तो बेनूर हुआ पर, आ जाते हैं रोज दीवाने।

खोज रहे हैं इनको – उनको मिल जाते कुछ ठौर- ठिकानें।

गीत समय के इतने गाये, गाते – गाते बने तराने।

जीवन की ऐसी गतिविधियां, जैसे नदियों के हैं मुहाने।

नहीं जिन्दगी जी पाते जो, देते हैं ताने पर तानें।

जीवन आशा और निराशा, उम्मीदों की ध्वनि पहचानें।

क्या होगा खोने से आखिर जीने के सैकड़ों बहाने।

धरती और गगन में छायी फूलों की गरिमा अन्जाने।

इस माटी में तिलक हुआ है, इस मिट्टी में ही सब खो जाने।

— वाई.वेद प्रकाश

वाई. वेद प्रकाश

द्वारा विद्या रमण फाउण्डेशन 121, शंकर नगर,मुराई बाग,डलमऊ, रायबरेली उत्तर प्रदेश 229207 M-9670040890