कहानी

कहानी – अपना अपना वादा

आखि़र वह कौन सा वादा था जो उन दोस्तों मंे से किसी एक को पूरा करना था। वादा यह था कि दोनों दोस्तों में से अगर एक गरीब रह जाएगा और दूसरा अमीर बन जाएगा तो वह अमीर दोस्त दूसरे गरीब दोस्त या उसके परिवार की ठीक उसी समय मदद करेगा जब उसे मदद की सबसे अधिक ज़रूरत होगी।
काफी सालों बाद उनमें से एक दोस्त प्रकाश चंद अपने गांव का एक ईमानदार व्यक्ति बन अपने इलाके में जाना जाता था। वह न तो कोई प्रसिद्ध व्यक्ति था पर दरिद्र होने के लिए जरूर जाना जाने लगा था। उसके चार बच्चे उसकी दरिद्रता की छांव में अपने बचपन को रेंगते हुए निकाल रहे थे। उसके हालात बद से बदतर होने के पीछे कई कारण थे। पहला उसकी जमीन पहाड़ी इलाके में होने के कारण बहुत मेहनत की मांग करती थी और परम्परागत खेती से पैदा होने फसलों के लिए जानी जाती थी। साल के कुछ समय यह ज़मीन बर्फ़ से भी ढक जाती थी।
खेती में कई प्रयोग करने के बाद प्रकाश चंद किसी और काम से भी पैसे कमाने निकल जाता, कभी लकड़ी की कटाई के समय वह ठेकदार के पास होता तो उसको फसल की चिंता नहीं होती। कभी वह दूर इलाके में फलों की ढुलाई तोड़ाई के वक्त भी घर से दूर हो जाता। इन सब बातों के बावजूद वह केवल उतने ही रूपये कमा पाता जिससे उसके बढ़ते परिवार का भरण पोषण होता रहे। उसनेे एक बार कुछ पशु भी पालने चाहे, पर इनसे इतना दूध पैदा नहीं हुआ कि वह दूध का व्यापारी ही बन जाए। उसने भेडंे़ भी पालीं पर इसमें भी वह कामयाब नहीं हुआ। उसने कई काम किए पर आखिर पुरानी असफलताओं के कारण वह नए कार्यों में दिलचस्पी नहीं पाया और फिर से थोड़ी बहुत खेती बाड़ी पर ही निर्भर होता गया। खेती बाड़ी में आने का मुख्य कारण उसकी एक बीमारी भी थी, वह थी उसके घुटनों का भंयकर दर्द जो उसे कहीं दूर किसी मेहनत वाले काम के लिए नकारा बनाने का मुख्य कारण था।
आखिरी बार प्रकाश चंद ठेकेदार के फलों की ढुलाई करने के बाद आकर अपनी पत्नी से बोला, ‘‘भगवान हमेशा कोई युक्ति बनाने में आनंदित महसूस करता है तभी तो उसने मेरी हिम्मत पर प्रहार करने से बेहतर मेरे शरीर को पर प्रहार किया। जब शरीर ही काम नहीं करेगा तो फिर हिम्मत का क्या काम, वह भी किसी दूसरे घर का दरवाजा खटखटाएगी।’’ इसके बाद उसने अपनी पत्नी से अपने पुराने दोस्त, अपने पिता और उन दोनों दोस्तों के बीच हुए वादे की पूरी बात बता डाली।
‘‘मेरे मेहनती किसान पिता ने हम दोनों को पाला था। उसके पिता हमारे घर में मेरे दादा जी के समय से नौकर थे। मेरे पिता के पांच भाइयों में जब जमीन का बंटवारा हुआ तो पिता के हिस्से में बहुत कम जमीन आई जो अब हमारे पास है। उसके पिता को मेरे पिता जी ने तब भी नौकर रखे रखा। जब उसकी मां चल बसी तो वह हमारे ही घर रहने आ गया। हम दोनो कभी भाई बन जाते तो कभी दोस्त बन जाते। मेरी मां के गुजरने के बाद हम दोनो दोस्तों का प्यार बढ़ता गया। फिर कुछ सालों बाद उसके पिता भी चल बसे। मेरे पिता जी ने उसे अपने बेटे की तरह पाला। जब हम बड़े हो गए तो एक दिन मेरेे पिता अंदर से गहनों की पोटली और एक नोटों की गड्डी लाकर बोले, ‘अब तुम दोनों में से केवल एक ही इन रूपयों से व्यापार कर सकता है। अगर मैंने यह रूपए दोनों को बांट दिए तो तुम दोनों का व्यापार नहीं चलेगा इसलिए केवल एक गहने और पैसे लेगा और दूसरा इस उपजाऊ ज़मीन के टुकड़ों का मालिक होगा। दोनों में से किसी एक का चुनाव तुम कर सकते हो पर एक बात का तुम दोनांे को मुझसे और अपने आप से वादा करना होगा कि तुम जीवन के किसी मोड़ पर एक दूसरे की ठीक उस वक्त मदद करोगे जब तुम में से कोई एक अपने जीवन में दरिद्रता का सामना करने में असमर्थ हो जाए और कोई एक दूसरे से मदद मांगने नहीं जाएगा।’ मैंने उस वक्त उपजाऊ ज़मीन के टुकड़े को चुना था कयोंकि मैं हम दोनों में से छोटा था। मैं यह बात कई सालों से तुम्हें बताना चाहता था।’’
इस दिन के बाद दिन के किसी भी पहर में प्रकाश चंद अपने दोस्त सेवक राम का जिक्र कभी न कभी जरूर छेड़ता। अब वह धीरे-धीरे अपनी खेती से भी पीछा छुड़ाने लगा। अब उसके पास पहले से कम गाय थीं जब उसकी पत्नी ने अपने पति की बिगड़ती हालत को देखा तो वह बोली, ‘‘अब भी समय नहीं बिगड़ा है, तुम हिम्मत न हारो, हमें अपनी गरीबी से उभरना होगा।’’
वह बोला, ‘‘तुम बस मुझ पर विश्वास करो, वह आने ही वाला होगा, उसे हमारे हालात की पल- पल की खबर होगी। वह अपना वादा सही समय पर पूरा करने का विचार कर रहा होगा।’’
अक्सर पड़ोसियों कोे यह बड़ा विचित्र लगता कि वह हमेशा अपने उस दोस्त की तारीफ के किस्से सुनाता रहता जिसे उन्होंने कभी सालों से उसकी चौखट पर पांव रखते नहीं देखा।
वह हमेशा कहता, ‘‘हां तभी तो वह उचित समय की प्रतीक्षा कर रहा है। हम कितने भाग्यवान है कि हमें उसके आने की आशा है वरना इस मतलबी दुनिया में किसी की आस रखना बेईमानी है।’’
वह अपने खेतों में ऐसी सब्जियां लगाता जिनको लगाने की किसी ने न तो सलाह दी होती और न उसे क्या बीजना चाहिए, इसकी वह सलाह लेता।
सर्दियों में तो वह बिल्कुल निष्क्रिय हो जाता। वह पूरे खेतों में सिर्फ गेंहू बीजता, जबकि बाकी किसान सर्दियों की सब्जियों से मालामाल होने के सपने ले रहे होते।
‘‘मेरी गरीबी उसे जल्दी मेरे पास भेजेगी,’’ वह अक्सर अपनी पत्नी से कहता, ‘‘मुझे लगता है कि जब हमारी गरीबी अपने चर्म पर पहंुच जाएगी तो वह भी प्रकट हो जाएगाा। मैं गरीब चाहे जरूर हूं पर भिखारी नहीं कि उसके पास समय से पहले चला जाऊं।’’
‘‘बात आपकी ठीक है जी, आपके पिता के वचनों के अनुसार जब हम गरीबी से हार जाएंगे तभी वह आएगा।’’ उसकी पत्नी आशा के दीपकों में तेल डालते हुए कहती, ‘‘मैं आपसे इस बात पर सहमत हूं कि समय से पहले उसके पास जाना वादे को तोड़ने पर उसको मजबूर करना होगा। दूसरा शायद भगवान हमारी भी परीक्षा ले रहा होगा।’’
वह कभी उस दूर के कस्बे भी कभी नहीं जाता जहां उसका मित्र एक बहुत बड़ी दुकान में तोंद वाला पेट लिए पैसों को गिनते बैठा रहता है। जबकि असको अपने पुराने मित्र के बारे में कई बातें पता चलती रहतीं।
कुछ समय के बाद उसके हालात बद से बदतर होने लगे। कभी उसका मन तो कहता कि वह झोली उठाकर निकल जाए और जी भर कर झोली में भर कर ले आए पर वह ऐसा नहीं कर सकता था।
एक शाम प्रकाश चंद फिर उसी चर्चा के लिए अपनी पत्नी से बोला, ‘‘मुझे लगता कि अब उसे हमारी याद ही नहीं, भला जवानी में किए वादे कौन पूरे करता है? हमें उसकी आस छोड़ देनी चाहिए और किसी ओर उपाय की ओर ध्यान देना चाहिए। पहले मुझे उसके इलाके में जाकर उसकी दयालुता की थाह लेनी होगी। अगर उसमें दया व दान का भाव ही नहीं पैदा हुआ होगा तो फिर हमें आस छोड़नी होगी। दूसरा उसकी दौलत का भी पता करना होगा। अधिक अमीर व्यक्ति ही किसी की मदद करने में सक्षम हो सकता है।’’
अगले दिन वह अपने इस अंजान परिचित की थाह लेने निकल गया। उसने शाम तक लगभग सारी जानकारी ले ली थी। लोगों के अनुसार सेवक राम बहुत अमीर आदमी है परन्तु उसने केवल एक ही कारोबार से रूपया कमाया है। कस्बे में उसकी करियाने की सबसे बड़ी दुकान है वह थोक और परचून दोनों तरह का व्यापार करता है। उसकी दुकान एक भंडार की तरह है। उसके बारे में कई अनचाही बातें सुनने को मिली जैसे कि वह कभी किसी की मदद नहीं करता है और उधारी का नाम भी उसे पसंद नहीं लेकिन इन सब बातों के बाबजूद उसके सामान में कोई खोट नहीं होता और उसकी कीमत भी बाकी दुकानदारों से कम ही होती है।
वह बड़ी शान से घर वापिस आ गया और आते ही अपनी पत्नी को अपने अमीर दोस्त सेवक राम की अमीरी की प्रशंसा सुनाता जा रहा था। वह बोला, ‘‘मैं अब एक बात के लिए तो निश्ंिचत हो गया हूं कि ईश्वर ठीक वैसे ही कर रहा है जैसा हमारे बुजुर्गों ने आशंका जताई थी और हम दोनों दोस्तों से एक वादा करवाया था। वह अब बिल्कुल अमीरी के आकाश पर है और उसके विपरित मैं गरीबी के धरातल पर हूं।’’
पत्नी कुछ आशावान सी होकर बोली, ‘‘बस प्रभु उसे अपने वादे से मुकरने न दे और इन्सानियत और मदद की लौ की चिंगारी उसके सीने में सुलगती रहे और इसके साथ ही वह अपने अतीत को न भूल पाए।’’
तीन वर्ष बीत गए। प्रकाश चंद की बेटी की शादी रख दी गई थी लेकिन शादी का खर्च कैसे किया जाए वह बहुत अधिक ंिचंता का विषय था। प्रकाश चंद ने चिंता में डूबे अपनी पत्नी से कहा, ‘‘अब वादे के अनुसार मैं अगर उसे बेटी की शादी का निमंत्रण देने गया और उसने कुछ मदद कर दी तो यह वादे के प्रतिकूल हो जाएगा। क्योंकि वादे के अनुसार एक दूसरे की मदद बिना मांगे की जाएगी इसलिए मैंने अमीर दास को निमंत्रण न देने का निर्णय किया है।’’
पत्नी अपने पति के इस निर्णय पर प्रसन्निचित थी। वह बोली,‘‘मुझे आपकी बातें समझ तो नहीं आतीं पर मैं फिर भी आप से सहमत हूं। क्योंकि यह बात सचमुच में ही वादे के अनुरूप नहीं है। इससे यह बात भी सिद्ध होती है कि हम गरीब ज़रूर हैं परन्तु हम मांगने को लाचार नहीं हुए हैं मुझे इस बात पर आप पर गर्व भी महसूस हो रहा है, परन्तु यह बात तो पक्की है कि गरीब का गर्व उसका सत्यानाश ज़रूर करता है।’’
‘‘अच्छा, सुबह मैं तुम्हारे शादी के समय के पुराने गहनों को बेचने और इनसे हमारी बेटी के लिए कुछ नए गहने बनवाने निकलूंगा, मैं यह जानकर इतना खुश हूं कि तुम अपने पति का साथ इतनी मजबूती के साथ दे रही हो।’’
दूसरे दिन प्रकाश चंद बाज़ार की ओर निकल गया। अभी वह आधे रास्ते में ही था कि उसका एक जानने वाला जो किसी दूसरे बाज़ार से अभी आया था उसे मिल गया। उसने मिलते ही बस एक दुखद समाचार सुनाया।
वह बोला, ‘‘घाटी बाजार के सेठ सेवक राम की पूरी दुकान पिछली रात बुरी तरह जल गयी है। मैं अभी वहीं से आया हूं पूरे बाजार में अभी भी धुंआ फैला है। दुकान में जलता सामान अभी तक धुआं छोड़ रहा है। बाज़ार वाली सड़क का काम चलने की वजह से पूरी सड़क बंद थी और लोग आग को बुझा न सके। सुनने में तो यह भी आया है कि सेठ का बहुत पैसा भी जल गया जो उसने एक बड़ी सी अलमारी में अपनी बेटी की शादी के लिए रखा था। उसके विचार में उसकी दुकान एक दो दिन के लिए पैसा रखने के लिए सुरक्षित थी। प्रकाश चंद इतना दुःखी हो गया कि वह वहीं बैठ गया।
‘‘क्या कुछ भी न बचा?’’ वह परेशान होते बोला।
‘‘मैने सुना है कल ही सेठ सेवक राम ने अपनी दुकान के अंदर लाखों का सामान जमा किया था ताकि वह बेटी की शादी के साथ ही अपनी दुकान को बड़ा बना सके। वैसे पूरी घाटी के बाजार की सबसे बड़ी दुकान थी। मुझे तो लगता है कि वह सेठ अब पक्का दीवालिया हो गया होगा।’’
प्रकाश चंद बड़े दुखी मन से घर पहुंचा। वह कुछ विचार करके बोला, ‘‘हम ईश्वर का यह संदेश समझ नहीं पाए कि वह हमसे मदद करवाने का इच्छुक है और हम उसकी मदद की इच्छा मन में पालते रहे। अब बस मैंने निर्णय कर लिया है कि अब अपना वादा पूरा करने का सही वक्त आ गया है।’’
‘‘मुझे आपकी बात पहली बार समझ नहीं आ रही है।’’ उसकी पत्नी हैरान होकर बोली। मैं तुमहारे ये गहने उसे मदद के रूप में दूंगा। ईश्वर ने यही सुनिश्चित किया है। वादे के अनुसार उसे अब मदद की सबसे अधिक आवश्यकता है।’’
हम खुद को धन्य समझेगें कि हमने अपना वादा पूरा किया। हमारे इस कार्य से बुर्जुगों की आत्मा को अत्यंत प्रसन्नता हो जाएगी।’’ उसकी पत्नी आत्म संतोष से भरकर बोली। और उसने खुशी-खुशी अपने पति का अपना वादा पूरा करने भेज दिया।
घाटी बाजार में लोगों का तांता लगा हुआ था। प्रकाश चंद ने गहनों की पोटली अपने थैले में डाले आगे बढ़ा। उसने देखा कि वहां कुछ लोग एक बड़े से बक्से में मदद के रूप में कुछ रूपये डाल रहे थे जो आपसी भाईचारे का संदेश हो सकता है। वैसे इस मुसीबत की घड़ी में सेवक राम द्वारा दिए जाने वाले उधार के सामान के पैसे भी डाल रहे होंगे पर जितना अभी तक उसने सुना है कि सेवक राम कभी किसी को उधार नहीं देता था। फिर भी भीड़ से होता हुआ वह धीरे -धीरे आगे बड़ा।
उसके कानों में कई तरह की आवाजें आ रही थी। कोई बोला, ‘‘अब सेवक राम को मदद की जरूरत पड़ ही गई है। वैसे आज तक उसने कभी किसी की एक पैसे की मदद न की पर भगवान कई बातों का हिसाब रखता है।’’
इस बात के प्रकाश चंद के कानों में पड़ते ही जैसे वह अपने निर्णय पर खुशी से भर गया था। वह चुपचाप सेवक राम के सामने कुछ लोगों की भीड़ में खड़ा हो गया जो सिर झुकाए अपनी जली हुई दुकान के बाहर लोगों के संवेदनाओं की छांव में बैठा था। कुछ लोग उसके पास बैठे थे और कुछ खड़े थे। प्रकाश चंद इससे पहले कि उसके कुछ और करीब पंहुचता उसने मन ही मन में सारी बातों को कंठस्त कर लिया जो वह कहने वाला था। ‘‘मित्र सेवक राम, इस दुख की घड़ी में मैं यह नहीं कहूंगा कि तुमने मुझे पहचाना कि नहीं पर मैं केवल संवेदना से भरे दिल के कारण तुम्हें कुछ मदद देना चाहता हूं और यह सब मुझे अपने वादे के अनुसार भी करना था, इसलिए मैने अपना वादा पूर्ण किया और अब तुम भी कभी अपने वादे पर विचार कर सकते हो।’’
इससे पहले कि उसका बचपन का साथी उससे नजरंे मिलाता। उसके कदम रूक गए। उसके मन ने कहा,‘‘ वाह रे घमण्डी इंसान, मदद करने के साथ ही तुम अपने वादे की बात भी याद करवा रहे हो। तुम यह कोई संवेदना नहीं, बस अपनी मन की शांति के लिए कर रहे हो और खुद को गरीब से अमीर होने का प्रदर्शन कर रहे हो। यह दोस्ती नहीं यह तो ढोंग है और अहसान का दिखावा है।’’
प्रकाश चंद के कदमों ने अपना रास्ता बदल लिया था। वह एकदम से उस दान बक्से की ओर मुड़ा जिसमें कुछ लोग अपनी हैसियत के अनुसार कुछ रूपये डाल रहे थे। उसने अपने थैले से गहनों वाली पोटली निकाली, इधर उधर देखा और चुपके से पोटली को उस दान बक्से में डाल दिया। वह झट से पीछे मुड़ा और एक नज़र सेवक राम पर डालता हुआ व थोड़ा शर्मिदा होते हुए वापिस अपने गांव की ओर निकल गया।
जीवन परिचय
— डॉ. संदीप शर्मा

*डॉ. संदीप शर्मा

शिक्षा: पी. एच. डी., बिजनिस मैनेजमैंट व्यवसायः शिक्षक, डी. ए. वी. पब्लिक स्कूल, हमीरपुर (हि.प्र.) में कार्यरत। प्रकाशन: कहानी संग्रह ‘अपने हिस्से का आसमान’ ‘अस्तित्व की तलाश’ व ‘माटी तुझे पुकारेगी’ प्रकाशित। देश, प्रदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कविताएँ व कहानियाँ प्रकाशित। निवासः हाउस न. 618, वार्ड न. 1, कृष्णा नगर, हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश 177001 फोन 094181-78176, 8219417857