बाल एकांकी – भविष्यवाणी
पात्र परिचय
नाम चरित्र उम्र
मोहनदास – एक रिटायर्ड दुकानदार 75
विमलादेवी – मोहनदास की धर्मपत्नी 70
सोनू – मोहनदास और विमलादेवी का सुपुत्र 15
मेवाराम – क्रिकेट कोच 45
रवि – सोनू का दोस्त 16
राजू – सोनू का दोस्त 15
(पर्दा खुलते ही मोहनदास सहगल के घर के हाल का दृश्य दिखाया जाता है। मध्यम वर्गीय परिवार। हाल के बीच में सोफासेट हैे। सामने दो कुर्सियां रखी हैं। उनके नज़दीक ही एक राइटिंग टेबल भी रखा हैे। विमलादेवी परेशानी में इधर उधर घूम रही है।)
विमलादेवी – (दोनों हाथ ऊपर उठाकर) हे माता रानी, अब तू ही बता मैं क्या करूं? एक तरफ बूढ़ा पति है तो दूसरी तरफ जवान बेटा। मैं तो चक्की के दो पाटों के बीच में फंस गई हूं। एक की तरफदारी करती हूं तो दूसरा नाराज़ हो जाता है। पता नहीं किसकी शकल देखकर सोनू को पैदा किया था।
मोहनदास – (अपने रूम में से आते हुए) शकल देखी होगी मेरी और किसकी? डिलीवरी के समय मैं ही तो तुम्हारे पास खड़ा था और दूसरी वो भैंस सरीखी नर्स। अब तेरा वो आवारा सुपुत्र भैंसे जैसा तो दिखता नहीं। बाकी बचा मैं। मुझे क्या पता था कि मुझे देखने से ऐसा नामाकूल पैदा होगा वरना मैं अस्पताल से बाहर चला जाता।
विमलादेवी – देखो जी, मेरे सुपुत्र को नामाकूल और आवारा मत कहो। वो तो मेरा सच्चा, ईमानदार और निष्ठावान सुपुत्र है।
मोहनदास – (हंसते हुए) सच्चा, ईमानदार और निष्ठावान सुपुत्र। अपने आवारा बेटे के लिए इतने सारे विशेषण लगा दिये। भाग्यवान, तुझे ना घर के सारे काम छोड़कर शायरी करनी चाहिये। जिस कुपात्र को तू सुपुत्र बोलती है ना वो एक नंबर का बदमाश है।
विमलादेवी – (फिर से दोनों हाथ ऊपर करके) देख रही हो माता रानी, सगे बाप बेटे के ग्रह नक्षत्र आपस में नहीं मिल रहे हैं। एक राहू हैे तो दूसरा केतू हैे। एक प्यादा हैे तो दूसरा शहजादा है, एक सेर हैे तो दूसरा सवा सेर है।
मोहनदास – तेरे लाड़ प्यार ने ही उसे बिगाड़ा हैे। तू बीच में नहीं आए तो मैं तो उसे एक मिनट में सीधा कर दूं।
विमलादेवी – मेरे लाड़ प्यार ने नहीं बिगाड़ा। आपकी नफरत ने ही उसके दिल में ज़हर भरा हैे। बचपन से ही बेचारे से नफरत करते आए हो। वो चाकलेट मांगता था तो आप उसे खट्टी मीठी गोली लेकर देते हैं।
मोहनदास – हां, हां, कैडबरी चाकलेट खिलाता ना उसको।
विमलादेवी – क्या हुआ जो कैडबरी चाकलेट खिलाया तो। सगा बेटा है ना। आप उसे सौतेला समझ के क्यों व्यवहार कर रहे हो?
मोहनदास – अरी भाग्यवान, एक रूपए वाली गोली से काम चल जाए तो दस रूपए का चाकलेट क्यों लेना भला? पैसे क्या पेड़ पर उगते हैं।
विमलादेवी – ऊपर ले जाना अपने साथ। एक ही बेटा है, उस पर भी खर्चा नहीं करोगे तो किस पर करोगे भला? कंजूसी की भी हद होती हैे। चाकलेट के बदले खट्टी गोली मुंह में जाएगी तो आदमी भी खट्टा ही बनेगा ना।
मोहनदास – बात का बतंगड़ बनाना तो कोई तुझसे सीखे। उठाओ अपने प्रिय सुपात्र को तो दो तीन दुकान के काम की बातें समझा दूं।
विमलादेवी – घर में हो तो उठाऊं ना। वो तो सवेरे सवेरे उठकर बैट बाल हाथ में लेकर, क्रिकेट खेलने चला गया हैे।
मोहनदास – फिर क्रिकेट खेलने गया। इतनी डांट खाने के बाद भी नहीं सुधरा।
विमलादेवी – क्या हुआ गया तो?
मोहनदास – बता देता हूं भाग्यवान, तेरा लाडला हमारे हाथ से निकल गया हैे। न पर रे काबू में रहा है न मेरे काबू में।
विमलादेवी – ऐसा क्या कर दिया उसने?
मोहनदास – क्या कर दिया? धंधे में बिल्कुल भी ध्यान नहीं लगाता। चंचल बता रहा था कि दुकान पर भी सारा दिन टी.वी. चालू करकेे क्रिकेट मैच देखता रहता हैे ।
विमलादेवी – आपका नौकर चंचल तो आपका पाला हुआ जासूस हैे। एक नंबर का चुगलखोर। इधर की बात उधर करने में होशियार।
मोहनदास – चंचल से ही तो पता चलता है कि सोनू दुकान पर क्या क्या करता है? धंधा पानी छोड़कर किसके साथ घूमता है।
विमलादेवी – इसका मतलब आपको अपने बेटे पर भरोसा नहीं है।
मोहनदास – कल पता है उसने क्या किया? चंचल के भरोसे दुकान छोड़कर क्रिकेट की टूर्नामेंट खेलने चला गया। ऐसे ही चलता रहा तो मेरी तो दुकान ही लुट जाएगी। (गुस्से में) सारी उम्र क्रिकेट खेलने और देखने में गंवा देगा हरामखोर।
विमलादेवी – बाप हो या दुश्मन। बेटे को गालियां दे रहे हो। (दोनों हाथ ऊपर उठाकर) हे माता रानी, अब तो बस तेरा ही सहारा हैे। बाप को नहीं तो कम से कम बेटे को ही समझदार बना।
मोहनदास – (फिर से गुस्से में) आने दे? आज आने दे उसे। नहीं रस्सी से बांधकर उल्टा लटकाया तो मेरा नाम भी मोहनदास नहीं।
विमलादेवी – (मोहनदास से) सुनो जी, मेरी एक बात मानोगे।
मोहनदास – हां हां बोल ना। एक क्या सौ बातें मानूंगा।
विमलादेवी – बेटे के बारे में न थोड़ा संभालकर बात किया करो, कोई सुन लेगा तो?
मोहनदास – सुन ले तो सुन ले। बदनाम करने के लिए अब रखा ही क्या है। पूरे मोहल्ले में मेरी नाक कटवा दी है नामाकूल ने। धनराज कह रहा था कि तेरे बेटे के चक्कर में हमारे बच्चे भी बिगड़ गए हैं।
विमलादेवी – उस धनूमल की तो बात ही मत करो। रोज़ रात को दारू पीकर अपनी पत्नी को और बेटे से झगड़ा करता है।
मोहनदास – धनराज के बारे में कुछ कहा तो देख लेना? वो मेरा सबसे बड़ा ग्राहक हैे।
(बाहर से सोनू की आवाज़ आती है)
विमलादेवी – मेरा शेर पुत्तर आ गया।
मोहनदास – तू यहीं रुक। मैं रस्सी लेकर आता हूं। जैसे ही वो बाहर से आकर इस सोफे पर बैठेगा, मैं पीछे से उसके दोनों हाथ रस्सी से बांध दूंगा। (हंसते हुए) फिर देखता हूं कैसे घर से बाहर जाता है।
विमलादेवी – इकलौते बेटे पर इतनी बंदिश?
मोहनदास – तुझे पता नहीं आज कल के लड़के घर से निकल कर कहां कहां घूमते हैं। स्कूल जाने का बहाना करते हैं और घर से निकलकर कभी सिनेमा देखेंगे, कभी गार्डन में जाएंगे, कभी रस्ते में गुपचुप के ठेले पर खड़े होकर मटरगश्ती करेंगे।
विमलादेवी – ये सब तो कॉलेज पढ़ने वाले बच्चे करते हैं। हमारा सोनू तो अभी नौवीं क्लास में हैे।
मोहनदास – ज़माना बदल गया हैे भाग्यवान। अब वो पहले जैसे स्कूल नहीं रहे। न ही वैसा अनुशासन सिखाने वाले शिक्षक मिलंेगे। आजकल के शिक्षक तो स्कूल में ध्यान ही नहीं देते हैें। उनकी नज़र तो बस ट्यूशन की कमाई पर रहती है। मां बाप भी बच्चों को घर से बाहर निकालकर खुश हो जाते हैं। उन्हें क्या पता कि
उनके बच्चे घर से बाहर जाकर कौनसे गुल खिलाते हैंे? एक बात तो बता भाग्यवान, कहीं तेरा पुत्तर किसी लड़की वड़की के चक्कर में तो नहीं हैे न?
विमलादेवी – क्या बैट बाल लेकर लड़कियों के पीछे घूमेगा?
मोहनदास – अ…अ…मैं तो तुझे सावधान कर रहा था। मुझे क्या पता? मैं दुकान के काम में बिज़ी रहता हूं। घर का और बेटे का ख्याल तो तू ही रखती है ना।
विमलादेवी – आपको क्या लगता है आपका बेटा आवारा हैे।
मोहनदास – मैंने ऐसा तो नहीं कहा।
विमलादेवी – मुझे सब पता हैे आप बाहर वालों के सामने भी बेटे की बुराइयां करते रहते हो।
मोहनदास – तेरे को तो मेरी कोई बात समझ में नहीं आती हैे न।
(सोनू बाहर से आता है। उसके हाथ में बैट बाल है।)
सोनू – गुड मार्निंग मम्मी, गुड मार्निग पापाजी ।
मोहनदास – काहे की गुड मार्निंग रे। पहले ये बता कि सवेरे सवेरे मेरे को बताए बिना कहां चला गया था।
विमलादेवी – आ गया बेटा, आजा। बैठ इधर। चाय पियेगा।
मोहनदास – रुक, पहले मुझे इसको डांटने दे।
विमलादेवी – बेचारे ने कुछ खाया पिया भी है या नहीं।
मोहनदास – काहे का बेचारा हैे?
सोनू – (पेट पर हाथ रखकर) मम्मी? बहुत भूख लगी हैे। खेलते समय कुछ ध्यान ही नहीं रहा। अब लग रहा है कि कुछ खाने को मिल जाए तो मज़ा आ जाए।
विमलादेवी – अरे मेरा शेर पुतर। चल, अंदर चल तेरे को कुछ खाने के लिए देती हूं।
(विमलादेवी तथा सोनू अंदर जाने के लिए आगे बढ़ते हैं।)
झाामन – रुको। मुझे अकेला छोड़कर कहां जा रहे हो। मेरी बात अभी पूरी नहीं हुई हैे। इधर आओ। दोनों इधर आओ। तुम दोनों ने मुझे पागल समझा हैे? तुम लोग अंदर चले जाआगेे और मैं क्या यहां दीवालों से बातें करुंगा। जल्दी आओ।
(दोनों वापस आते हैं।)
विमलादेवी – छोड़ो भी…….
मोहनदास – क्या छोड़ूं हां, क्या छोड़ूं? (सोनू से) देख सोनू, मुझे तेरा क्रिकेट ख्ेालना बिल्कुल भी पसंद नहीं है। सौ बात की एक बात, या तो बिज़नेस कर या मस्तियां कर। तेरे रोज़ रोज़ दुकान छोड़कर जाने से धंधे पर असर पड़ता है। बहुत से ग्राहक वापस चले जाते हैं। इधर उधर मत देख। मेरी बात ध्यान से सुन। नौकरों के भरोसे कपड़े का धंधा नहीं चल सकता। अगर तू दुकान पर नहीं बैठेगा तो एक दिन ऐसा आएगा कि हमको अपना दुकान ही बंद करना पड़ेगा।
सोनू – ऐसा क्यों बोल रहे हो पापाजी। मैं समय एडजस्ट करके ही अपनी हॉबी पर ध्यान देता हूं।
मोहनदास – (सीरियस होकर) देख बेटा, मेरी सेहत अब पहले जैसी नहीं रही हैे कि सवेरे से रात तक लगातार दुकान पर बैठ सकूं। देख रहा है न, चलने में भी तकलीफ होती है। ऐसी हालत में घर की गाड़ी कैसे चलेगी? मान लो कपड़े का धंधा बंद करके घर में ही छोटा सा किराने का धंधा खोल भी लूं तो उसमें भी तो आठों पहर काम करना है। तू ही बता, ये सब मैं अकेला कैसे कर पाऊंगा। ये तो सोच कि उससे तेरे भविष्य का क्या होगा?
सोनू – पापाजी मैं बड़ा क्रिकेटर बनना चाहता हूं।
मोहनदास – मुहल्ले के दस पंद्रह आवारा लड़के जमा करके, दलपतराय की आटे की चक्की वाली संकरी गली में, लोगों की खिड़कियों के कांच तोड़कर समझ रहे हो कि देश के महान क्रिकेटर बन जाओगे?
विमलादेवी – ये क्या कह रहे हो सोनू के पापाजी?
मोहनदास – मैं सोच समझकर तथा पूरे होशो हवास में बोल रहा हूं सोनू की मम्मी।
सोनू – (गुस्से में) क्या सोच समझकर बोल रहे हो? आपको कुछ पता भी है। जितने भी बड़े क्रिकेटर हुए हैं किसी ज़माने में इन्हीं गलियों में ही क्रिकेट खेलते थे।
विमलादेवी – सच तो कह रहा है मेरा पुतर। कोई पैदा होते ही क्रिकेट खेलना शुरु कर लेता है क्या?
मोहनदास – अब तू भी इसकी तरफदारी करने लगी। मां का फर्ज़ होता है बच्चों में अच्छे संस्कार डाले। ना कि उसकी तरफदारी करके उसे सर पर चढ़ाए।
विमलादेवी – आप तो संस्कारों की बात ही मत करो जी। इस मामले में वो मेरे पर गया हैे। सोनू के दोस्त बताते हैं कि कोई भी मैच हो हमारे स्कूल की टीम में सोनू है तो जीत पक्की है। खेल कूद में सोनू का बड़ा नाम है स्कूल में।
मोहनदास – और पढ़ाई में?
विमलादेवी – पढ़ाई में भी कुछ कम तो नहीं है मेरा बच्चा।
मोहनदास – रो रो के पास होता है। देख सोनू, पढ़ेगा लिखेगा तो कम से कम इंजिनीअर या डाक्टर तो भी बनेगा। हाथ में बैट बाल लेकर घूमने से कुछ नहीं मिलेगा।
विमलादेवी – आप चिंता मत करो। मैं उसे समझाती हूं।
मोहनदास – अब समझाने का समय चला गया भाग्यवान। वो हमारे हाथों से निकल चुका है। (सोनू से) ज्यादा नहीं तो कम से कम कामर्स या आर्ट्स की डिग्री ही ले लेता। लड़की वाले तुझे देखने आएंगे तो पूछेंगे ना कि लड़का कितना पढ़ा लिखा है। फिर मैं क्या जवाब दूंगा, हां?
विमलादेवी – आप तो किधर की बात किधर लेकर जाते हो। अभी वो बच्चा हैे। स्कूल से सीधा आपकी दुकान पर आकर बैठेगा तो पढ़ने में मन कैसे लगेगा।
मोहनदास – वो ही तो ग़म है कि वो न पढ़ता है न दुकान पर बैठता है।
सोनू – पापाजी मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि मैं आपको एक अच्छा खिलाड़ी बनकर दिखाऊंगा तथा पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान लगाऊंगा। आज के बाद मैं आपको शिकायत का कोई भी मौका नहीं दूंगा।
विमलादेवी – अब तो खुश?
सोनू – पापाजी मै क्रिकेट को अपना कैरियर बनाना चाहता हूं।
मोहनदास – देख भाई। मेरा काम है तुझे अच्छी सलाह देना बाकी तू मर्जी का मालिक है। अब भी समय है सुधर जा, इसी में तेरी भलाई है। मुझसे जितना बन पड़ेगा करुंगा। नहीं तो धंधा पानी बंद करके मैं और तेरी मम्मी किसी वृद्धाश्रम में जाकर बाकी का जीवन बिताएंगे।
विमलादेवी – आप भी न, कुछ त सोच समझकर बात करो बेटे सेे।
मोहनदास – और क्या कहूं। इसका यही हाल रहा तो दुकान तो बंद होना ही होना हैे। दो वक्त की रोटी का जुगाड़ भी नहीं बचा हैे। फिर इस घर में तू और मैं रहकर करेंगे क्या? वृद्धाश्रम का ही सहारा लेंगे और क्या?
विमलादेवी – शुभ शुभ बोलो, माता रानी सबका भला करेगी।
सोनू – (सीरियस होकर) पापाजी, आप इतने ही नाराज़ हैं तो आज से क्रिकेट खेलना छोड़ता हूं।
विमलादेवी – सोनू ?
सोनू – बस मम्मी बस। अब मुझे मत रोकना। मैंने पक्का फैसला कर लिया हैे।
(बैट उठाकर अलमारी के ऊपर रखता है।) पापाजी, मेरे दुकान पर बैठने से आपको खुशी मिलती है तो मैं अपनी हॉबी, अपना कैरियर छोड़ने के लिए तैयार हूं।
(बाहर से सोनू के दो दोस्त रवि तथा राजू क्रिकेट कोच मेवाराम के साथ आते हैं।)
रवि – सोनू ……..देख तुझसे मिलने कौन आए हैें?
सोनू – (क्रिकेट कोच मेवाराम से) अरे सर आप …..
मेवाराम – कहां है यार सोनू। मोबाइल क्यों स्विच ऑफ करके रखा है?
सोनू – मेरा मोबाइल तो चालू हैे सर। (जेब में से मोबाइल निकालकर देखते हुए) ओह सॉरी।
राजू – मैंने तो पहले ही कहा था कि सोनू क्रिकेट खेलते समय मोबाइल स्विच ऑफ करके रखता हैे ताकि क्रिकेट खेलते हुए उसे कोई डिस्टर्ब न करे तथा वो गेम पर पूरा ध्यान लगा सके।
मेवाराम – सोनू, तेरी इन्हीं विशिष्ठ गुणों की वजह से ही तू क्लास में सभी शिक्षकों का प्रिय छात्र है।
रवि – और पूरी क्रिकेट टीम का लाड़ला।
राजू – पर आज तू प्रैक्टिस के लिए क्यों नहीं आया?
सोनू – प्रेक्टिस के लिए निकला ही था तो रस्ते में प्रीतम का फोन आ गया। उसके साथ माडर्न कॉलेज की मैच देखने चला गया।
रवि – वैसे तू कभी एबसेंट नहीं रहता है ना तो हम सबको यही चिंता सता रही थी कि सोनू क्यों नहीं आया? इसीलिए तेरे से मिलने आ गए।
मेवाराम – (मोहनदास से) पापाजी, आपका बेटा हमारे शहर का बेस्ट क्रिकेटर हैे। देखना एक दिन ऐसा आएगा कि ये रणजी ट्राफी में और नेशनल लेवल पर खेलेगा।
राजू – मैं तो कहता हूं वो विदेश भी खेलने जाएगा।
मेवाराम – हां, थोड़ी भी मेहनत करेगा तो नैशनल टीम में शामिल हो सकता है।
मोहनदास – ऐसा क्या?
मेवाराम – पापाजी जी मैं तो बच्चों को हमेशा कहता हूं कि कोशिश करते रहो। पता नहीं ज़िंदगी में कब कहां अच्छा चांस मिल जाए।
रवि – हम सबको सोनू पर पूरा भरोसा हैे पापाजी।
मेवाराम – सोनू के हाथ में जादू हैे जादू। चौके और छक्के तो ऐसे लगाता है कि सब देखते ही रह जाते हैं। सचिन तेंदुलकर और धोनी की याद आ जाती हैे।
विमलादेवी – देखा, और आप कह रहे थे कि मेरा बेटा आवारा हैे। अब दो जवाब?
राजू – फिर कल प्रेक्टिस के लिए आ रहा है ना।
सोनू – (मेवाराम से) सर, मैंने क्रिकेट खेलना छोड़ दिया हैे।
मेवाराम – क्यांे? क्यों?
सोनू – सर बात ये है कि…बस ऐसे ही। अब मैं पढ़ाई पर ध्यान देना चाहता हूं।
मेवाराम – पढ़ाई करना तो अच्छी बात हैे। मैं तो कहता हूं इन्सान में जो भी कौशल हो पढ़ाई के साथ उस पर भी फोकस करना चाहिये।
राजू – सर खुद तेरे को रिक्वेस्ट करे रहे हैं। कुछ ही दिनों के बाद अंडर 17 की टीम का सिलेक्शन हैे। उसकेे बाद इंटर स्कूल क्रिकेट कांम्प्टीशन भी हैे।
रवि – आएगा न पक्का।
सोनू – राजू, रवि मुझे माफ करो यारो। अब मैं क्रिकेट नहीं खेलूंगा।
मेवाराम – क्या ये तेरा आखरी फेसला हैे?
सोनू – हां सर।
मेवाराम – अचानक, इस तरह?
मोहनदास – बोल ना। मेरा बाप मना कर रहा है। बोल, बोल।
सोनू – (थोड़ा सोचकर) नहीं सर, ये मेरा अपना निर्णय हैे।
मोहनदास – (मेवाराम से) मैं बताता हूं। इसके इन्कार करने का कारण मैं हूं। आप लोगों के आने के थोड़ी देर पहले ही मैं इसको क्रिकेट खेलने से मना कर रहा था, इसलिए वो मुझसे नाराज़ हैे, फिर भी मेरा नाम लेकर मुझे बदनाम नहीं करना चाहता।
विमलादेवी – (सोनू को) पिता की बात को इतना दिल पे नहीं लेते सोनू। वो भी क्या करते। कमाने वाला अकेला और खाने वाले हम तीन। बड़ी मुश्किल से घर की गाड़ी चलती हैे।
मेवाराम – पापाजी जी, आपसे हाथ जोड़कर रिक्वेस्ट है कि सोनू को खेलकूद के लिए मना मत करो। राज्य सरकार ने अच्छे खिलाड़ियों के लिए स्कालरशिप का ऐलान किया हैे। बहुत जल्द ही हमारे स्कूल को भी सरकार की ओर से मदद मिलेगी। मुझे विश्वास हैे कि सोनू का नाम स्कालरशिप में सबके ऊपर आएगा। मैं बच्चों को पीईटी के क्लास में खेलकूद करवाता हूं तो ध्यान से देखता हूं कौन बच्चा आज्ञाकारी है, किसका ध्यान पूरी तरह खेल पर है। मुझे सोनू में सफल खिलाड़ी बनने के सारे गुण नज़र आते हैं।
राजू – पापाजी जी, सोनू को हमारे साथ खेलने दीजिये न। ये साथ में होता हैे तो हमारा भी प्रैक्टिस में मन लगा रहता है।
मोहनदास – (सोनू से) मुझे माफ कर दे बेटा। मुझे तेरे….
विमलादेवी – (बीच में काटकर) तेरे पिताजी को तेरे टैलेंट पर पूरा भरोसा हैे। वो तो बस तेरी परीक्षा ले रहे थे। तेरे आने से पहले उन्होंने मुझसे कहा कि आज सोनू से मज़ाक करके देखते हैं। क्यों जी, सही बात हैे न?
मोहनदास – हां बेटा, मुझे तुझपर हमेशा ही विश्वास रहा हैे। आज मेवाराम के आने से और भी पक्का हो गया। तू ज़रूर कामयाब होगा और मां बाप का नाम रोशन करेगा।
मेवाराम – मौसीजी, आज मैं भविष्यवाणी करता हूं कि सोनू क्रिकेट की दुनियां का बेताज बादशाह बनेगा।
मोहनदास – क्या आपको पूरा विश्वास हैे कि आपकी भविष्यवाणी सच साबित होगी?
मेवाराम – बिल्कुल, मेरी भविष्यवाणी सौ टक्का सही साबित होगी।
मोहनदास – (सोनू से) बैट अलमारी से निकाल और कल से ही जाकर पै्रक्टिस कर। दुकान मैं देख लूंगा। नौकर चाकर रखकर काम चला लूंगा। मैं सिर्फ काउंटर पर बैठकर पैसे का लेन देन करुंगा। चिंता मत कर बेटा मैं सब करुंगा लेकिन तेरे क्रिकेट के कैरियर के बीच में अड़ंगा नहीं डालूंगा।
विमलादेवी – बड़ी मुश्किल से हां कही है।
राजू – तो फिर कल से पक्का ना।
सोनू – (आगे बढ़कर पिताजी के चरण छूते हुए) पापाजी…….
मेवाराम – (बच्चों से) देख रहे हो बच्चों। माता पिता कितनी तकलीफें सहकर बच्चों को पाल पोसकर बड़ा करते हैं। शिक्षक भी उन्हें काबिल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। ऐसे में आप बच्चों का भी फर्ज़ बनता है कि अच्छी पढ़ाई करें तथा अन्य गतिविधियों में भी अच्छी मेहनत करें तथा माता पिता की उम्मीदों पर खरे उतरें।
मोहनदास – देखो बच्चों, तुमको कितना अच्छा और सुलझा हुआ अध्यापक मिला है। इनकी दी हुई शिक्षाओं को कभी मत भुलाना।
रवि – पापाजी, हम आपको वचन था देते हैं कि हम अपने पालकों एवं अध्यापकों की हर आज्ञा का पालन करेंगे।
राजू – हम अपने कैरियर के लिए जी जान लगा देंगे पापाजी। है ना सोनू।
सोनू – हां पापाजी। मेरे ये दोनों दोस्त जो भी कहते हैं उसपर कायम रहते हैं।
मोहनदास – मेवाराम जी आप चिंता मत करो। कल से सोनू को मैं रोज़ सवेरे प्रेक्टिस के लिए जल्दी उठाऊंगा और देखूंगा कि वो समय का पालन करे।
मेवाराम – बहुत बहुत धन्यवाद पापाजी। आपने तो मेरी चिंता ही दूर कर दी। अच्छा तो हम लोग चलते हैं (बच्चों से) चलो बच्चों, कल की तैयारी करते हैं।
राजू – हां सर चलिये। बॉय सोनू।
सोनू – बॉय। कल मिलते हैं।
(राजू, रवि और मेवाराम स्टेज से बाहर जाते हैं। मोहनदास सोनू को गले लगाता है। विमलादेवी ये दृश्य देखकर बहुत खुश होती है।)
(समाप्त )
–ः किशोर दीपचंद लालवाणी