कविता

हँसी खुशी पाप है

बड़ा आश्चर्य होता हैआपको इतना भी समझ नहीं आता,कि हँसी खुशी से रहने भर सेकौन सा भारत रत्न है मिलने वाला।आप नाहक परेशान रहते हैंचिंता में डूबे रहते हैंबेवजह अपनी उर्जा बर्बाद करते हैंखुद पर इतना अत्याचार भला क्यों करते हैं?मुफ्त की मेरी सलाह पर गौर कीजिएहंसी खुशी से रहकरसूकून से जीने का विचार छोड़ दीजिए।क्या मिलेगा स्वस्थ प्रसन्न खुशहाल रहने सेबल्कि इसका दुष्प्रभाव सहना पड़ेगाआसपास का माहौल खुशनुमा रहने सेबेवजह आपको भी खुश रहना पड़ेगाआपका और आपके परिवार का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा,बीमारियों का आवागमन कम होगाबेवजह आप सबको बड़ा आलस्य होगाफिर तो कमाने खाने के सिवा और कोई काम ही क्या होगा?कोई आपका हालचाल तक नहीं पूछेगाआपको दर्द पीड़ा से निजात दिलाने के लिएआपके मरने की दुआ भी नहीं करेगाझूठी तसल्ली भी कोई नहीं देगा।डाक्टर अस्पताल दवाओं का तब भला क्या होगा,मंदिरों मस्जिदों, देवी देवताओं की चौखट परघूम घूम कर मत्था कौन टेकेगा?आपके रुपयों को जंग ने लगेगा?क्या होगा इतनी धन दौलत काजब सब कुछ खोकर आपको,आपके अपनों कोजीने का तजुर्बा ही न हो सकेगा?अच्छा है मेरी सलाह मानिएहंसी खुशी से दूर रहने की सौगंध लीजिए,जीवन रोकर जीने का भरपूर अनुभव लीजिएबस! फिर से कहता हूँहंसी खुशी सबसे बड़ा पाप हैइसके चक्कर में जीवन बर्बाद मत कीजिए,लंबी उम्र के सपने छोड़ दीजिए औरहमेशा ही रोते रहिए औरजीवन में आगे बढ़ते रहिए।

*सुधीर श्रीवास्तव

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