राजनीति

गाजा युद्ध: कौन हैं ‘ट्रिपल H’ — हमास, हिज्‍बुल्‍लाह और हूती

गाजा, लेबनान, ईरान, सीरिया और यमन के लिए इजरायली सेना का आक्रमण काल बन गया । एक चिंगारी से पूरी दुनिया में त्राहि-त्राहि मच सकती है। मिडिल ईस्‍ट बारूद के ढेर पर बैठा है। ट्रिपल एच अर्थात हमास, हिज्‍बुल्‍लाह और हूती तीनों को इजरायल और कई अन्य देशों में आतंकवादी संगठन माना जाता है। यह ट्रिपल एच ही इजरायल पर हमले कर रहे हैं। इजरायल ने हमास को समाप्त करने की कसम खा रखी है। इजरायल के पास आयरन डोम S-400 एरो सिस्‍टम है। उसके एरो मिसाइल डिफेंस सिस्‍टम ने पहली बार में ही हूती की मिसाइल हवा में तबाह कर दी है। हिज़्बुल्लाह से मिल रही कड़ी चुनौती और हमास की आमने सामने की जंग ने विश्व युद्ध की शंकाओं को ‌हवा दे दी है। आइए हम जानते हैं इन संगठनों के बारे में।

हमास
हमास या हरकत अल-मुकावामा अल-इस्लामिया या “इस्लामी प्रतिरोध आन्दोलन” फ़िलिस्तीनी मुसलमानों की एक सशस्त्र संस्था है जो फ़िलिस्तीन राष्ट्रीय प्राधिकरण की मुख्य पार्टी है।
हमास पिछले हफ्ते से पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है। फिलिस्तीन के इसी संगठन ने दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों में से एक इजरायल को ऐसा जख्म दिया, जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी। हमास ने इजरायल पर हजारों रॉकेट दागे। इसके लड़ाकों ने इजरायली शहरों-गाँवों में घुसकर कत्लेआम मचाया। हमास के इन हमलों में इजरायल में 7अक्टूबर को ही 1200 से अधिक लोगों की जान चली गई। इन हमलों के जवाब में इजरायल ने हमास को खत्म करने की कसम खाई है। इजरायली विमान गाजा पट्टी पर हमास के ठिकानों पर बम बरसा रहे हैं। इन सबके बीच हमास भी इजरायल पर रॉकेट दाग रहा है। आइए जानते हैं हमास की पूरी कहानी और इस संगठन के बड़े चेहरों के बारे में।
हमास को इस्लामिक रेजिस्टेंस मूवमेंट और अरबी में हरकत अल-मुकावामा अल-इस्लामिया के नाम से भी जाना जाता है। यह एक कट्टरपंथी इस्लामी संगठन है। इसकी स्थापना 1987 में पहले इंतिफादा फिलिस्तीनी सशस्त्र विद्रोह के दौरान फिलिस्तीनी शरणार्थी शेख अहमद यासीन ने की थी। हमास की जड़ें कट्टर संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड से जुड़ी मानी जाती हैं। मुस्लिम ब्रदरहुड की स्थापना 1920 के दशक में मिस्र में हुई थी। शेख अहमद यासीन एक फिलिस्तीनी मौलवी था, जो मुस्लिम ब्रदरहुड की स्थानीय शाखाओं से जुड़ा था। यासीन शुरुआत में काहिरा में इस्लामिक स्कॉलर था। 1960 के दशक में वह गाजा और वेस्ट बैंक में धर्म के प्रचार प्रसार का काम करता था। 1967 में 6 दिन के युद्ध के बाद इजरायल ने गाजा और वेस्ट बैंक पर कब्जा कर लिया था। 1987 में मिस्र तथा फिलिस्तीन के मुसलमानों ने मिलकर हमास का गठन किया था जिसका उद्धेश्य क्षेत्र में इज़रायली प्रशासन के स्थान पर इस्लामिक शासन की स्थापना करना था। हमास का प्रभाव गाज़ा पट्टी में अधिक रहा है। इसके सशस्त्र विभाग का गठन 1992 में हुआ था। 1993 में किए गए पहले आत्मघाती हमले के बाद से लेकर 2005 तक हमास ने इजरायली क्षेत्रों में कई आत्मघाती हमले किए। 2005 में हमास ने हिंसा से अपने आप को अलग किया लेकिन इसके बाद 2006 से गाज़ा से इसरायली क्षेत्रों में रॉकेट हमलों का सिलसिला आरम्भ हुआ जिसके लिए हमास को उत्तरदायी माना जाता है। सन् 2008 के अन्त में इसरायल द्वारा गाज़ा पट्टी में हमास के विरुद्ध की गई सैन्य कार्रवाई में कई लोग मारे गए थे। इस अभियान का उद्देश्य इजरायली क्षेत्रों में रॉकेट हमले रोकना था।

हिज़्बुल्लाह
हिज़्बुल्लाह का शाब्दिक अर्थ है अल्लाह की पार्टी। हिज़्बुल्लाह लेबनान का एक राजनीतिक और अर्द्धसैनिक संगठन है। 1982 में इजराइल ने जब दक्षिणी लेबनान पर आक्रमण किया था तब शिया समर्थक हिज़्बुल्लाह संगठन अस्तित्व में आया था। आधिकारिक रूप से 1985 से इस संगठन को ईरान और सीरिया का समर्थन प्राप्त हुआ। हिज़्बुल्लाह लेबनान के नागरिक युद्ध के दौरान स्थापित किया गया था। हिज़्बुल्लाह का नेता हसन नसरुल्लाह है। इजराइल और गाजा के के संघर्ष में हिज्बुल्लाह गाजा का समर्थन कर उसका साथ देते हुए इजराइल से युद्ध कर रहा है। हाँ ये बात भी सच है कि लेबनान का यह अपना एक सैन्य संगठन भी है जिसे लेबनान के संविधान के तहत मान्यता प्राप्त है जो इजरायल के बढ़ते खतरे के प्रति सावधान रहता है। 1982 की जंग के वक्त इजरायल के खिलाफ बहुत ही सफलतापूर्वक अपने देश को इजरायल के कब्जे में जाने से बचाया था।
हिजबुल्लाह हमास की तुलना में अधिक शक्तिशाली और परिष्कृत सैन्य बल है, जिसके पास हजारों प्रशिक्षित लड़ाके व 100,000 से अधिक रॉकेटों का एक शस्त्रागार और सटीक-निर्देशित मिसाइलों का भंडार है जो इज़राइल के अंदर संवेदनशील लक्ष्यों पर हमला कर सकते हैं। हिज़्बुल्लाह की स्थापना से लेकर वर्तमान तक इज़राइल राज्य का खात्मा हिज़्बुल्लाह के प्राथमिक लक्ष्यों में से एक रहा है। हिज़्बुल्लाह के 1985 के अरबी-भाषा के घोषणापत्र के कुछ अनुवादों में कहा गया है कि “हमारा संघर्ष तभी समाप्त होगा जब यह इकाई इज़राइल ख़त्म हो जायेगी”।
एक समय लॉयल्टी टू द रेसिस्टेंस ब्लॉक के नेता मोहम्मद राड ने कहा कि ईरान से पैसा केवल निजी दान के माध्यम से आता है जिसका उपयोग स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और युद्ध विधवाओं के समर्थन के लिए किया जाता है। उन्होंने कहा, हिज़्बुल्लाह की आय का मुख्य स्रोत पार्टी के निवेश विभाग और धनी शिया हैं।

हूती
कौन हैं और कहाँ से आते हैं हूती? हूतियों का उदय 1980 के दशक में यमन में हुआ। यह यमन के उत्तरी क्षेत्र में शिया मुस्लिमों का सबसे बड़ा आदिवासी संगठन है। हूती उत्तरी यमन में सुन्नी इस्लाम की सलाफी विचारधारा के विस्तार के विरोध में हैं। 2011 से पहले जब यमन में सुन्नी नेता अब्दुल्ला सालेह की सरकार थी, तब शियाओं के दमन की कई घटनाएँ सामने आईं। ऐसे में शियाओं में सुन्नी समुदाय के तानाशाह नेता के खिलाफ गुस्सा भड़क उठा। एक रिपोर्ट के मुताबिक 2000 के दशक में विद्रोही सेना बनने के बाद हूतियों ने 2004 से 2010 तक सालेह की सेना से छह बार युद्ध किया। साल 2011 में अरब देशों (सऊदी अरब, यूएई, बहरीन और अन्य) के हस्तक्षेप के बाद यह युद्ध शान्त हुआ। तानाशाह सालेह को देश की जनता के प्रदर्शनों के चलते पद छोड़ना पड़ा। इस दौरान अब्दरब्बू मंसूर हादी यमन के नए राष्ट्रपति बने। लेकिन देश में जिहादी आतंकियों के बढ़ते हमले, दक्षिणी यमन में अलगाववादी आंदोलन, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और सेना का पूर्व राष्ट्रपति सालेह को समर्थन हादी के लिए समस्या बना रहा। आखिरकार जब हूतियों को अपनी समस्याओं का हल होता नहीं दिखा, तो उन्होंने हादी को भी सत्ता से बेदखल कर दिया और राजधानी सना को अपने कब्जे में ले लिया। शिया समुदाय से आने वाले हूतियों की यमन में इसी बढ़ती ताकत से सुन्नी बहुल सऊदी अरब और यूएई में घबराहट बढ़ गई। उन्होंने अमेरिका और ब्रिटेन की मदद से हूतियों के खिलाफ हवाई और जमीनी हमले करने शुरू कर दिए और सत्ता से बेदखल हुए हादी का समर्थन किया। इसका असर यह हुआ कि यमन अब युद्ध का मैदान बन चुका है। यहां सऊदी अरब, यूएई की सेनाओं का मुकाबला हूती विद्रोहियों से है। ईरान पर हूतियों की मदद के आरोप लगते रहे हैं। बताया जाता है कि हूती विद्रोहियों को सीधे तौर पर ईरान का समर्थन हासिल है। दरअसल, ईरान शिया बहुल देश है और हूती मुस्लिम भी इसी समुदाय से आते हैं। इतना ही नहीं ईरान का पहले ही सऊदी अरब और यूएई से लम्बा विवाद रहा है।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि बेकसूर फिलिस्तीनी लोग व बच्चे मारे जा रहे हैं। जीवन की समस्याएँ जटिल हो गई हैं। हमास की गलती के कारण गाजा नेस्तनाबूद हो गया। पूरी दुनिया में फिलिस्तीनी के प्रति सहानुभूति तो है लेकिन वह प्रदर्शन तक ही सीमित है। कोई देश फिलिस्तीनी शरणार्थियों को शरण देने को तैयार नहीं है। कई मुस्लिम राष्ट्र हमास का समर्थन तो कर रहे हैं किन्तु खुलकर युद्ध में नहीं उतर रहे हैं। अतः थोड़ी बहुत शान्ति की उम्मीद भी बनी हुई है।

— गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”

गिरेन्द्र सिंह भदौरिया "प्राण"

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