कविता

ईश्वर की व्यवस्था

आज सुबह हुई और शाम भी हो गई
रात भी अंगड़ाइयां लेने लगी,
फिर सुबह होने की चिंता 
अभी से क्यों होने लगी?
सुबह होगी या नहीं
यह सोचना तो हमारा काम नहीं
क्या आज की सुबह या शाम होने में
हमारा कोई योगदान था
नहीं न, फिर इतनी बेचैनी क्यों
जब हमें यह भी नहीं पता
कि कल का सूरज हम देखेंगे भी या नहीं
फिर सुबह होने की हमें चिंता क्यों?
अच्छा है इतना बेचैन न होइए
खुश रहिए, मस्त रहिए
ईश्वर का धन्यवाद कीजिए
आज की सुबह,  शाम के लिए
अपने होने के लिए,
कल का कल देखेंगे
हम होंगे तो सुबह भी देखेंगे
फिर ईश्वर का धन्यवाद करेंगे
बेकार की उलझनों में हम नहीं फंसेंगे।
ईश्वर की व्यवस्था में
व्यवधान नहीं बनेंगे
न ही शंका या सवाल करेंगे
सुकून की सांस निश्चिंतता से लेंगे। 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921