गजल
हार बैठे जिंदगी को प्यार मे |
जी रहे हैं अब तलक एतबार में |
नफरतो को भूल कर आओ जिये
क्या रखा हैआपसी तकरार में |
पीठ में खंजर चुभाते हैं सदा
फ़िर लगाते हैं दवा बेकार में |
आपसी तकरार में है क्या धरा
ज़िंदगी की नेमते हैं प्यार में |
हर तरफ़ से टूट के हारा किये
हौसला पाया नहीं परिवार में |
हार में ही जीत का होता मज़ा
यूँ भला क्यों रो रहे बेकार में |
इश्क ने कितने सितम ढाये यहाँ
हो गये रूसवा सरेबाज़ार में |
बाँट कर देखो सनम तुम प्यार को,
बज उठेगी रागिनी संसार में |
हर तरफ़ मायूसियाँ बिखरी मगर,
मिल गयी खुशियाँ तेरे दरबार में |
हौसलों से हार जाती मुश्किलें,
है ‘मृदुल’ जीवन इसी के सार में |
— मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”