गजल
कौन किसी का खाता है अपनी किस्मत का सब खाते
मिलने पर सब होते खुश हैं ना मिलने पर गाल बजाते
कौन साथ ले जा पाया है रुपया पैसा महल अटारी
धरा ,धरा पर ही रह जाता इस दुनिया से जब हम जाते
इन्सां की अब बातें छोड़ों ,हमसे अच्छे भले परिंदे
मंदिर मस्जिद गुरूदारे में दाना देखा चुगने जाते
अगले पल का नहीं भरोसा जीबन में क्या हो जायेगा
खुद को ग़फ़लत में रखकर हम रुपया पैसा यार कमाते
अपना अपना राग लिए सब अपने अपने घेरे में
सबकी “मदन ” यही कहानी दिन और रात गुजरते जाते
— मदन मोहन सक्सेना