गोलू की भूल
गोलू अपनी पढ़ाई कर रहा था। मम्मी नहा धो कर आई अपने बेटे गोलू से बोली बेटा गोलू यह लो पैसे बाजार में जा कर जो भी फूल मिले ले कर आ जाना। मैं मंदिर में पूजा करने जाऊंगी। मां ने पच्चास रूपये गोलू के हाथ थमा दिये और पूजा का सामान तैयार करने लगी।
गोलू पढ़ाई में मस्त था मां की बात अनसुनी कर गया। थोड़ी देर के बाद मां की आवाज गोलू के कानों में सुनाई दी-“गोलू उठो जल्दी जाओ आप का स्कूल टाइम भी हो रहा है।”
मां की आवाज सुन कर गोलू तपाक से उठा। थैला लिया और बाजार की तरफ चल दिया।रास्ते में छोटू मिल गया उस से बातें करने लग पड़ा।उस से विदा हुआ तो भूल गया मां जी ने क्या मंगवाया था। जो भी फूल मिले ले न- न -न गोभी का फूल मिले तो ले आना। इसी सोच में पड़ा ।फूलों की दुकान छोड़ कर सब्जी बाले के पास पहुंच गया।बोला लाला जी गोभी का फूल हो लो पच्चास रूपये का दे दो।
लाला ने पच्चास रूपये में गोभी का फूल तोल कर दे दिया।
मां घर पर गोलू का इंतजार कर रही थी।जैसे गोलू मां के पास पहुंचा मां हाथ में गोभी का फूल दे कर हैरान हो गई ,पूछने लगी-“गोलू मैंने तुम से फूल मंगवाए थे न की फुल गोभी ।बोल अब में पूजा में क्या ले कर जाऊॅंगी?” गोलू खड़ा खड़ा चुपचाप मां को देखें जा रहा था। मां आप ने ही कहा था ।हां मैंने यह कहा था जो भी फूल मिले लाल सफेद यानी जो भी फूल मिले ले आना और तू गोभी का फूल ले आया।
गोलू अपनी ग़लती पर पछताने लगा।मां गोलू का रुआंसा चेहरा देख कर हंस पड़ी। पगले जो बात मां कहे ध्यान से सुना करो। तभी पापा आ गये पूछने लगे अरे क्या बात हुई क्यों गोलू का डांट रही हो कुछ हमें भी पता चले।सारी बात का पता चला तो पापा खूब हंसे मां भी हंसने के बिना न रह सकी।दोनों को हंसते देख गोलू भी हंस पड़ा और मां से लिपट गया।
मां ने प्यार से गोलू के सिर पर हाथ फेर कर कहा- आगे से मेरा बेटा कोई भी बात हो ध्यान से सुनना। फूल फूल होता गोभी का फूल अलग होता है। एक बार फिर सभी हंस पड़े।गोलू ही हंसता हुआ पापा से लिपट गया।
— शिव सन्याल