सामाजिक

धूल रहे न मन आंगन

हम सभी मानव हैं, और मानव जीवन में हमारे कार्य व्यवहार में बहुत सी ऐसी चीजें होती हैं या हो जाती जिसे मानवीय मूल्य की दृष्टि से अनुचित कहा जाता है और हमारे मन में सामने वाले के प्रति धूल जमने ही लगती है। ऐसे में हमारा प्रयास यही होना चाहिए कि ऐसा न हो क्योंकि भूल चूक तो जीवन का हिस्सा है, कोई भी उससे बचा नहीं है, ऐसे में हम ऐसी बातों को दिल से न लेकर सामान्य ही रहें, ताकि हम भी परेशान न हों और सामने वाले को नीचा दिखाने का प्रयास कर संबंधों में दूरियां न पैदा करें। जैसे हम धूल झाड़ कर अपनी चीजों को साफ कर फ़िर से उसे साफ सुथरा कर सुंदर दिखाने और फिर से उपयोग करने में संकोच नहीं करते हैं, न कि उसे फेंक देते हैं। ऐसा ही हमें अपने  संबंधों के लिए समझना और करना चाहिए।   

      तीज त्योहारों पर हम  साफ सफाई कर घर, दुकान, प्रतिष्ठान, मकान, वाहन आदि साफ सुथरा कर नया करने का प्रयास करते ही रहते हैं और अच्छा लगे का फिर से प्रयास कर थोड़ा बहुत नये तरह से व्यवस्थित कर बदलाव करते हैं, जिससे हमें बदलाव का भी आभास होता है, कुछ ऐसा ही हमें अपने मन के आंगन के लिए भी करना चाहिए, उस पर जो भी थोड़ा बहुत दूर जमी हो उसे साफ सुथरा कर नयापन लाते रहना चाहिए ।नकारात्मक बातों का विचार जब हमारे मन में पनपने लगे तो हम उन्हें दूर करते रहें, ताकि हमारे मन का आंगन भी साफ सुथरा बना ही रहने के साथ हमें खुश रहने की प्रेरणा प्रदान करता रहे। आपस में सद्भाव, भाईचारा बना रहे, किसी के प्रति छल कपट ईर्ष्या द्वैष ना रहे और हर तरह से हमारे मन का आंगन सदैव स्वच्छ पवित्र और निर्मल पावन बना रहे। सभी के लिए हमारे मन में सकारात्मक भाव हो, ईश्वर सभी का कल्याण करें, सभी स्वस्थ सानंद रहें, यही ईश्वर से प्रार्थना करतूत रहें है।     

      तब निश्चित ही हमारे मन के आंगन में धूल जमने ही नहीं पायेगी और हम सब खुशहाल रहे सकेंगे। कहने सुनने के लिए यह बहुत साधारण सी बात है, लेकिन हम यदि ऐसे प्रयास निरंतर करते रहें तो इसका सुखद परिणाम हमें स्वमेव प्राप्त होता रहेगा। जिसका हम सबके जीवन में बड़ा महत्व होगा।

*सुधीर श्रीवास्तव

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