कविता

गुंजन

कोयलिया बोले
अमवा की डाल से
नई कलियन पर
गुंजन कर भंवरा ,
उनके संग
करे क्यों रंगरलिया?

कुहू कुहू कर
समझाए – “रे भंवरा!
मधुबन- मधुबन
भटकत काहे?
बसंत आयो,
पीत रंग छायो ,
फूल-फूल,
मंडराये क्यों भंवरा?

भंवरा बोले
किसलय के भाल से।
मधुरस का
मैं पान हूँ करता,
देख पराग
हो जाता मतवाला।
फूल- फूल
मैं चुंबन करता
गुंजन कर
मैं प्रेम दर्शाता
भंवरा गुंजन करे
नलिनी के ताल से ।

— बृजबाला दौलतानी