कविता

तभी तो यहाँ से सब हस कर निकलते हैं

बड़ी मुश्किल से यहाँ धसकर निकलते हैं
मैदान से अब हुस्न के लश्कर निकलते हैं

उठा गुब्बार टापों से घटा काली लहराई
सामत यहाँ लेकर सुहानी शाम है आयी
कहीं डाका पड़ेगा कहीं लाशें गिराएंगे
अंदाज में ऐसे यहाँ सजकर निकलते हैं

न तीर न तलवार न वो बरछी चलाते
मर जाते सभी हैं नजर तिरछी चलाते
निर्भीकता से हमले सरे राह कर देते
वाकिफ जो हैं वो बच कर निकलते हैं

जो कहर ढा रहे हाक़िम उन्ही के सब
सुनेगा नहीं कोई ख़ादिम उन्ही के सब
मालूम है “राज” मे सुनामी को लाना
तभी तो यहाँ से सब हस कर निकलते हैं


राजकुमार तिवारी “राज”
बाराबंकी

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782