दीप
सुनो!
दीपों का त्यौहार आ रहा है
कुछ रोशनी
अपने अंदर भी कर लेना।
सुना है !
अंधकार बहुत है
तुम्हारे अंदर भी
तभी दिखता नहीं तुम्हें
औरों का व्यक्तित्व ।
मगर दिख जाता है
सत्य की रोशनी में
औरों को तुम्हारा अहम।
क्या मिट जाएगा ?
इस बार
दीपों की रोशनी में
तुम्हारा ज़िदी अहम।
— डाँ. राजीव डोगरा