कविता

दीपावली का पर्व

दीपोत्सव का पर्व यानी दीपावली पर्व
हम सब  सनातनी हिंदू
अपनी संस्कृति अपने संस्कार के अनुरूप
हर साल मनाते आ रहे हैं,
भगवान राम का पत्नी सीता और
भ्राता लक्ष्मण के साथ
चौदह वर्षों बाद वनवास से वापस
अयोध्याधाम आने के उत्साह में
आज भी हम दीपावली मनाते हैं।
दिये मोमबत्तियों से सारी घर, दुकान मकान
प्रतिष्ठानों ही नहीं दुनियां को प्रकाशित करते हैं।
ऊंच नीच, जाति धर्म का भेदभाव किए बिना
हम सब अपने अपने सामर्थ्य सुविधा से
दीपावली का वार्षिक त्योहार मनाते हैं।
उत्साह उमंग से भरपूर
वस्त्र, आभूषण, लइया गट्टा, बताशे मिठाइयां
पटाखे फुलझड़ी खरीद कर लाते हैं
घर दुकान, प्रतिष्ठान। और मकानों की
रंग पुताई और सफाई करते/कराते हैं,
विभिन्न तरह के सजावटी साजो सामान से
इन्हें खूब सजाते हैं।
तरह तरह के पकवान बनाते हैं
लक्ष्मी जी गणेश जी की पूजा करते हैं
बही खातों की पूजा पाठ के साथ
अपने अपने ढंग से साधना आराधना करते हैं
हर जन मन के सुख समृद्धि की कामना करते हैं,
अपने बड़े बुजुर्गो के चरणों में नतमस्तक हो
शीश झुकाकर आशीर्वाद लेते हैं
और छोटों पर अपना प्यार दुलार लुटाते हैं।
दीपावली के इस पावन पर्व को
अपने पुरखों की ही तरह हम सब आज भी
बड़े हर्षोल्लास से मनाते हैं,
और खुद को सौभाग्यशाली मानते हैं

*सुधीर श्रीवास्तव

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