मुक्तक
तन्हाईयां जब डसेंगी, तब मुझे तुम याद करना,
भीड़ में अकेली रहोगी, तब मुझे तुम याद करना।
मैं चलूँगा साथ तेरे, ख़्वाब बनकर हर राह पर,
जब तुझे ज़रूरत पड़ेगी, तब मुझे तुम याद करना।
हमने चाहा खुद से ज़्यादा, तुम मिले या न मिले,
प्यार के दो पुष्प दिल में, तेरे खिले या न खिले।
देखती नज़रें घुमाकर, और फिर मुँह फेरती हो,
सुन रहा जो कह रही हो, लब हिले या न हिले।
— डॉ अ कीर्ति वर्द्धन