नहीं
क्या दर्द क्या दुआ दिल बस में नहीं,
रात मांगी दुआ वो वापस आए नहीं।
तुफ़ान कोई सैलाब,बीच हमारे नहीं,
डूब गई कश्ती,वो साहिल मिले नहीं।
कूचा-ए-जाँ प्यार के बादल छाए नहीं।
ग़ज़ल-सी-आंखें बदली कभी छाई नहीं।
बहता वक्त,दरिया में झरने उतरे नहीं,
बर्फ पिघलती रही रवानी देखी नहीं।
तस्कीन से हासिल कुछ हुआ ही नहीं,
खुर्शीद से रोशन कहीं जहाँ हुए नहीं।
जख्म फूलों से कभी रफ़ू होते नहीं,
दर्द के किस्से याद-ए-माजी हुए नहीं।
कश्ती-ए-नूह में अब बैठा हूँ मैं क्या?
साहिल भी एतबार के काबिल नहीं।
~- बिजल जगड