मुक्तक
देख रही गौरी पिया को, दरवाज़े की ओट से,
आँगन बैठे सास ससुर, करे इशारा ओट से।
पिया मिलन को तरस रही, छुट्टी में घर आया,
अंग लगाऊँ कैसे पिया को, सोच रही ओट से।
व्याकुल मन तड़फ रहा है, भाव मुख पर झलक रहा है,
आतुर नैना पिया दरश को, आँसू उसमें छलक रहा है।
धक धक करती दिल की धड़कन, धड़क रही ज़ोरों से,
पिया मिलन की आस भाव, गौरी मुखड़ा दमक रहा है।
— अ कीर्ति वर्द्धन