लेख

चूरन चटनी और चटपटा चुनाव

चुनाव को चटपटा बनाने के लिये देश की सभी पार्टियां देश की जनता को चुनावी चूरन चटा कर चुनाव को चटपटा बनाती नजर आ रही हैं और मसालेदार, लच्छेदार, चटपटे चुनावी जुमलों से जनता का पेट भरने का प्रयास भी करती नजर आ रही हैं रोजगार की बात तो चुनाव से पहले ऐसे करते हैं जैसे सावन भादौं में मूसलाधार बरसात हो रही हो प्रलोभनों का बाजार ऐसे सजाया जाता है जैसे समस्त देशवासी आज भी 1951 के दशक में जी रहे हों और वर्तमान की शिक्षा जागरूकता का कोई महत्व ही नही है। एक ओर हम देश को आगे ले जाने की बात कहते हैं तो दूसरी ओर हम तमाम तरह की सुविधाऐं निःशुल्क प्रदान किये जाने की घोषणा भी कर देते हैं, एक बार हम यह भी कह देते हैं कि हमारे देश और प्रदेश में बेरोजागारी खत्म हो गयी है दूसरी ओर हम देश व प्रदेश के लोगों को निःशुल्क रासन भी बांट रहें है कभी किसी ने विचार किया है कि ये सब क्या है ? इस प्रकार का रूख देश को किस दिशा में ले जा रहा है ? फिर हम यह सब कब तक करते रहेगें इसका अन्त कहां पर होगा इस ओर किसी ने नही सोंचा है।


एक बार हम मंच पर खड़े होकर सभी देशवासियों को एकता की डोर में बांधने की बात कहते हैं फिर चुनाव के दौरान जाति के जाल का हम ऐसा इस्तेमाल करते हैं कि हर दूसरी जाति का इंसान दुश्मन नजर आने लगता है। हम सत्ता में आने के बाद इतनी नौकरियां देंगे, हम सत्ता में आने के बाद इसके दाम कम करेंगे, हम सत्ता में आने के बाद इसे निःशुल्क कर देगें क्यों भाई आपकी बातों से तो यही लग रहा है कि जितनी भी समस्याऐं हैं सभी जान बूझ कर पैदा किये हो! और सत्ता तक पहुंचने का रास्ता बनाये हो। आपको नही पता कि मेरे प्रदेश मे कुल कितने कालेज हैं और उन कालेजों में कितने छात्र हैं तथा कितने छात्र अपनी परीक्षा उर्त्तीण कर चुकें हैं और अब तक कितनों को रोजगार व नौकरी दी जा चुकी है बिना इस प्रकार की जनाकारी इक्कठा किये प्रवचन पर प्रचवन दिये जा रहे हो फिर मान लो किसी तरह से हम सत्ता में आ भी जाते हैं तो वादा पूरा करने के लिये पांच वर्षों तक का समय ले लिया जाता है और फिर सत्ता में आने के लिये समस्या को अधर में लटका कर फिर सत्ता में आने का रास्त बनाया जाता है और फिर एक बार चटपटा चूरन चटाया जाता है।


सभी पार्टियों को यदि देश की व देशवासियों की चिन्ता होती तो चुनाव के दौरान रेवडी की रेहड़ी नही लगाते और सोहन पपड़ी और लच्छेदार मिठाई को ठेला पर नही रख के नही बेंचते बल्कि अपनी उपलब्धियों को गिनाते उनसे हुये फायदे की बात जनता से पूंछते या फिर मेरे द्वारा पहले से मौजूद इतने अस्पताल, स्कूल, स्टेशन, हवाई अड्डा, बस अड्डा होने के बाद भी इतने हवाई अड्डे, बस अड्डे, स्कूल अस्पताल बनवाये गये परन्तु ऐसा नही क्यों जानते हो ? ऐसा करने पर हमें अधिक कर्मचारियों की आवश्यकता पड़ेगी सम्बन्धित क्षेत्र में हमें भर्ती का दरवाजा खोलना पडेगा, बिना ढिंढोरा पीटे हमें शिक्षित और योग्य लोगों को नौकरी देनी पड़ेगी इससे लोगों में खुशहाली, सम्पन्नता, और जागरूकता आने लगेगी तो इससे अच्छा है कि मुफ्त की रेवडी, और बैसाखी के सहारे ही सत्ता पर आरूढ़ हो लिया जाये फिर किसी तरह से पांच वर्ष क्रियावन्यन में बीत ही जायेंगे।


भारत की आजादी के चार वर्ष बाद 25 अक्टूबर 1951 को हिमांचल प्रदेश के चिनी तहसील में पहला वोट पड़ा था उस उसम में देश में लगभग आधा दर्जन पार्टियां अपने अपने रंग से दिल्ली की गद्दी को रंगना चाह रहीं थीं। देश का यह पहला चुनाव देशवासियों के लिये इतना आसान नही था उस समय भी प्रत्याशी घर-घर जाकर मतदाताओं की निरक्षरता को ध्यान में रखते हुये मतदाताओं को जागरूक किया करते थे क्योंकि उस दौर में हर पार्टी के लिये एक अलग मतपेटी हुआ करती थी। चुनाव सम्पन्न होनें के बाद मतपेटियों को गंतव्य तक पहुंचाना भी मिल का पत्थर साबित हो रहा था इस मतपेटियों को गंतव्य तक पहुंचाने के लिये म्यांमार की सीमा से लगे मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों में स्थानीय लोगों को यह कह कर तैयार किया गया कि जो लोग मतपेटी पहुंचाने में मदद करेंगे उनको बदले में एक-एक कंबल तथा बंदूक का लाइसेन्स दिया जायेगा ये चुनाव के दौरान मतदाताओं को दिया जाने वाला पहला प्रलोभन था उसके बाद सन 1957 को देश में दूसरे आम चुनाव का बिगुल बजाया गया और दूसरी बार देश में चुनाव सम्पन्न कराया गया। सन 1952 के पहले आम चुनाव के बाद से ही सभी चुनाव खास होने लगे थे और चुनाव के दौरान प्रलोभनों का बाजार गर्म होंने लगा था। अब देखना यह है कि 1951-52 में सारक्षता की कमी के कारण दिये गये प्रलोभन तो ठीक थे किन्तु आज हम चांद सूर्य तक पहुंच कर अपनी शिक्षा और जागरूकता का झंडा ऊंचा कर रहें हैं और उसकी के बीच में चुनाव के दौरान चुनावी चूरन चटनी, और मसालेदार, लच्छेदार, चटपटे चुनावी जुमले अभी जनता को बहुत पसंद आ रहे हैं जिससे उनके मानसिक विकास पर एक सवालिया निशान लगता नजर आ रहा है। जबकि तबसे लेकर अब तक अप्रत्याशित जनसंख्या की बृद्धि हुयी है शिक्षा का भी विस्तार हुआ है इसी बीच नौकरी को लेकर तमाम तरह की परीक्षाएं अर्हताएं निर्धारित की जा चुकी हैं फिर भी चुनाव के समय नौकरी के नाम का पिटारा ऐसे खोला जाता है जैसे देश और प्रदेश के शिक्षित युवाओं के बारें में कोई जानकारी ही नही है और आज ही नहा धो कर कुर्ता पहन कर प्रवचन देने के लिये अवतरित हुये हैं इससे पहले इनका कोई अस्तित्व नही था और ये देश की दशा से एकदम अनभिज्ञ थे इसलिये देश में कुछ नया करने जा रहे हैं।

राजकुमार तिवारी (राज)
बाराबंकी उ0प्र0

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782