गीतिका/ग़ज़ल

शाम की आंखों में

सुरमई शाम की आंखों में, कुछ नमी सी है।

आज मौसम के ईरादों में, कुछ कमी सी है।

चांद भी अब तलक, आया नहीं अटारी पे, 

कुछ अंधेरों में ये, डूबी हुयी जमीं सी है।

कुछ उदासी सी है, छाई इन दिनों साहिल पे,

आज जाने न क्यूं ,लहरें ये अनमनी सी है।

रब्त को इतना, बढ़ाके हमें, छोड़ा तनहां,

जल रही है शमा, मगर लगे, बुझी सी है।

गुज़र के भी ये जिंदगी, अभी नहीं गुज़री,

शिकस्ता पा ही सही, जिंदगी बाकी सी है।

— पुष्पा अवस्थी “स्वाती”

*पुष्पा अवस्थी "स्वाती"

एम,ए ,( हिंदी) साहित्य रत्न मो० नं० 83560 72460 pushpa.awasthi211@gmail.com प्रकाशित पुस्तकें - भूली बिसरी यादें ( गजल गीत कविता संग्रह) तपती दोपहर के साए (गज़ल संग्रह) काव्य क्षेत्र में आपको वर्तमान अंकुर अखबार की, वर्तमान काव्य अंकुर ग्रुप द्वारा, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री के कर कमलों से काव्य रश्मि सम्मान से दिल्ली में नवाजा जा चुका है