कविता

मेरे सपनों की गुल्लक 

सोचा आज अपने सपनों की गुल्लक खरीद लू, 

उसमें में जहाँ भर की खुशियां भर लू, 

जब कोई दुःखी हो तो उस पर वो खुशियां बिखेर दु, 

कोई भी जहाँ में दुःखी ना हो, 

मेरे सपनों के गुल्लक में मेँ हर खुशियो के पल चुरा कर रख लू, 

जब किसी को जरूरत हो तो मेँ वो गुल्लक तोड़ दु, 

जिंदगी बहुत अजीब पहेली है, 

हर वो सपने जो मैने देखे हैं, 

वो अपने गुल्लक मेँ कैद कर लू, 

मेरे सपनों का कोई  रंग नहीं है, 

मेँ  उन सपनों में रंग भर दु, 

मेरे सपनों की गुल्लक अनमोल है,

उसे कोई चुरा ना ले, 

ऐसा जतन कर दु, 

पैसे की गुल्लक तो सबकी होती हैं, 

मेरी गुल्लक प्यार, एकता, अपनापन की है, 

जो कहीं बाजार में मिलती नहीं, 

मैने जो सपनों की गुल्लक ली, 

वैसी गुल्लक कहीं मिलती नहीं।।

— गरिमा

गरिमा लखनवी

दयानंद कन्या इंटर कालेज महानगर लखनऊ में कंप्यूटर शिक्षक शौक कवितायेँ और लेख लिखना मोबाइल नो. 9889989384