ग़ज़ल
प्यार उलझे नहीं सवालों में।
शातिराना हसीन चालों में।
ढूंढता कुल जहां रहा उनको,
वो न आये कभी उजालों में।
सामने से कभी नहीं देखा,
शक्ल देखी फ़क़त रिसालों में।
वक्तबदला बदलगया सबकुछ,
अब न सुर्खी रही वो गालों में।
मैं जवाबों के पार जा पहुँचा,
फलसफी गुम रहा सवालों में।
— हमीद कानपुरी