अंतिम प्रतीक्षा
सुबह से ही फोन घनघना रहे थे।निशा फोन पर बातें करते -करते जैसे थक सी गई थी।सारे नाते-रिश्तेदारों के फोन थे। सब यही सूचना दे रहे थे कि मांजी अब नहीं रहीं।
निशा की सास सुखमती देवी इस दुनिया से रुखसत हो चुकी थी। सुबह-सुबह घर पर निशा ही अकेली होती है।पति निशांत सुबह टहलने निकल जाते हैं।दोनों बेटे जिम चले जाते हैं। सबका मोबाइल घर पर पड़ा रहता है। आज सभी मोबाइल बज रहे थे।
निशा सुबह-सुबह इतनी बुरी खबर सुनकर रो पड़ी। वो गाँव जाने की तैयारी करने लगी। इस शहर से गाँव की दूरी लगभग ढाई सौ किलोमीटर थी।
कुछ दिन पहले निशा मांजी की तबियत खराब है सुनकर उन्हें देखने गाँव गई थी। कुछ दिन वह सास की सेवा कर वापस आ गई थी।लौटते समय निशा ने कुछ रुपये उन्हें दिये और कहा कि -“मांजी आप इससे अपना अच्छे से इलाज करवा लेना।आप पैसे की चिंता मत करना ।ये रुपये आपके बेटे ने आपके लिए भेजें हैं।”
यह सुनकर मांजी का चेहरा अनायास उतर गया । उन्होंने फीकी हँसी हँसकर कहा-” इसकी क्या जरूरत थी।निशांत मुझसे मिलने आ जाता । यही मेरे लिए बहुत था । वो इतना बड़ा आदमी बन गया है कि मां से मिलने के लिए भी उसके पास समय नहीं है।”
निशा के आँसू रुक नहीं रहे थे।उसे मांजी की सारी बातें आज याद आ रही थी। कितनी ममतामयी थीं उसकी सास।वात्सल्य की मूरत थीं।
बचपन से उसे डराया जाता था कि ससुराल जाएगी तो सास तुझे मार-मार कर ठीक करेगी।’
पता नहीं भारतीय समाज में सास की छबि किसी चुड़ैल से कम नहीं है। वह भी सास के नाम से दहशत में थी।
जब वह ब्याह कर आई ।तब उसकी सास ने उसे हँसकर गले लगाया था। कभी उसे किसी भी बात के लिए नहीं डांटा था। निशा को कभी ऐसा महसूस ही नहीं हुआ कि वह ससुराल में है। सास ने उसे मां की तरह ही स्नेह दिया।
वह अपने ही विचारों में खोई यादों के गलियारों में घूम रही थी कि उसे पति का भारी स्वर सुनाई दिया-” कहाँ जाने की तैयारी हो रही है?”
पति के इस प्रश्न पर वह फफक कर रो पड़ी। उसने रोते-रोते कहा-” मांजी नहीं रहीं।अभी कितने फोन आये।आप लोग अपना मोबाइल लेकर जाया करें। “
निशा की यह बात सुनकर निशा के पति एकदम संयत रहे। वे टॉवेल पकड़कर वॉशरूम में घुस गए।
निशा भी अपने आँसू पोंछती हुई चाय बनाने लगी हालाँकि उसका मन कुछ भी करने को नहीं हो रहा था पर मजबूरी थी। पति जैसे ही नहा कर आये वह पूछने लगी -“कितने समय गाँव जाएंगे?जल्दी निकलते हैं वरना देर हो जाएगी।”
निशा के इस प्रश्न पर उसके पति ने कहा,” आज जाकर क्या करेगें?यहाँ से गाँव ढाई सौ किलोमीटर दूर है।पहुंचते-पहुंचते शाम हो जाएगी।हमें तो मांजी की चिता की राख भी नसीब नहीं होगी।”यह कहते हुए वो आराम से चाय पीने लगे।
निशा को पति के इस बर्ताव पर घोर आश्चर्य हुआ।
वह सोच रही थी कि मां के मरने की खबर सुनकर मां का छोटा बेटा फफककर रो पड़ेगा।तड़प उठेगा।तुरंत गाँव की ओर दौड़ पड़ेगा किंतु मां का लाड़ला बेटा मां के मरने पर इतना सयंत था या फिर असंवेदनशील या मन का कठोर, पत्थर दिल इंसान। वह समझ ही नहीं पा रही थी।
निशांत जरूर थोड़े कठोर दिल वाले थे।पत्नी का दर्द उन्होंने कभी नहीं समझा। पत्नी की बीमारी में वह तटस्थ बने रहते।बच्चों की बीमारी उनकी समस्याओं में भी वह अपने को दूर ही रखते।पत्नी बच्चों के झमेले से वे हमेशा बचते।वह सोचती कि यह कैसा आदमी है,जब पत्नी और बच्चों की बीमारी दुःख दर्द और परेशानियों से भागते हैं तब इसने शादी क्यों की?कई बार वह निशांत को अपनी परेशानियों से अवगत कराना चाहती ।उन्हें अपना हमदर्द बनाना चाहती पर निशांत अपने ऑफिस और बिजनेस की व्यस्तता दिखा कर अपना पल्ला झाड़ लेते लेकिन आज तो उनकी प्यारी मां मर चुकी है।माँ और बेटे का रिश्ता तो अटूट होता है।
निशा ने निशांत से पूछा-“गाँव कब चलना है?”
निशांत ने उंगलियों से गिनकर कहा-“चार अप्रैल को तेरहवीं पड़ेगी तो तीन अप्रैल की शाम को चले जायेंगे।बाकि सब काम के लिए वहाँ बड़े भैय्या और मंझले भैय्या तो रहेंगे ही। मेरी सभी बहनें भी आ गई होंगी।”यह कहते हुए वे अटैची उठाकर कार में बैठ गए।
वह कार के पास लगभग दौड़ती हुई आई और कहा-“सुनो, तुम आज भी ऑफिस जाओगे?”
उत्तर में निशांत ने व्यंग्यात्मक मुस्कान से कहा-“अरे!तो घर पर पड़ा-पड़ा भजन करूँ क्या?”
यह कहते हुए उन्होंने कार स्टार्ट की और कार फर्राटे से चली गई। वह स्तब्ध सी कुछ देर वहीं खड़ी रही।
वह बेचैन सी पूरे घर में बेवजह टहलने लगी। वह सोचने लगी कि कोई बेटा अपनी माँ के मरने पर इतनी सहजता से कैसे रह सकता है। निशांत को क्या हो गया है?वह अपनी माँ की ममता कैसे भूल गए?आखिर मां बेटे के बीच कोई तनाव भी नहीं था।तनाव हो ही नहीं सकता। जो माँ जीवन भर अपनी बहू के लिए ममता लुटाती रही वह बेटे के तनाव का कारण कभी बन ही नहीं सकती। यह सोचते सोचते वह सो गई।
जब वह उठी तो शाम हो चुकी थी। प्रशांत ऑफ़िस से लौट चुके थे और मोबाइल पर किसी से कह रहे थे-“हां भई, आज तो मजा ही आ गया।आज की मीटिंग में कोटेशन भी मुझे मिला और उस बड़ी पार्टी से मेरी डील भी हो गई।” यह कहकर वे हो-हो कर हँसने लगे।
निशा ने यह सुना तो वह सन्न रह गई। तो क्या इसीलिए वे अपनी माँ के मरने पर उनकी अंतिम संस्कार में नहीं गए। अरे सुबह तुरन्त निकल गए होते तो अंतिम क्रिया तक पहुंच ही गए होते। आखिर माँ के अंतिम दर्शन के लिए छोटे बेटे का परिवार वालों ने इंतज़ार तो किया होगा ।क्या पता माँ की खुली हुई आँखें अपने लाड़ले बेटे की अंतिम प्रतीक्षा की होगी और उनकी प्रतीक्षारत आँखे फिर हमेशा के लिए बंद हो गईं होंगीं।
निशा को लगा कि उसका पति एक इंसान नहीं है, जानवर भी नहीं है क्योंकि जानवरों में भी संवेदना होती है।उसका पति सिर्फ और सिर्फ पिशाच है ।स्वार्थ का पुतला है ।छि! निशा ने घृणा से अपना मुँह फेर लिया।
— डॉ. शैल चन्द्रा