स्वास्थ्य

बच्चों को बीमार करने वाले उत्पादों की कहानी

और केन्द्र सरकार के नागरिकों के स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने वाले लोग चुपचाप देख रहे हैं

·        क्या प्रतिबन्ध नहीं लगा सकते हैं?

·        क्या आने वाली कर्णधार पीढ़ियों के सुस्वास्थ्य का दायित्व उन पर नहीं है?

·        क्या रोगी बच्चों के आंकड़ों को जानना ही, सर्वेक्षण एजेंसियों का दायित्व है?

·        क्या रोग होने पर ही जागने के लिए तैनात हैं?

·        क्या यह पता चल जाए कि जहर बाजारों में खुलेआम बिक रहा है तो बिक्री रोकने का प्रावधान नहीं है?

·        क्या उन्हें इतना अधिकार भी नहीं है कि केन्द्र सरकार की ओर से निर्माताओं को ऐसे सभी खाद्य पदार्थों पर बड़े-बड़े अक्षरों में ये चेतावनी लिखने के लिए बाध्य किया जा सकें कि इसमें विद्यमान रसायनों से बच्चों को लत लग सकती है?

·        क्या स्कूलों, कॉलेजों के अल्पाहार गृहों में इन्हें विदेशों की तरह प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है?

·        क्या देश की सभी शिक्षण संस्थाओं में ऐसे सभी उत्पादों [फास्टफूड, जंकफूड, ड्रिंक्स, माइक्रोवेव ओवन, रिफाइंड तेल, आरो पानी आदि] के दुष्प्रभावों के विषय में पोस्टर्स के माध्यम से विद्यार्थियों को सुस्पष्ट रूप से नहीं बताया जाना चाहिए?    

·        क्या मेडिकल कॉलेजों में प्रिवेंटिव मेडिसिन के पाठ्यक्रम में ऐसे सभी उत्पादों [फास्टफूड, जंकफूड, ड्रिंक्स, माइक्रोवेव ओवन, रिफाइंड तेल, आरो पानी आदि] के दुष्प्रभावों के विषय में सुस्पष्ट रूप से नहीं पढ़ाया जाना चाहिए?      

रेल यात्रा कर रहा था, एक बत्तीस वर्षीय युवक और 28 वर्षीय पत्नी भी सहयात्री थे I उनका बहुत ही सुन्दर 9-10 माह का प्यारा-सा कोमल बालक भी था I

एक बड़ा स्टेशन आया, पत्नी ने पति को कहा जरा, मुन्ने के लिए जहर के पैकेट ले आओ I पति तुरन्त उतरा, मैं भी जिज्ञासावश उतर गया I वे एक दुकान पर गए I जहर के पाउच लटके हुए थे, तीन-चार खरीदें I उसी दुकान पर एक पांच-छह वर्ष के बेटे को उसकी मां जहर के पैकेट दिलवा रही थी I तीन-चार मिनट में चार-पांच युवा माता / पिता अपने पुत्र-पुत्रियों के लिए जहर के पैकेट खरीद कर ले गए I रेल चलने के पहले ही जहर खरीदने के कारण, उन सबके चेहरों पर विजेताओं जैसी मुस्कान भी थी I

यह सब देखकर श्री दुर्गासप्तशती पढने वाले मेरे जैसे विश्वासी की आस्था डांवाडोल हो गई I उसमें लिखा है कुपुत्र हो सकता है, कुमाता नहीं होती हैं I

कुमाता क्या, ये तो सबकी सब पूतना की तरह व्यवहार कर रही थी, मेरे जैसे गूगल महाराज के विश्वविद्यालय के कच्ची पहली कक्षा के विद्यार्थी की तुलना में तो वे दोनों ही उस विश्वविद्यालय के कुलपति जैसे थे I जंक फूड के बारे में कुछ सेकण्ड्स में सारी सूचना एकत्रित कर सकने में पूर्णरूपेण सक्षम I उनका बच्चा भी माता-पिता के प्रेम के प्रतिसाद के रूप में जहर खाता ही चला जा रहा था, ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह तो ऐसे जहर को खाने की दृष्टि से पहले से ही अभ्यस्त था I मुझे पूतना इनसे बेहतर लगने लगी है, क्योंकि वो तो बेचारी किसी की दासी थी, उसने तो अपने स्वामी के चक्कर में व्यर्थ ही अपने प्राण गँवा दिए I

उक्त सभी माता-पिता उस बिरादरी के लोग थे, जो डॉक्टर के पास जाने से पहले अपनी बीमारी के बारे क्राइम पेट्रोल के एस.पी. की तरह इनटर्नेट से ढेर सारी जानकारी निकालकर डॉक्टर को ज्ञान बांटते हैं और उनके द्वारा लिखें, परचों की दवाओं की प्रभावशीलता, पार्श्व दुष्प्रभाव आदि के बारे में इतनी सारी जानकारी निकाल लेते हैं, जितनी जानकारी बेचारे डॉक्टर को साढ़े पांच सालों में उनके बड़े-बड़े गुरु भी नहीं दे पाएं थे I

मेरे मन-मस्तिष्क में कई प्रश्न खड़े हो गए कि…

आखिर इतने चतरे लोग जंकफूड के जानलेवा दुष्प्रभावों के बारे में क्यों जानकारी नहीं निकालते हैं?

यह जानकारी क्यों नहीं निकालते हैं कि उनके लाड़ले बच्चों का लीवर और पाचन संस्थान कितना विकसित हुआ है? और इस जहर को क्या ये अंग विषपायी शिवजी की तरह निष्प्रभावी बना सकेंगे I

ये जानकारी क्यों नहीं निकालते हैं कि इनमें जो-जो मिलाया जा रहा है, वे कितने घातक हैं, या और कोई ऐसा रसायन तो नहीं है जिसकी बच्चों को कहीं लत तो नहीं पड़ जाने वाली है?

अखबार बिचारे बड़े-बड़े अक्षरों में छाप रहे हैं कि बच्चों को प्रोसेस्ड फूड की लत लग रही है, और यह घातक है तो भी ये उच्च शिक्षित दम्पति प्रसन्नता के साथ अपने बच्चों को जहर दिए जा रहे हैं I

अस्तु, वे यह सोचने से तो रहे कि प्लास्टिक के कभी नष्ट न होने वाले वे पाउच धरतीमाता के पेट और मनुष्यों के जीवनरक्षक कवच के रूप में ईश्वर द्वारा तैनात पर्यावरण का कितना नाश करेंगे I

कई देशों के स्कूलों-कॉलेजों से 50 मीटर की दूरी पर ऐसे खाद्य और ड्रिंक्स प्रतिबंधित हैं, यह भी गूगल महाराज बताते हैं I  

अरे मेरे देश के युवा कर्णधारो ! माना कि आपने अपने माता-पिता से नाता तोड़ लिया है या उनकी बातों को बेकार बुड्ढों की बकवास या बारम्बार टोकने की आदत मानने लगे हो I  

परन्तु भगिनियो-बन्धुओ ! ईश्वर के लिए जिस भारतीय ज्ञान परम्परा के समक्ष पूरा विश्व और आधुनिक विज्ञान जगत नतमस्तक है, उससे तो नाता मत तोड़ो I

हे परमात्मा रक्षा करिए I इन संतानहन्ता दम्पतियों को विज्ञान बुद्धि दीजिए, प्लीज !