मेरी कदमों की आहट…
बेपरवाह भीतर के मंजर ।
लापरवाह भीतर के डर ।।
मन भीतर के आकृति ।
दर्द भीतर के संतुष्टि ।।
थकान भीतर के गंतव्य ।
अपमान भीतर के वक्तव्य ।।
रुदन भीतर के यथार्थ ।
मुस्कान भीतर के स्वार्थ ।।
घाव भीतर के अपनापन ।
छांव भीतर के स्वच्छ पवन ।।
एकांत भीतर के कोलाहल ।
हृदय भीतर के हलचल ।।
इन जख्मों को टटोलता हुआ ।
पीड़ा पर मलहम लगाता हुआ ।।
चलना चाहता है कदम जब ।
तो ऐसा लगता है मुझे तब ।।
कहीं तुम सुन तो नहीं रही हो ।
मन में कुछ बुन तो नहीं रही हो ।।
मेरी कदमों की आहट ।
सांसो की सनसनाहट ।।
कानों में गूंज रही है तरंग बनकर ।
जिंदगी सज रही है सप्तरंग बनकर ।।
— मनोज शाह मानस