कविता

मेरी कदमों की आहट…

बेपरवाह भीतर के मंजर ।

लापरवाह भीतर के डर ।।

मन भीतर के आकृति ।

दर्द भीतर के संतुष्टि  ।।

थकान  भीतर  के   गंतव्य ।

अपमान भीतर के वक्तव्य ।।

रुदन  भीतर  के  यथार्थ ।

मुस्कान भीतर के स्वार्थ ।।

घाव  भीतर  के   अपनापन ।

छांव भीतर के स्वच्छ पवन ।।

एकांत भीतर के कोलाहल ।

हृदय  भीतर  के  हलचल ।।

इन  जख्मों  को  टटोलता हुआ ।

पीड़ा पर मलहम लगाता हुआ ।।

चलना चाहता है कदम जब ।

तो ऐसा लगता है मुझे तब ।।

कहीं  तुम  सुन  तो नहीं रही हो ।

मन में कुछ बुन तो नहीं रही हो ।।

मेरी कदमों की आहट ।

सांसो की सनसनाहट ।।

कानों में  गूंज रही  है  तरंग  बनकर ।

जिंदगी सज रही है सप्तरंग बनकर ।।

— मनोज शाह मानस

मनोज शाह 'मानस'

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