कविता

चांद

चांद कतरा कतरा चांद पिघलता रहा।
मेरे महबूब को देखने मचलता रहा।
मैंने कहा ओ चांद छुप जा तू बादलों में।
पर चांद हंसता रहा
हंसकर चांद कहने लगा
मैं भी हूं खूबसूरत तेरे महबूब की तरह।
पर मुझ में दाग है तेरा महबूब बेदाग है।
मैं ही हूं बहुत खूबसूरत ये सोच,
मैं खुद को छलता रहा।
कतरा कतरा चांद पिघलता रहा.
— अमृता राजेन्द्र प्रसाद

अमृता जोशी

जगदलपुर. छत्तीसगढ़