कविता

छोड़ पराई आस 

छोड़ उदासी मेरे भाई !  थोड़ा- सा मुस्कुरा दें, 

बीते कल की न सोच ,  चल हम आज में जीते  हैं

कल   क्या होगा ! चिंता न कर  ,

छोड़ ग़म मेरे भाई ! थोड़ा – सा हंँस लें। 

सुन भाई ! ख़ुशी ख़ुशी हर काम कर , 

जग में अपना नाम कर , 

इस  जहाँ में ना कोई बड़ा ना कोई छोटा , 

सबको समानता का अधिकार मिला है  , 

थोड़ा – सा मेहनत कर लें , 

छोड़ नैराश्य मेरे भाई ! थोड़ा – सा  धीरज रख  लें। 

हिम्मत कर मेरे  भाई ! थोड़ा कदम आगे बढ़ा , 

नवपथ देख रहा है चल भाई ! 

छोड़ पराई आस, 

स्वतंत्र है मेरे भाई   खुलकर जी लें।

आओ ! हम सब दृढ़ प्रतिज्ञा लें भाई, 

किसी का शोषण न करें , 

शिक्षित बनकर  , हम गरीबी दूर करें

सुनो भाई ! कुछ करना चाहते हो!

तो,  हम सब धर्म से दयावान बन , सभ्यता – संस्कृति का सम्मान करें , 

एक दूसरे से भेदभाव न करके , 

सबके साथ मिलजुल कर  दु:ख  – सुख  बाँटें, 

जीवन जीने का यही आनंद है मेरे भाई 

थोड़ा – सा त्याग समर्पण करके  आत्म संतुष्टि पा लें। 

— चेतना प्रकाश  चितेरी 

चेतना सिंह 'चितेरी'

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