हर प्रकार का नशा हानिकारक है
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार ड्रग ऐसे रासायनिक पदार्थ को कहते हैं जो जीवित प्राणी की कार्य प्रणाली को परिवर्तित कर देता है । जब ऐसे रासायनिक पदार्थ का अत्यधिक सेवन किया जाता है और बिना किसी ज़रूरत या कारण के मनुष्य स्वयं अपने द्वारा इन रासायनिक पदार्थों को बार – बार लेता है , तब इसे ड्रग एब्यूस कहते हैं । जब मनुष्य इस प्रक्रिया को दोहराता है और धीरे – धीरे उसके अंग – प्रत्यंग उसकी कोशिकाएँ , ऊतक की कार्यप्रणाली इस रासायनिक पदार्थ के बिना नहीं चल पाती हैं या वह इन रासायनिक पदार्थ के बिना जीवित नहीं रह पाता है और अपने को जिंदा रखने हेतु उस मनुष्य को यह पदार्थ लेना ही पड़ते हैं तब इस अवस्था को ड्रग डिपेंडेन्सी कहते हैं । इस अवस्था में मरीज की शारीरिक , मानसिक और भावनात्मक बाध्यता हो जाती है । याने कि यदि वह ड्रग नहीं लेता है तो उसके हाथ – पैरों में दर्द का अनुभव होने लगता है विभिन्न तंत्रों की कार्यप्रणाली बिगड़ जाती है । मरीज बेहोश सा होने लगता है । भावनात्मक परिवर्तन जैसे बात – बात पर हँसना या रोना चुपचाप रहना ( सोचते रहना ) आदि । यह परिवर्तन तब तक होते हैं जब तक मरीज वह विशेष ड्रग नहीं ले लेता । यह समस्या विश्वव्यापी है । पूरे विश्व में अलग – अलग देशों में अलग – अलग रासायनिक पदार्थों के गुलाम बनते जा रहे हैं । इनमें सबसे ज्यादा प्रभाव एल्कोहल शराब का है । जिसने कई घरों की ज़िंदगियों को बर्बाद किया है ।
एल्कोहॉल ( शराब ) – यह एक दवाई के रूप में असर करता है, बशर्ते इसे कम और निश्चित मात्रा में लिया जाये । यह नींद लाने वाला , तनाव मिटाने वाला , दर्द या अन्य संवेदनाओं को खत्म करने वाला होता है । केवल इसी नशा करने वाले रासायनिक पदार्थ का सामाजिक बहिष्कार नहीं किया जाता और इसे धनाढ्य बहिजात्य वर्ग में सामाजिक मान्यता प्राप्त है । अनादि काल से सोमरस के नाम से विख्यात यह रासायनिक पदार्थ तेजी से आँतों द्वारा अवशोषित हो कर रक्त में पहुँच जाता है । चिंताजनक बात यह है कि कम उम्र में ही इसका सेवन अब किया जाने लगा है । जो उनमें आदत बना देता है और यह आदत आगे जाकर उन्हें कमजोर बनाती है और जल्दी मृत्यु का शिकार भी । एल्कोहाल का सबसे ज्यादा असर केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र पर होता है पहले कुछ समय के लिये उत्तेजना होती है जो बाद में स्थायी अवसाद में परिवर्तित हो जाती है । यह अवसाद की दशा लम्बे समय तक चलती है । एल्कोहाल लम्बे समय तक लेने से लिवर प्रभावित होता है । इससे हेपेटाइटिस होकर अंततः लिवर फेल हो जाता है । इसके अलावा पेट में छाले , लिवर कैंसर , इसोफ़ेगस कैंसर आदि भी एल्कोहाल करता है ।
एल्कोहाल शारीरिक , मानसिक दोनों प्रकार से अपना गुलाम बनाता है । लम्बे समय से एल्कोहाल लेने वाला आसानी से इसे छोड़ नहीं पाता है । ज्यादा एल्कोहाल शरीर में वसा की मात्रा भी बढ़ाती है । जिससे मरीज में हार्ट अटैक की संभावना भी बढ़ जाती है । एल्कोहाल सामाजिक समस्या भी पैदा करता है जैसे- गृह कलह , झगड़े , आपसी तनाव , गरीबी आदि । तम्बाकू- तम्बाकू के सेवन को भी सामाजिक मान्यता प्राप्त है । तम्बाकू पीना ( सिगरेट , बीड़ी ) या तम्बाकू चबाना दोनों तरह से तम्बाकू लेना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है । तम्बाकू का प्रमुख तत्व निकोटिन शरीर की रक्त वाहिनियों को सिकोड़ता है और हृदय की आक्सीजन की खपत भी बढ़ाता है जिससे हृदय को ज्यादा काम करना पड़ता है । दोनों प्रक्रिया में रक्तचाप बढ़ता है । यह बढ़ा हुआ रक्तचाप विभिन्न बीमारियों को जन्म देता है । इसके अलावा तम्बाकू मुखगुहा , फ़ेंफ़ड़े , इसोफ़ेगस के कैंसर के लिये भी ज़िम्मेदार है । तम्बाकू के पीने से फ़ेंफड़ों के कैंसर की दर कई गुना बढ़ जाती है जबकि इसे चबाने से मुखगुहा का कैंसर हो सकता है । इस ख़तरनाक रासायनिक पदार्थ का सेवन पूरे विश्व में सभी देशों में होता है । भारत भी अपवाद नही है । भारत जैसे विकासशील देश में इसे कानूनन रोक पाना असंभव है । कानून समय – समय पर बनते रहते हैं पर उन पर प्रभावी अमल नहीं हो पाता । देश में लगभग 3-5 मिलियन अल्प मृत्यु केवल सिगरेट पीने से ही होती है । यह मृत्यु सिगरेट पीने के समय पर निर्भर करती है । तम्बाकू केवल शारीरिक कमजोरी पैदा करती है इससे मानसिक व्याधि नहीं उत्पन्न होती । अतः तत्बाकू की लत छोड़ी जा सकती है । ज़रूरत होती है केवल दृढ़ इच्छा शक्ति की ।
इन पदार्थों से लगभग समान प्रकार के लक्षण उत्पन्न होते हैं । यह लक्षण लम्बे समय तक पदार्थ लेने में ज्यादा होते जाते हैं हैं और मरीज में निम्न परिवर्तन स्थायी तौर पर उत्पन्न हो दैनिक जीवन में उत्साह खत्म हो जाता है । भूख खत्म हो जाती है वजन कम हो जाता है । चलने में तकलीफ होती है , लड़खड़ाने लगता है । बोलने में परेशानी होती है । उल्टी दस्त शरीर दर्द होता है । मरीज को बार – बार नींद आती है , बेहोश होता है । अवसाद , चिंता , हमेशा उसे परेशान करती है । भावनात्मक अलगाव उत्पन्न होता है । किसी काम में ध्यान नहीं लगता , याददाश्त कम हो जाती है । आत्महत्या की प्रवृति विकसित हो जाती है । नशे की प्रवृत्ति का नियंत्रण अत्यंत कठिन कार्य है । वह मरीज , जो पहले से नशे की दवाईयों को ले रहा होता है उस से दवाएँ छुड़ाना बहुत मुश्किल कार्य होता है । क्योंकि मरीज उन पदार्थों का गुलाम हो जाता है । इससे यही बेहतर है कि मरीज इन दवाओं को लेना शुरू न करे इसका अर्थ है कि प्राथमिक रोकथाम का उपयोग सबसे ज्यादा किया जाये। ताकि समुदाय में इस आदत को शुरू न किया जाये और स्वस्थ्य समाज की स्थापना की । जाये । समाज में कुछ परिस्थितियाँ ऐसी होती हैं, जिसमें मनुष्य नशे की पकड़ में आ जाता है । इन कारणों को हाई रिश्क फ़ेक्टर कहते हैं।
खतरे वाले समूह की रोकथाम , बेरोजगारी , घर से लम्बे समय से दूर रहना , घर की तरफ से ध्यान न देना , सामाजिक समस्याएँ जैसे टूटते घर , तलाक़ , किसी प्रियजन की मौत , गरीबी , व्यवसाय जैसे ट्रक ड्राईवर , अत्यधिक परिवहन । यदि कोई मनुष्य इन परिस्थितियों का शिकार हो जाता है तो वह नशे का आदि हो सकता है । जन साधारण को- स्वास्थ्य शिक्षा का बड़ा योगदान होता है । इस शिक्षा का उपयोग करके समुदाय में इस प्रवृति को खत्म किया जा सकता है । स्वास्थ्य शिक्षा के लिये युवा वर्ग को सम्मिलित करना चाहिये ताकि वह इस आदत की शुरूआत न करे । स्वास्थ्य शिक्षा का इस्तेमाल निम्न तरीक़े से करना चाहिये स्कूली बच्चों , युवा वर्ग को इससे होने वाली हानि के बारे में बताना चाहिये टीवी , रेडियो पर जन कल्याण हेतु नशे की बुराईयाँ बताना चाहिये । नशे से होने वाले दुष्परिणामों को विस्तार से समझाना चाहिये ।नशे के ख़िलाफ संदेश हर स्थान पर आकर्षक भाषा में संकेतों में देना चाहिये और प्रत्येक संदेश के साथ विशेष सलाह भी होना चाहिये । नशे के पदार्थों से जहाँ तक हो सके दूर रहे ।
जीवन का हर पल अमुल्य है,आपके साथ आपका परिवार जुड़ा है, सोचे और समझें, और सभी को समझायें।
— डॉ . मुश्ताक़ अहमद शाह सहज़