ग़ज़ल
निष्फल, भरना आह न छोड़े
पागल है दिल चाह न छोड़े
प्रेमनगर से पहले रहज़न
प्रेम-पथिक पर राह न छोड़े
मन का भी घोड़ा है कोई
ख़्याली चारागाह न छोड़े
हासिल मुश्किल इस नाते ही
खल मनुजों की डाह न छोड़े
राख न हो ले जब तक ये तन
इच्छाओं का दाह न छोड़े
अपना ध्यान रखे भलमानुष
औरों की परवाह न छोड़े
प्रीत भला मैं कैसे छोड़ूँ
पानी को मल्लाह न छोड़े
— केशव शरण