कहानी

साढ़े आठ

एक समय था, रवीना टेलीविज़न के सीरियल की दीवानी थी। यूँ लगता था, जैसे उसके ही जीवन की कहानी सीरियल के रूप में चल रही थी। रोज कहीं भी रहे, साढ़े आठ बजे भाग कर “कसौटी” देखने दौड़कर आती। उसमे प्रेरणा, कोमोलिका सब उसको अपनी सखियाँ नजर आती।

आज भी आधी नींद में यही सब सोच रही थी कि उसे आवाज आई, “पैर सीधा रखिये, आपको आपरेशन रूम में ले जाना है, आपके साथ कौन आया है।”

“हां जी, मैं हूँ, कहिए।”

तब रवीना को आभास हुआ, तेज़ दर्द पैर में शुरू हुआ है।

रवीना ने कस कर रमन का हाथ पकड़ा और बोली, “जरा सा सीढ़ी पर गिरी और इतना दर्द क्यों हो रहा।”

“अरे मैम, पैर में फ्रैक्चर है, हड्डी टूट गयी है, आपरेशन होगा अभी।”

और तीन महीने का प्लास्टर लगा रवीना को, मन परेशान, तन परेशान, अब क्या होगा।

समय कब किसने देखा है, दिनभर घर मे दौड़भाग करने वाली रवीना और ऊपर बेटे बहू के पास भी जाना ही पड़ता था। उस दिन वर्ष भर के लाडले पोते का जन्मदिन था। ऊपर ही ढेर सारे व्यंजन बनाये, शाम सब छोटे बच्चे आये, केक कटा।

बस उसी समय घड़ी पर समय देख कर, भागते समय को पकड़ने की कोशिश कर ठीक साढ़े आठ बजे नीचे पहुंचना चाहती  थी…!

छोटे साहब जो उसीकी गोदी में आना चाहते थे, माँ बोलकर दौड़ पड़े (दादी को माँ ही बोलता था) और दौड़ पड़ी रवीना। उस दिन घर मे फंक्शन था, साड़ी पहननी ही थी। गोदी में बच्चा, सीरियल का चस्का, साड़ी का पल्ला सब चक्कर खा रहा था, और दो सीढ़ी कूद पड़ी। और गिर पड़ी, सबलोग ऊपर, फिर जोर से चिल्लायी, अरे आओ।

लोग आए तो सबसे पहले बच्चे को उठाया, चोट तो नही आई। उसको तो रवीना ने संभाल लिया था, सहारा लेकर कमरे में आई और सुबह अस्पताल आना ही पड़ा।

और जब बहू रवीना को देखने आई तो पूछा, आप भागी क्यों थी?

“अरे घड़ी में साढ़े आठ बज गए थे, कसौटी देखना था।”

“क्या मम्मी, वह घड़ी मैं हमेशा दस मिनट आगे बढ़ा कर रखती हूं।”

“समय को हमेशा अपनी गति से चलने देना चाहिए वरना वह हमारी दुर्गति कर देगा।”

वह यादें जब भी रवीना के दिल से टकराती हैं, तो उस सीरियल को जरूर याद करती है। उस दिन के बाद से टीवी में कोई सीरियल नही देखा, उसके हाथ मे सदा मोबाइल ही रहा।

— भगवती सक्सेना गौड़

*भगवती सक्सेना गौड़

बैंगलोर