कहानी – पीठ की निगरानी
“पता नहीं इन मर्दों की अक्ल कब ठिकाने आएगी,कब तक वे अपनी पत्नियों को गुलाम समझते रहेंगे । युग बदलता रहा, लोगों की जरूरतें बदलती रही,लोग धरती से चांद तक पहुंच गए, धरती पर जगह कम पड़ने लगी तो चांद पर घर बनाने की सोचने लगे हैं । परन्तु पुरुष समाज की सोच नहीं बदली । वही आदिम सोच, वही आदिम हरकतें । वही आदिम एकाधिकार ! खुद तो दस दस औरतों के साथ कनेक्ट रहेंगे, संबंध रखेंगे, हाट-बाजार, सिनेमा-मॉल, घूमेंगे । लेकिन खुद की पत्नी गांव की देशी घी की तरह शुद्ध और पवित्र चाहिए..छि: छि….”
” क्या हुआ, यह सुबह-सुबह किसे कोसे जा रही हो..?”
” तुम्हें कोस रही हूं, और किसे कोसूंगी, दूसरे को कोसने की क्या जरूरत पडी है मुझे, पत्नी की जासूसी करना-उसका पीछा करना यही तो काम रह गया है, तुम मर्दों का, खुद तो काम करेंगे नहीं। परन्तु कमाऊ पत्नियों का पीछा जरूर करेंगे” आंगन में झाड़ू लगा रही जयंती ने पति प्रमोद की ओर देखते हुए व्यंग वाण चला दी ।
पेट हल्का करने बॉथरूम जा रहे पति का पांव भारी हो गया । ठिठक कर रूक गया,उसका प्रेशर रूक गया और उसका चेहरा सफेद पड़ गया। हका ! बका ! लजातुर ! अपनी ही पत्नी को- भवासीन की तरह देखने लगा । लगा नंगे-रंगे हाथ पत्नी के हाथों वह पकड़ा गया और उसकी पोल पट्टी खुल गई ।
” क्या हुआ ? मेरी बात सुनते ही सुबह की बेला में तुम्हारे चेहरे पर यह बारह काहे बज गया ? लुगे-फटे हो जाओगे-जल्दी जाओ !”
झाड़ू लगा रही जयंती की नजरें,पति पर चिपक गई और प्रमोद पशीना-पशीना हो गया । यकायक उसकी धड़कने तेज हो गई थी ।
” अरे, मैं तुम्हारी बात नहीं, मीरा के पति की बात कर रही हूं, तुम टेंशन मत लो-जाओ, वरना तुम्हारा बीपी भी हाय हो जायेगा- सुनकर..!”
” अब तो पूरी बात सुने,मेरा पख़ाना भी नहीं उतरेगा..!” प्रमोद ने छाती पर हाथ रखा, धड़कन की गति थोड़ी कम महसूस हुई !
” अरे, वो मीरा है न, शेखर कि पत्नी, सरहुल में जिनसे तुम्हें मिलवाया भी था ..!” जयंती ने पति को बताया- ” बैंक की नौकरी छोड़ दी,कल उसने नौकरी से रिजाइन दे दी । कल ही शाम को फोन कर इसकी सूचना देते हहु बतायी थी ।देर तक हिचक हिचक कर रोती रही थी -बेचारी..!”
” क्यों ? ऐसा क्या हो गया, जो अच्छी भली सरकारी नौकरी छोड़ दी उसने..।” प्रमोद ने धीरे से पूछा था ।
” शक !” जयंती ने पति पर नजरें गडा दी ।
” कैसा शक..?” प्रमोद पिचपिचा उठा ।
” पत्नी की चाल चलन-चरित्र पर शक…!” जयंती ने जोड़ा
” इस कारण कोई नौकरी छोड़ देगा , जरूर कोई विशेष बात होगी..।”
” हां, हां, विशेष बात ही थी…!” जयंती इस बार एक बारगी से चीख पड़ी थी” छः माह पहले वह फोन पर मुझे बता रही थी कि उसका पति पीठ पीछे उसकी जासूसी कर रहा है,छिप छिप कर उसका पीछा कर रहा है । बैंक आकर किसी कोने में छिपकर बैठ जायेगा। मैं किधर जाती हूं, कहां किसके पास अधिक देर बैठती हूं, किसके साथ बैठकर चाय पीती हूं और किसके साथ लंच ! वह अवलोकन करता रहेगा और घर आने पर शाम को, शराब के नशे में खूब आं-खां, उल्टा-पुल्टा बकने लगेगा । एक रात तो हद कर दी उसने” कल मैनेजर की केबिन में घुस कर आधे घंटे तक क्या कर रही थी ? मर्दों के बीच में बैठ हंस-हंसकर चाय पीने में बहुत मज़ा आता है ? अपनी केबिन में तुम चाय नहीं पी सकती है-कमीनी ! और गाली बक गया, वह इतने में ही नहीं रूका,मेरी चूल पकड़ जमीन पर पटक कर चढ़ गया ,यह सब कुछ इतनी जल्दी हो गया कि मैं संभल भी नहीं पाई और उसकी गिरफ्त में आ गई । उस रात मैं सो नहीं पाई । सारी रात रोती रही-सोचती रही,अब नौकरी नहीं करूंगी, इस जिल्लत भरी जिन्दगी जीने से अच्छा है नौकरी ही छोड़ दूं । नौकरी करो,कमा कर पैसे लाओ और मर्द की मार भी खाओ,यह सब मुझसे नहीं होगा । पड़ोसन को देख पति लार टपकावे और पत्नी घूंघट से बाहर नहीं निकले । इस मानसिक विकलांग पुरुष के साथ रहना असंभव है ! मैंने रात को ही दो बार रिजाइन लेटर लिखा परन्तु दोनों बार फाड़ देना पड़ा । सामने सो रहे दो साल के मासूम बेटे का चेहरा घूम जा रहा था । नौकरी छोड़ दूंगी तो इसके भविष्य का क्या होगा । पैसे के अभाव में न सही शिक्षा न सही परवरिश, आगे जाकर आवारा ही निकलेगा । पति की मार बोली सहते हुए बेटे के खातिर नौकरी कर रही हूं । जीवन में अब कोई खुशी बची नहीं है । शरीर एक दम बेजान सा लगता है । बस ज़िन्दगी के साथ खुद को घसीट रही हूं-तुम अपना ख्याल रखना…!”
सुन कर ही मेरा खून खोल उठा था- ऐसे पतियों के ऊपर खोलता गरम तेल उड़ेल देना चाहिए…!” जयंती ने कहा और फिर झाड़ू लगाने लगी ।
प्रमोद का प्रेशर काफी बढ़ गया था । कूकर की तरह बार बार सीटी बजने लगी तो बॉथरूम की तरफ दौड़ पड़ा । जयंती का यह रूप वह पहली बार देख रहा था
” कहीं इसको शक तो नहीं हो गया ? कहीं यह जान तो नहीं गयी कि उसका भी पीछा किया जा रहा है..? ताय गरम की तरह यह तेवर ! आखिर बातों से किसकी ओर इशारा हो रहा है ! अगर जान गई तो ? वह कुछ कहेगी नहीं, सीधे-सीधे अपने दोनों पिल्लों को मेरे पीछे दौड़ा देगी और मैं उनके आगे भाग भी नहीं पाऊंगा । फिर तीनों मिलकर मेरी जो दुर्गति करेंगे, कमीने दोनों बेटे भी पूरी तरह मां पर गये हैं । कहते भी हैं शान से ” हम तो मां के बेटे हैं !” !
मेरी मति मारी गई थी जो उस कमीने की बातों में आ गया, कम्बखत ने मुझे आग में कुदवा दिया -” भाभी पर नजर रखो, बड़ा बाबू और उसके संबंधों को लेकर आफिस में बड़ी गरमा गरम चर्चे हैं..!”
न मैं उसकी बातों में आता न आज पख़ाना रूम में इस तरह मुंह छुपा कर बैठना पड़ता मुझे । प्रमोद पख़ाना रूम में हग कम सोच ज्यादा रहा था..! उसके लिए पख़ाना रूम से महफूज दूसरी जगह और कोई हो नहीं सकता था..! लेकिन कब तक ? तालाब में किया गया गोबर देर तक छिपता नहीं,जिस दिन जयंती पीछा करने वाली बात जान जाएगी उसके बाद मेरा हस्र क्या होगा ! यह सोच कर ही जी घबरा रहा है । फिर उसके करीब जाना तो दूर, दरवाजे से ही दुत्कार कर भगा देगी ! ठीक कहा गया है- बुरे काम का बुरा नतीजा ! अब भुगतो बेटा ..!
प्रमोद रघु की बातों में आकर पिछले एक महीने से पत्नी का पीछा कर रहा था । कहूं तो सीधे सीधे वह पत्नी की जासूसी करने लगा था ।
उसी का पति उसका पीछा कर रहा है, उसके पीठ पीछे उसकी जासूसी कर रहा है,यह जयंती को खबर न थी । बेखबर वह हर दिन अपने समय पर आफिस पहुंचती और अपने काम पर लग जाती थी । पहले वह अधुरे कामों को निपटाती फिर दूसरा कोई नया काम शुरू करती थी । राजेश बाबू जो उसका बॉस था, वह उसे जो भी काम सौंपता खुशी खुशी पूरा करने में उसे बेहद सुकून मिलता था । आखिर आफिस में आज उसकी जो रूतवा और हैसियत है सब राजेश बाबू की ही तो देन है ।
“ कभी टेंशन मत लेना, हमेशा पोजिटिव रहो, नकारात्मक सोच आदमी को नकारा बना देता है “ राजेश बाबू उससे कहा करते ।
वह भी काम से काम रखना, ज़रूरत से ज़्यादा किसी से कोई बात नहीं करना । बेमतलब की हंसी ठिठोली और आफिस की ललो-चप्पो वाली दुनिया से खुद को दूर रखना उसे अच्छा लगता था । यही कारण था कि आफिस में लोगों ने उसे शबाना आजमी की उपाधि दे रखा था । जवाब में वह “ जीवन धारा “ की रेखा बन जाती और साथी लोगों की निगाहें-नियत को मुस्कुराते हुए समझने की उपक्रम करते रहती थी।
उसका बाईस साल की नौकरी में कभी किसी ने उसे तनाव में नहीं देखा,जब भी देखा, चंचल चित्त और हंसते हुए देखा । जलनखोरों के लिए यह भी खोज का विषय बना हुआ था। अपनी पांच फूट की चंचल काया और गजगामनी सी चाल चल कर जब वह आफिस पहुंचती तो बहुतों की आह निकल आतीं । वहीं उसे देख राजेश बाबू मंद-मंद मुस्कुरा उठते थे । उस मुस्कराहट के पीछे छिपे जयंती के लिए उनका प्यार को सिर्फ जयंती ही समझती थी । बाकी अपने सिर के बाल खुजलाते रहते थे । एक बात और भी, गहरी झील की तरह शांत उसकी जवानी पर अक्सर आफिस में बहस छिड़ जाती थी । उसकी जिंदादिली और जवानी आफिस में खाश राज बना हुआ था । इसका भी राजदार सिर्फ राजेश बाबू था ।
उधर जयंती को उसका पति हर रोज आफिस गेट के अंदर छोड़ वापस घर लौट जाता, फिर दोपहर छुट्टी के समय लेने चला आता था । जयंती की शादी हुए बाईस साल हो चुकी थी और अठारह और चौदह साल के उनके दो बेटे थे । तब से लेकर आज तक काम पर आने जाने का उसका यही क्रम था । जीवन के कितने मौसम बीत गए, परन्तु उसके पति को न कोलियरी कैंटीन में चाय पीते कभी किसी ने देखा न बसंती होटल में घुघनी-चोप कभी खाते मिला। जयंती को आफिस गेट के अंदर उतार नाक के सीध- सीधे वापस घर चला जाता था, फिर ठीक दो बजे उसकी बाइक आफिस गेट के बाहर खड़ी नजर आती थी- न पांच मिनट लेट न पांच मिनट पहले,दो बजे मतलब दो बजे!
एक दिन अचानक से उसकी बाइक की दिशा में परिवर्तन हुआ, जयंती को आफिस गेट के अंदर छोड़ वापस घर लौट जाने वाली बाइक आज फिल्टर प्लांट की ओर मूड़ गई थी । अगले दिन से वही बाइक कभी कैंटीन के सामने खड़ी नजर आने लगी, तो कभी बसंती होटल के सामने,जो आदमी बसंती होटल में कभी कदम नहीं रखा था- वही आदमी उस होटल में घुघनी-चोप गपागप खाने लगा,मानो बरसों का भूखा हो । बसंती अंदर से बेहद खुश थी, उसे नया मालदार ग्राहक मिल गया था-” और कुछ खाने का विशेष मन करे तो फोन कर दीजियेगा, घर जैसा स्वाद मिलेगा.! यह हमारा नम्बर है,रख लीजिए..!” बसंती ने ब्लॉज के भीतर से एक कागज की चिट निकाल प्रमोद के हाथ थमा दी थी ।
प्रमोद जयंती का पति है,यह बसंती को पता था । प्रमोद की बाइक की दिशा बदलना और खुद प्रमोद में यह बदलाव अचानक से नहीं हुआ था । अचानक कुछ होता भी नहीं है । हर नर के पीछे एक नारी और हर शक के पीछे एक बीमारी वाली बात थी ।
सप्ताह दिन पहले की बात है, जयंती को आफिस छोड़ प्रमोद वापस घर लौट रहा था-हमेशा की तरह, तभी रास्ते में उसे रघु मिल गया । उसने इशारे से प्रमोद को रूकने को कहा, फिर पास जाकर पूछ बैठा-” आप जयंती का पति है न …?”
” हां-हूं पर तुम कौन है ?”
” मेरा नाम रघु है ।”
” क्या बात है …?”
” भैया, भाभी पर नजर रखो, बड़ा बाबू राजेश और उसके संबंधों को लेकर आफिस में बड़ी गरमा गरम चर्चे हैं….!”
” क्या बकते हो, सुबह-सुबह पी ली है क्या ? होश में तो हो..?” प्रमोद ने रघु का कालर पकड़ लिया” मेरी पत्नी के बारे में ऐसी बात कहने की तुम्हे हिम्मत कैसे हुई…?”
रघु ने अपना कालर छुड़ाते हुए कहा ” मैं तो होश में हूं भैया, लेकिन जब सच्चाई जान लोगे तो तुम बेहोश हो जाओगे…!”
” अगर बात झूठ निकली, तो खोज कर पिटूंगा ..।”
” जरूर पीटना, पर पहले अपनी पत्नी का पता करो..।”
इसी के साथ रघु खिसक लिया था । आज वह बेहद खुश था । महीनों से मन में जो गुब्बार था,वो बाहर निकल गया था । आज उसने उस बात का बदला ले लिया था । जिसे कंखोरी की तरह लिए घूम रहा था । एक दिन सुबह रघु ने जयंती से कह बैठा था” मैडम, कभी कभी आप बहुत जल्दी आ जाती है, कोई विशेष काम रहता होगा…। “
आफिस में रघु की पत्नी के बारे सभी को पता था । वहीं रघु हर औरत में अपनी पत्नी का सा रूप देखने का ख्वाईस लिए घुमता था ।
इसीलिए कभी कभी उसे करार जवाब मिल जाता था
” तुम अपनी औकात में रहो, और दूसरों की जासूसी करना छोड़, अपनी पत्नी की निगरानी करो – समझे तुम..।”
यह उसी तरह का ताना था, जैसा महाभारत के एक प्रसंग में द्रोपदी ने दुर्योधन से कहा था” अंधे का बेटा,अंधा ही होता है…!” बाकी महाभारत का पता है आपको । वहां शकुनि था, यहां रघु शकुनि बनना चाहा था ।
प्रमोद सोच में पड़ गया था” यह आदमी ऐसा काहे कह कर चला गया ! क्या है सच्चाई ? प्रमोद सप्ताह दिन तक सोच में डूबा रहा । पर किसी नतीजे पर पहुंच नहीं सका । उसने रघु को तलाशा, पता चला, दो दिनों से वह काम पर ही नहीं आ रहा है ।
यह भी पता चला,रघु आफिस का चपरासी है-पियून, एक नम्बर का पियक्कड़ । क्वाटर में रहता है । उसकी खुद की पत्नी उसके बस में नहीं है । कभी घास नहीं डालती है । गांव में रहती थी,तब अपने सौतेले सगे दो देवरों को फांस रखी थी । रात को वह दोनों के बीच में सोती और रघु पीकर रात भर आंगन में लंगड़ा कुतुवा की भांति पड़ा रहता था । कुछ कहने पर पत्नी उसे देवरों से दौडा दौड़ा कर पिटवाती थी ।
उसने कंपनी क्वाटर ले लिया । देवरों का संग तो छूटा,पर यहां भी एक ब्याव फ्रेंड रख ली, कमाई खाये पति का,अंगुठा चुसे पड़ोसी का ।
उस दिन के बाद से ही प्रमोद कुछ उखड़ा-उखडा सा रहने लगा था । जयंती को आफिस में छोड़ वापस घर जाने का क्रम उसने तोड़ दिया था और आफिस कैंपस के बाहर,चाहरदीवारी से सटे कभी गुलमोहर तो कभी लिप्टस के पेड़ों पर बंदर की तरह चढ़ कर बैठ जाता और आफिस बरामदे की ओर बगुले की माफिक टकटकी लगाए छिप कर देखता रहता । पेड़ से देखने में जब असुविधा होने लगती तो किसी तरह उच्चक कर आफिस दीवार पर चढ जाता और वहीं से हनुमान की तरह वह मूडी घूमा-फिरा कर इधर-उधर देखना शुरू कर देता था। उसके देखने का भाव किसी की टोह लेने जैसी होती और तब उसके चेहरे पर बैचैनी और उत्तेजना का मिला जुला भाव होता ।
प्रमोद की हरकतें मनोरोग की तरह दिनों दिन गति पकड़ती जा रही थी । हरकतें भी हर दिन विचित्र विचित्र तरह का करने लगा था । किसी दिन झाड़ियों के बीच से सांप की तरह रेंगता हुआ पेड़ों तक पहुंचता और फिर लपक कर किसी पेड़ पर चढ़ जाता और पहले की भांति टुकुर-टुकुर मुलुर-मुलुर देखना शुरू कर देता । लोग कौतूहल से उसकी ओर देखते और हंसते हुए आगे निकल लेते । उसे भ्रम होता कोई उसे नहीं देख रहा है,उल्टे वह लोगों को अपनी ओर देखते हुए पाकर ख़ुद को डालियों में छिपाने की असफल कोशिश करने लगता था । उसकी यह हरकत लोगों को किसी पागल का लछन मालूम जान पड़ता था । फिर धीरे धीरे उसकी हरकतों पर लोगों की नजरें जैसे उगने लगीं और वह चर्चा के केंद्र में आ गया था । इस कारण भी लोग अब उसे टोका-टाकी करना शुरू कर दिए थे । आफिस आ रहे करमचंद बाबू ने टोन कसते हुए एक दिन कहा था-” हर दिन बंदरों की तरह पेड़ों पर चढ़ कर क्या देखते हो ? उम्र भी लड़कों वाली नहीं रही, किसी दिन कंपनी के सुरक्षा गार्ड बंदरों की भांति दौड़ाना शुरू न कर दे..!”
” तुम अपने काम से मतलब रखो न, कौन क्या कर रहा है उससे तुम्हारा क्या लेना देना है ? अपना रास्ता नापो ..!” एक बारगी वह झुंझला उठा था ।
” क्या हुआ सर ? मूड उखड़ा हुआ लग रहा है ? ” सामने से आ रहा सफाई मजदूर पूरनराम ने पूछा था
” अजीब सनकी पागल लगता है…!”
” कौन वो, जो पेड़ पर चढ़ा हुआ है? उसे मैं कभी कभी कैंटीन की तरफ़ भी घूमते हुए देखता हूं । एक दिन रघु के साथ बैठकर कैंटीन में चाय पीते देखा, परन्तु कभी खुश नहीं देखा, जाने क्या क्या सोचते रहता है..!”
” तब तो रघु जानता होगा इसे- कौन है यह..?”
” जानता तो होगा, पता लग जाएगा, कौन है..!”
संयोग से दूसरे दिन जब प्रमोद जंयती को आफिस में उतार कर वापस लोट रहा था तो वहीं गेट के सामने झाड़ू लगाते पूरनराम ने उसे देख लिया और जब वह चला गया तो लपक कर पूरनराम जयंती के सामने आकर पूछ बैठा-” जयंती मैम,वह आदमी जो आपको छोड़कर गया क्या आपका आदमी था ?”
” हां, क्यों..?”
“ अगर यह जयंती मैम का पति है तो फिर वो औरत कौन थी, जो उस दिन इस आदमी के हाथ पे हाथ धरे मेघदूत सिनेमा हॉल के अंदर हंसते हुए जा रही थी..?
“ क्या हुआ ? किस सोच में पड़ गया तू ?”
” नहीं, कुछ नहीं हुआ मैम, एक आदमी कितने रंग बदल सकता है, वही सोच रहा था, इसी से मिलता जुलता एक आदमी है, जो पिछले कुछ दिनों से वह उधर बाहर के सामने वाले पेड़ों पर चढ़ कर आफिस बरामदे की ओर ताकता रहता है,कल करमचंद बाबू ने टोका तो उससे लड़ बैठा । मैं समझा वही था ..।” सिनेमा हॉल वाली बात उसने छिपा ली !
” अरे, नहीं यह मेरा पति है,वह ऐसा क्यों करेगा, कोई दूसरा होगा..!” जयंती ने यह बात पूरनराम से बड़ी सफाई से कह तो दी, लेकिन खुद किसी गहरी सोच में पड़ गई थी । अगर वह प्रमोद ही है तो वो ऐसा क्यों कर रहा है अथवा उसे ऐसा करने की क्या जरूरत पड़ गई ? यह जान लेना जयंती के लिए अति आवश्यक हो गया ।
पूरनराम वाली बात का उसने प्रमोद से चर्चा तक नहीं किया और मन ही मन एक योजना बना डाली ” भेद जानो ” योजना ।
उधर महीना दिन माथा खपाने के बाद भी प्रमोद को जब कोई सुराग हाथ नहीं लगा तो धैर्य खो बैठा और एक दिन आफिस में ही धावा बोल दिया । बीस बाइस साल से जयंती को लाने और ले जाने का काम वह किसी योगी की तरह करता आ रहा था परन्तु पत्नी की कुटिया अर्थात आफिस में उसने कभी कदम नहीं रखा था । उस दिन अचानक आधा घंटा पूर्व अपने आफिस में पति को आया देख जयंती एक दम से चौंक उठी थी । उस घड़ी राजेश बाबू के साथ वह किसी जरूरी काम में लगी हुई थी । आश्चर्यजनक रूप से मुंह से निकल पड़ा” क्या हुआ, इस तरह अचानक से..?”
” एक जरूरी काम से मुझे एक जगह जाना है, सोचा तुम्हें घर छोड़ता जाऊं..!”
जयंती ने राजेश बाबू की ओर देखा । राजेश बाबू बोल पड़े ” ठीक है, कोई जरूरी काम होगा,तुम जाओ यह काम हम कल पूरा कर लेंगे..।”
जयंती अपना हैंडबैग उठाई और आफिस से निकल गई ।
इस बात का बीते अभी महज़ दो दिन ही हुआ था । तीसरे दिन साढ़े दस बजे प्रमोद फिर आफिस में आ धमकता तब जयंती और राजेश बाबू दोनों चाय पी रहे थे और थोड़ी दूर पर मंजू बाई भी बैठी चाय पी रही थी । मंजू टाइम रेडेट मजदूर थी । आफिस में चाय पानी पीलाने का काम वही करती थी ।
” बैंक से फोन आया था,तुम्हारा आधार और पेन कार्ड का जिरोक्स पेपर मांग रहा है..।”प्रमोद ने बताया
” अभी अप्रैल माह में ही केवाईसी जमा किया है न..?” जयंती को बैंक वालों की यह ज्यादती अच्छी नहीं लगी थी ।
” कुछ काम होगा, यहां है, तो दे दो,जमा कर आयेगा..।” राजेश बाबू आज फिर बीच में बोल पड़ा ।
जयंती ने प्रमोद को पेपर दे दिया । वह चला गया । मंजू भी बगल वाले आफिस में चली गई तो जयंती बोल पड़ी” मुझे लगता है यह हमारा पीछा कर रहा है..।”
” डॉन्ट वरी ! मुझे लगता है यह किसी बड़ी दुविधा में पड़ गया है । अच्छा होगा,यह अपने में कन्फर्म हो ले, किसी कन्फ्जन में न रहे ।”
पति प्रमोद का यह बदला हुआ रूप जंयती को अखर गया । मन उसका अवसाद से भर गया। सर झुकाए ही उसने राजेश बाबू से कहा “ सर,यह कैसी हमारी जिंदगी है, अपनी मर्ज़ी से जी नहीं सकते, अपनी मर्ज़ी से किसी के साथ हंस बोल नहीं सकते ! शादी न करो तो समाज ऊंगली उठाता है। सैंकड़ों सवाल हमारे चरित्र पर उठने लगते हैं। शादी करो तो पुरुष स्त्री देह पर अपना आधिपत्य- सम्पत्ति समझने लगता है। आखिर औरत करे तो क्या करे? पैरों की यह बेड़ियां और लकवा ग्रस्त इस सोच को कब तक औरतें सहन करती रहेंगी, आखिर कब तक..?”
“ डॉन्ट वरी ! चिंता मत करो, बदलाव का यह दौर है, एक दिन वक्त भी तुम्हारा होगा और मर्जी भी तुम्हारी चलेगी, वो दिन दूर नहीं है, खुद पर अटल रहो । “ राजेश बाबू ने बड़े प्यार से उसके सर पे हाथ फेरते हुए कहा था ।
आक्सर आदमी उस जगह धोखा खाता है जहां विश्वास उसका डगमगाता है । प्रमोद को जयंती और राजेश बाबू को लेकर लव शव का कोई प्रमाण नहीं मिला था,जिस कारण वह अपना धैर्य खो बैठा था । तब एक रात उसने जयंती पर सीधे हमला कर दिया” तुम उस जगह से ट्रांसफर ले लो, राजेश बाबू के साथ तुम्हारा काम करना मुझे अच्छा नहीं लगता है । टेबुल के नीचे पैर पर पैर फंसा कर कोई काम करता है भला.! दीवार की भी आंखें होती है…!”
” और कुछ ? ” जयंती अपने उमड़ते जज्बातों को जबरन रोकते हुए कहा” उसके साथ मैं बाईस वर्ष से काम कर रही हूं । तुम्हारे मन में इस तरह का ख्याल कभी नहीं आया । जब वह मेरे प्रमोशन को लेकर एरिया आफिसर से हाथापाई पर उतर आए थे तब तो तुमने उसे ” तुम्हारा बड़ा बाबू मर्द आदमी है ” कहा था फिर मेरे एस एल पी को लेकर वह पीओ से लड बैठे और मुझे एस एल पी भी दिलाया तब तुमने ” उसे सुपरमैन ” नहीं कहा था, उसी की वजह से आज तक आफिस में मेरी तरफ आंख उठाकर देखने की किसी को कभी हिम्मत नहीं हुई और तुम कहते हो मैं उनके साथ काम करना छोड़ दूं-कभी नहीं, कभी नहीं । ” अंततः जयंती चीख ही पड़ी थी” एक इज्जत भरी जिन्दगी जी रही हूं उनके साथ रह कर, एक रूतवा मिली है,तो उन्हीं की देन है और तुम चाहते हो मैं उसे मिट्टी में मिला दूं । तुम्हारी बेबुनियाद शक का शिकार हो जाऊं..?” जयंती ने करवट बदल ली । उसके मुंह से नागीन सी फुफकार आने लगी थी । प्रमोद काठ की तरह खड़ा का खड़ा रह गया । थोड़ी ही देर में उसने अपने पैरों में कंपन महसूस की और दम घुटने सा लगा उसका । वह कमरे से बाहर निकल गया । पर जयंती टस से मस नहीं हुई ..!
प्रमोद अभी तक पख़ाना रूम से बाहर नहीं निकला था,यह देख जयंती ने जोर से आवाज़ लगाई ” अरे, पख़ाना रूम में ही सो कर रात की नींद पूरी कर रहा है क्या ? समय का कुछ पता भी है,पक्का एक घंटा हो गया.घुसे.!”
आंगन की दीवार पर लगी आईने के सामने अपनी नहाई शरीर को निहारते खड़ी, खुले बालों पर जयंती कंघी चला रही थी और पति प्रमोद को कनखियों से देख़े भी जा रही थी । उसकी नहायी-तराशा सा बदन और कमर तक लहराते काले काले बाल किसी को भी नींद की गोली खाने को मजबूर कर सकती थी । कोई भी अपना होश खो बैठता। आज भी वह दो बेटों की मां नहीं बल्कि दूर से डिम्पल कपाड़िया लगती थी ।
” सॉरी जयंती!” सामने आकर प्रमोद बोला ” तुम सही थी,मैं ग़लत साबित हो गया..!”
” मुझे मालूम है..।”
” मैं पिछले एक डेढ़ महीने से तुम्हारा पीछा कर रहा था..।”
” मालूम है मुझे ।”
” मैं रघु चपरासी के बहकावे में आ गया था..।”
” अच्छी तरह मालूम है, अचानक दो बार आफिस आया हम दोनों को रंगे हाथों पकड़ने के लिए, राइट.।”
” मैं बेहद शर्मिंदा हूं..!” प्रमोद पछाड़ खाये पहलवान की तरह खड़ा हो गया था ” जब तुम्हें सब कुछ मालूम हो चुका था तो कभी विरोध क्यों नही किया..?”
“ विरोध गलत नीतियों का किया जाता है, परन्तु जिसकी सोच ही गलत हो, जिन्हें अपनी पत्नी पर भरोसा न हो,जो गैर स्त्री के साथ सिनेमा हॉल में जाता हो, वैसे नियत वाले आदमी का विरोध क्या करना-उससे छुटकारा पा लेना ही बेहतर है। फिर तुम तो खुद एक बड़ा भ्रमित आदमी हो । मैं खुद भी चकित और हैरान हूं ! इतने सालों से तुम्हारे साथ
विस्तर साझा करती रही और तुम्हें जान न पाई ! अब जब तुम्हारी असलियत सामने आ चुका है,तब तुम्हारे इस शंकीपन के चक्कर में मैं अपना जीने का अंदाज़ क्यों बदल लूं ! “
” तुम कितनी अच्छी हो जयंती- डार्लिंग ! हमें माफी दे दो..!”
” डॉन्ट टच मी,दूर रहो,यह हक अब तुम खो चुका है । ” जयंती ने प्रमोद को झिड़क दी-” बाईस साल के हमारे गाढ़े प्यार को तुमने गंदे नाले में बहा दिया । ” जयंती का पति छिप छिप कर उसका पीछा कर रहा है ” इस शब्द ने मुझे अपने ही आफिस में रूसवा करा दिया-बदनाम करा दिया ! डेढ़ महीने से आफिस के आस पास तुमने जो तमाशा किया, लोगों ने आंखें फ़ाड़ फ़ाड़ के देखा हैं तुम्हें, वो क्या कम है? “ जयंती ने कहना जारी रखा ” तुम जैसे मर्दों से कोई औरत मां तो बन सकती है परंतु एक इज्जत और मान सम्मान की जिन्दगी कभी नहीं जी सकती हैं । अब तुम मेरी एक बात सुनो ” मैं मीरा नहीं, जयंती हूं और अपनी जिन्दगी अपने तरीके से जीने का सलीका जान चुकी हूं । वैसे मीरा ने भी नौकरी से रिजाइन नहीं दी है,वह तीन माह के मातृत्व अवकाश पर हैं, मीरा मां बनने वाली है ! ऐसे निकम्मे मर्दों के आगे हम कामकाजी महिलाओं ने घूटने टेकना छोड़ दिए हैं । हमें अपनी जिन्दगी कैसे जीनी है,वो तरीका हमें समझ में आ चुका है । हर बार पत्नियां ही अग्नि परीक्षा क्यों दें ? पुरूष क्यों नहीं देता ? आखिर एक जिस्म के लिए औरतें कब तक पुरुष यातनाएं सहेंगी! आखिर कब तक ..!”
” बाबू जी आप ! मां की पीछा कर रहे थे ? अपनी ही पत्नी की जासूसी करने लगे थे । हमने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन आपका यह रूप भी देखना पड़ेगा..! “
आवाज ने दोनों को चौंकाया ! देखा, बड़ा बेटा बगल के कमरे के दरवाजे की ओट में छिप कर जाने कब से उनकी बातें सुन रहा था ।
समाप्त
— श्यामल बिहारी महतो