बिना मौसम बादल बरसने लगे हैं
बादल भी अब बदलने लगे हैं।
बिना मौसम बरसने लगे हैं।।
जिनसे मिला करते थे रोज,
उनसे मिलने को तरसने लगे हैं।
बिना मौसम बादल बरसने लगे हैं।।
कहते थे बादल बरसेंगे हमेशा,
ऐसी हवा चली की वो खिसकने लगे हैं।
बिना मौसम बादल बरसने लगे हैं।।
किए थे जो वादे लगते थे सच्चे,
वादों से अपने वो मुकरने लगे हैं।
बिना मौसम बादल बरसने लगे हैं।।
मैं उनको भुला दूं तो कैसे भुला दूं,
वो दिल की गलियों से गुजरने लगे है।
बिना मौसम बादल बरसने लगे हैं ।।
सपने जो देखे ख्वाबों में हमने,
सपने हमारे बिखरने लगे है।
बिना मौसम बादल बरसने लगे है।।
बादल भी अब बदलने लगे है ।
बिना मौसम बरसने लगे है ।।
— प्रशांत अवस्थी “रावेन्द्र भैय्या”