गीतिका/ग़ज़ल

यूं ही कुछ बात हो,,

यूंही कुछ बात हो सितारों से

गुम शुदा हो गई बहारों से

शबनर्मी सहर में कभी आओं

खुल के दीदार हो नज़ारों से

बीती यादो का ये बसर देखो

दूर ना अब रहो सहारों से

डूब जाने की तमन्ना ले के

दूर हो जाएं हम किनारों से

राह मे गुल खिले वफाओ के

क्यूं समझते नहीं इशारों से

लौट आओ करीब अब वर्ना

कहीं मिल जाएं हम न तारों से

— पुष्पा अवस्थी “स्वाती”

*पुष्पा अवस्थी "स्वाती"

एम,ए ,( हिंदी) साहित्य रत्न मो० नं० 83560 72460 [email protected] प्रकाशित पुस्तकें - भूली बिसरी यादें ( गजल गीत कविता संग्रह) तपती दोपहर के साए (गज़ल संग्रह) काव्य क्षेत्र में आपको वर्तमान अंकुर अखबार की, वर्तमान काव्य अंकुर ग्रुप द्वारा, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री के कर कमलों से काव्य रश्मि सम्मान से दिल्ली में नवाजा जा चुका है