यूं ही कुछ बात हो,,
यूंही कुछ बात हो सितारों से
गुम शुदा हो गई बहारों से
शबनर्मी सहर में कभी आओं
खुल के दीदार हो नज़ारों से
बीती यादो का ये बसर देखो
दूर ना अब रहो सहारों से
डूब जाने की तमन्ना ले के
दूर हो जाएं हम किनारों से
राह मे गुल खिले वफाओ के
क्यूं समझते नहीं इशारों से
लौट आओ करीब अब वर्ना
कहीं मिल जाएं हम न तारों से
— पुष्पा अवस्थी “स्वाती”