गजल
ज़िंदगी को जिया किजिये।
दायरा दिल बड़ा कीजिये|
नफरतों को मिटा प्यार से ।
प्यार का वासता कीजिये |
सूर्य बन ना सको ना सही ।
दीप बन कर जला कीजिये |
राह भर जाएँगी नूर से ।
जुगनुओं सा रहा कीजिये |
उल्फतों को निभा ते हुये
इल्तजा ना गिला कीजिये |
है मोहब्बत का दस्तूर जो
बस उसी पे चला कीजिये ।
हसरतें तोड़ने दम लगें
यूँ न चुप -चुप गुना कीजिये |
ज़िंदगी का भरोसा नहीं
मिल मिलाके रहा कीजिये |
मन ‘मृदुल’ राग रस रंग से ।
हौले -हौले भरा कीजिये।
— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’