मुक्तक/दोहा

मुक्तक

सुहाना हो नवल यह वर्ष पावनता जहां फैले |
की जन-जन के ह्रदय में अब उजाला ज्ञान का फैले |
प्रदूषण से भरा जो मन “मृदुल” प्रभुता से प्रभु भरना |
मलय सुरभित बहे संसार महके चेतना फैले |

विकारों को मिटा करके गुणों से प्रभु सजा देना |
बुरी हर धारणा मन की हे नारायण मिटा देना |
तुम्ही करता तुम्ही भरता तुम्ही हरता हो कर्मो के,
उचित कर्मों को करवाना नही कोई सज़ा देना |

तुम्हारे ही इशारे से हर एक पत्ता यहां हिलता|
तुम्हारे ही इशारे पर उचित अनुचित यहाँ होता |
हे मधुसूदन कहा तुमने यही गीता बताती है,
भला करते हो क्यों ऐसा बुरा क्यों कर यहां होता |

नवल शुभता लिए नव वर्ष को इस बार लाना प्रभु |
हृदय मस्तिष्क जन-जन का सदा पावन बनाना प्रभु|
तुम्ही नैया तुम्ही पतवार तुम ही तो खिवैया हो,
निहित हो हित सभी का बस वही करना कराना प्रभु
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जहां में राम का हो राज्य भय से मुक्त हो दुनिया |
मिटे नफ़रत दिलों से प्रेम भक्ति युक्त हो दुनियाँ |
नहीं आतंक के साये तले जीवन जिए कोई,
नये शुभ वर्ष में मिलकर रहें संयुक्त हो दुनियाँ |

— मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016