मुक्तक
सुहाना हो नवल यह वर्ष पावनता जहां फैले |
की जन-जन के ह्रदय में अब उजाला ज्ञान का फैले |
प्रदूषण से भरा जो मन “मृदुल” प्रभुता से प्रभु भरना |
मलय सुरभित बहे संसार महके चेतना फैले |
विकारों को मिटा करके गुणों से प्रभु सजा देना |
बुरी हर धारणा मन की हे नारायण मिटा देना |
तुम्ही करता तुम्ही भरता तुम्ही हरता हो कर्मो के,
उचित कर्मों को करवाना नही कोई सज़ा देना |
तुम्हारे ही इशारे से हर एक पत्ता यहां हिलता|
तुम्हारे ही इशारे पर उचित अनुचित यहाँ होता |
हे मधुसूदन कहा तुमने यही गीता बताती है,
भला करते हो क्यों ऐसा बुरा क्यों कर यहां होता |
नवल शुभता लिए नव वर्ष को इस बार लाना प्रभु |
हृदय मस्तिष्क जन-जन का सदा पावन बनाना प्रभु|
तुम्ही नैया तुम्ही पतवार तुम ही तो खिवैया हो,
निहित हो हित सभी का बस वही करना कराना प्रभु
|
जहां में राम का हो राज्य भय से मुक्त हो दुनिया |
मिटे नफ़रत दिलों से प्रेम भक्ति युक्त हो दुनियाँ |
नहीं आतंक के साये तले जीवन जिए कोई,
नये शुभ वर्ष में मिलकर रहें संयुक्त हो दुनियाँ |
— मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”