अपशब्द और निंदा: क्रोध के प्रिय मित्र
जब भी किसी व्यक्ति को गुस्सा (क्रोध) आता है तो वह सामने वाले व्यक्ति को प्रायः अपशब्द तक बोल देता है। उस पर अन्य प्रकार के आक्षेप लगाकर उसे मानसिक क्षति पहुँचाता है और तो और इसी क्रोधवश वह उसे शारीरिक क्षति पहुँचाने का प्रयास भी कर सकता है। लेकिन कुछ समय के पश्चात् जब उसका गुस्सा शान्त हो जाता है तब वह उसी व्यक्ति से हाथ जोड़ कर क्षमायाचना करते हुए यह मान भी लेता है कि जिस बात के लिए क्रोध किया था वह आयी-गयी हो गई। यदि फिर भी क्रोध की परिस्थिति उत्पन्न हो जाए और व्यक्ति उसकी पुनावर्ति न करे, इसके लिए प्रायश्चित्त अथवा क्षमाभाव रखना आवश्यक है। परन्तु जब भी आप क्रोध का प्रायश्चित्त करते है। तब आपके चित्त में इस प्रकार के क्रोध को पुनः नहीं करने का दृढ़ संकल्प भी होना चाहिए।
जैन धर्म के महान् पर्व पर्युषण के संवत्सरी के दिन हम सभी एक दूसरे से ‘‘मिच्छामि दुक्कडं’’ एवं ‘‘खमत खामणा’’ कहकर क्षमायाचना करते हैं। मिच्छामि दुक्कडम् का अर्थ है कि जिस दोष के लिए भूल की हो, पाप किया हो अथवा जाने-अनजाने में किसी का दिल दुःखाया हो, इस हेतु क्षमायाचना करना। जिसके लिए प्रायश्चित्त किया जाए ऐसे दोष, ऐसी भूल अथवा ऐसे पाप से सदैव दूर रहने का निश्चय करना होता है।
लेकिन आज के दौर में प्रायः देखा जाता है कि क्रोध व्यक्ति के जीवन में एक सुदर्शन चक्र की भांति बिना रुके घूम रहा है। बहुत धैर्य रखा फिर भी मजबूरी में क्रोध आ गया। सहन करने की भी एक सीमा होती है। परिणामस्वरूप वो बार-बार क्रोध करता है और ऐसा मानता है कि क्रोध पर कंट्रोल कर लिया है। इस तरह वह बार-बार क्रोध करता है एवं बार-बार उसी का पश्चात्ताप करता है। जैसे चोरी करने की आदत वाला व्यक्ति सबके सामने दुबारा चोरी न करने की कसम लेता है और पुनः संयोग बनते ही चोरी करने लग जाता है।
दुनिया में कुछ ऐसे व्यक्ति भी होते है जो यह चाहते हैं कि सभी को उनके कहे अनुसार चलना चाहिए। ऐसे व्यक्ति के अनुसार या इच्छानुसार कोई कार्य नहीं होता है तो उसे क्रोध आ जाता है। वह जोर से चिल्ला- चिल्ला कर बोलता है कि- ‘मुझे यह सब पसन्द नहीं है’, ‘मेरे साथ यदि रहना है तो यह सब नहीं चलेगा’, ‘मेरे इतनी बार समझाने के बाद भी तुम समझते क्यों नहीं हो, बुद्धि कब आएगी तुम्हें’ तथा ‘इतना समय हो गया है मेरे साथ रहते-रहते फिर भी अक्ल नहीं आयी तुम्हें’….इत्यादि।
ऐसा नहीं लगता कि इन सभी बातों के केन्द्र में एक बात समान है कि हम जो चाहते हैं या जो भी इच्छा रखते हैं यदि उसके अनुसार दूसरा व्यक्ति कार्य नहीं करता है तो हमारे भीतर क्रोध की ज्वाला भभक उठती है। दूसरा व्यक्ति यदि हमारी इच्छा के अनुरूप नहीं चलता है तो संभवत हमें क्रोध आ ही जाता है। कभी यह सोचा है कि हमने अपने स्वयं के बारे में जो-जो इच्छा कर रखी थी, क्या वे पूरी हो पाई है? क्या अपनी इच्छानुरूप हम वो बन पाये हैंे? नहीं ना…..।
आज अपनी स्वयं की कई इच्छाएँ अभी तक भी अधूरी है, जैसेकि- किसी पद या प्रतिष्ठा को हम पाना चाहते थे, उसे अभी तक नहीं पा सके। जब हम स्वयं को स्वयं की इच्छानुसार नहीं बना पाये हैे तो हमारी इच्छानुसार कोई दूसरा व्यक्ति, अपने व्यक्तित्व को अपने अस्तित्व को बनाये, ऐसी आशा उससे भी कैसे की जा सकती है?
क्रोध करते समय सिर्फ और सिर्फ व्यक्ति का अहंकार बोलता है। वह हमारे मन पर बार-बार एक ही चोट करता है कि सबकुछ तेरे कहे अनुसार ही होना चाहिए। जो तू चाहता हूँ उसी के अनुरूप सभी को चलना चाहिए। इसमें थोड़ी भी भूल हो जाए तो उस भूल पर तुझे क्रोध करने का अधिकार है। इस क्रोध के मूल में छुपे हुए अहंकार के विषय में किसी ने सही ही कहा है कि एक बार भी यदि क्रोध उत्पन्न हो जाए तो उसके साथ करोड़ों पाप कर्म लगे रहते है। मन में जब भी अहंकार आए तो यह समझ लेना कि हमारे द्वारा अब तक किये गये तथा कराये गये सभी धर्म-कर्म, साधना-आराधना का नाश हो गया। व्यक्ति के व्यक्तित्व का नाशक और कोई नहीं, सिर्फ उसका अहंकार ही है। जैसा कि आप सभी को पता है कि अभी दो देशों (इजराइल एवं फिलिस्तीन) के बीच भयंकर युद्ध चल रहा है। इस भयंकर युद्ध के मूल में यदि देखा जाए तो इन दोनों देशों का अहंकार ही है। इस झूठे क्रोधरूपी अहंकार के चलते हुए शायद उन्हें पता ही नहीं है कि उनके द्वारा युद्ध करने से हजारों मासूम जिंदगियाँ खत्म हो गई है। जान-माल का भारी नुकसान हुआ सो अलग। युद्ध चाहे किन्हीं भी दो देशों के बीच में हो लेकिन उसका गहरा असर समूचे विश्व की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। ऐसे लम्बे चलने वाले युद्ध से विश्व में खाद्यानों की कमी के साथ-साथ मंहगाई का संकट भी उत्पन्न हो जाता है।
क्रोध सबसे पहले मानव का मुँह खुलवाता और उसकी आँखें बंद करवाता है। अर्थात् सामने वाले व्यक्ति पर अपशब्दों के बाणों की वर्षा करवाता है, जिससे उसके क्रोध की उष्णता बढ़ती है तथा वह दूसरों के लिए निंदात्मक शब्दों का प्रयोग करता है। अण्ट-शण्ट शब्दों के प्रयोग से उसके स्वयं की विवेकरूपी आँख बंद हो जाती है। प्रायः देखा जाता है कि जब किसी को क्रोध आता है तब उसकी भौंएं चढ़ जाती है, उसका चेहरा भी लाल हो जाता है। दिल की धड़कन भी बढ़ जाती है एवं उसका सम्पूर्ण शरीर धूजता हुआ सा प्रतीत होता है। आप स्वयं भी महसूस किजीये कि क्रोध आपके अंदर कैसा और कितना भंयकर परिवर्तन लाता है। वो सिर्फ आपके मन से ही नहीं, अपितु शरीर के रोम-रोम से प्रकट होता है। आप आपे में नहीं रहते, क्रोध आप पर सवार हो जाता है। क्रोध मात्र एक अवगुण नहीं, इसे तो अवगुणों की खान भी कहा जा सकता है। इसमें द्वेष, दुःख, भय, तिरस्कार, अहंकार के साथ अविवेक भी है। क्रोध कभी भी अकेला नहीं आता, वह अपने पूरे परिवार को अपने साथ में लाता है। इसीलिए हमारे शास्त्रों में भी यह उल्लेख मिलता है कि अपने मन में उत्पन्न क्रोध को हराईयें। क्रोध को नम्रता एवं विवेक से जितने का प्रयास कीजिए। क्योंकि अपशब्द और निंदा क्रोध के प्रिय मित्र हैं। बलवान वो नहीं जो दूसरों को जमीन पर पटक कर पछाड़ दे, बलवान तो वो है जो स्वयं के क्रोध पर नियन्त्रण करना जानता है। एक साधारण व्यक्ति अथवा साधक के लिए ही क्या? हम सभी के लिए एक प्रश्न है कि हम क्रोध को कंट्रोल कैसे करते है। जो क्रोध को बिलकुल त्याग दे वो ही संत-सज्जन कहलाने योग्य है।
— राजीव नेपालिया (माथुर)