गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

खूब  जमकर  जनाब  लिक्खा है।

जुल्म  का हर  हिसाब लिक्खा है।

कैसे  कह  दू  अज़ाब  लिक्खा है।

जिसके हिस्से  सवाब  लिक्खा है।

गीत   दोहा   ग़ज़ल   कि  रूबाई,

जब लिखा ला जवाब लिक्खा है।

ज़िन्दगी को खुशी मिली जिससे,

क्यूँ उसे फिर अज़ाब लिक्खा है।

नाम  उसका  जहाँ  भी है आया,

बस उसे इक  गुलाब लिक्खा है।

तंग  उनको  नहीं  करो  साहिब,

नाम जिनके ख़िताब लिक्खा है।

उंगलियाँ उठ रहीं भला क्यूँ कर,

जब नहीं कुछ ख़राब लिक्खा है।

कुछ न ज़्यादा लिखा पढ़ी है की,

सिर्फ़  लब्बो लुआब  लिक्खा है।

देख  चेहरा   हमीद   सनम  का,

हर  समय  माहताब  लिक्खा है।

— हमीद कानपुरी

*हमीद कानपुरी

पूरा नाम - अब्दुल हमीद इदरीसी वरिष्ठ प्रबन्धक, सेवानिवृत पंजाब नेशनल बैंक 179, मीरपुर. कैण्ट,कानपुर - 208004 ईमेल - [email protected] मो. 9795772415